आज के दौर में राजनीति में जिस विचारधारा की लड़ाई की बात कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी कर रहे हैं क्या वह कांग्रेस को उस मुकाम तक पहुँचा पाएँगे? उस दौर में जब देश में राजनेताओं ने ‘विचारधारा’ को सिर्फ़ एक शब्द ‘सत्ता’ तक संकुचित करके रख दिया है? सत्ता के बाजार में ‘बकरे’ की तरह खड़े राजनेताओं से विचारधारा की उम्मीद करना कहाँ तक सही साबित होगा?