पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई है। इनमें से 2 राज्यों पंजाब और उत्तराखंड में उसे उम्मीद थी कि वह बेहतर प्रदर्शन करेगी। लेकिन पंजाब उसने गंवा दिया और उत्तराखंड में वह पूरी तरह खेत रही। इन दोनों राज्यों में करारी हार के पीछे वजह पार्टी नेताओं की गुटबाजी और खींचतान को माना गया है लेकिन हार के बाद भी नेता संभलने को तैयार नहीं हैं।
चुनाव नतीजे आए 20 दिन हो चुके हैं लेकिन अभी तक इन राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष कौन होगा, इसका फैसला नहीं हो सका है। ऐसा ही कुछ हाल मणिपुर, गोवा और उत्तर प्रदेश का भी है।
पांच राज्यों में चुनावी हार के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इन सभी राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों के इस्तीफे ले लिए थे।
70 सीटों वाले उत्तराखंड में कांग्रेस की सिर्फ 19 सीटें मिली जबकि 117 सीटों वाले पंजाब में भी उसका प्रदर्शन बेहद खराब रहा और वह 18 सीटों पर सिमट गई। खुद पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी दोनों सीटों से चुनाव हार गए। पंजाब में आम आदमी पार्टी और उत्तराखंड में बीजेपी ने सरकार बनाई है।
प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के पद के लिए कांग्रेस में पंजाब और उत्तराखंड में किस तरह का घमासान चल रहा है आइए, इस पर बात करते हैं। पहले बात होगी पंजाब की।
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने भी बीते दिनों में पूर्व विधायकों, पार्टी नेताओं के साथ बैठक की है और कहा जा रहा है कि वह फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते हैं।
जबकि नेता प्रतिपक्ष पद के लिए प्रताप सिंह बाजवा, पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा, विधायक तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा और सुखपाल सिंह खैरा के नाम दौड़ में हैं।
हिंदू-सिख समीकरण
पंजाब में जब तक अमरिंदर सिंह कांग्रेस में थे तब तक मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के पद पर सिख और हिंदू चेहरों का बेहतर संतुलन पार्टी के पास था। तब प्रदेश अध्यक्ष पद पर सुनील जाखड़ थे। लेकिन अमरिंदर सिंह के हटने के बाद मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के पद पर सिख चेहरे आ गए थे।
देखना होगा कि पार्टी सिख और हिंदू चेहरों के बीच किस तरह का संतुलन बनाती है और इन दो बड़े पदों पर किन नेताओं को तैनात करती है।
ब्राह्मण-क्षत्रिय समीकरण
उत्तराखंड में कुमाऊं और गढ़वाल मंडलों के बीच मुख्य रूप से ब्राह्मण और क्षत्रिय समीकरणों का ध्यान हर राजनीतिक दल को रखना होता है। हालांकि कांग्रेस इससे पहले दलित नेता यशपाल आर्य को प्रदेश अध्यक्ष बना चुकी है लेकिन देखना होगा कि इस बार वह इन दोनों पदों पर किन नेताओं को जिम्मेदारी देती है।
लेकिन दोनों ही राज्यों में इतनी देर होने के बाद सवाल यही खड़ा हो रहा है कि आखिर पार्टी में नेताओं की आपसी खींचतान और गुटबाजी कब ख़त्म होगी और हाईकमान ऐसे नेताओं पर कार्रवाई क्यों नहीं करता।
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