हर दिन जब बयानवीरों की जुबान से जहर बुझे तीर चल रहे हैं। समाज को वैमनस्य की चिंगारी से सुलगाने की लगातार कोशिशें हो रहीं हैं। अपनी विपक्षी पार्टियों या मतदाताओं को को गली-मोहल्ले के गुंडों या वाहुबलियों की तरह खुलेआम धमकाया जा रहा है। अपनी विशिष्ट भाषा शैली में मुख्यमंत्री ने यह भी कह दिया कि दो लड़के आजकल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दंगा भड़काने के लिए निकले हुए हैं।
ऐसे में जब मान-मर्यादा ताक पर रख दी गई हो तब चुनावी युद्ध में अगर दो विपक्षी सौहार्द का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करें तो निश्चय ही शिष्टता, शालीनता और सौहार्द की बसंती बयार आह्लादित कर देती है।
दंगा, तमंचा, छुरा और खून से रंगी लाल टोपी जैसे शब्द आजकल बीजेपी के शीर्ष नेताओं की जुबान से सुने जा रहे हैं।
योगी के बयान
इसी कड़ी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दहाड़ रहें हैं कि कैराना और मुजफ्फरनगर में जो गर्मी है उसे शांत कर दूंगा और 10 मार्च के बाद उसे शिमला बना दूंगा। धमकाया गया कैराना के बहाने अल्पसंख्यकों को ताकि बहुसंख्यक आबादी का वह तबका खुश हो जाए जो यह मान चुका है कि अल्पसंख्यक जेहादी हैं या उनके लिए खतरा है लेकिन इसका जवाब आया आरएलडी सुप्रीमो की तरफ से कि हमारा तो खून ही गर्म है। पर ऐसे जहरीले माहौल में एक सड़क पर आमने-सामने आकर प्रियंका के साथ अखिलेश-जयंत ने सौहार्द व शिष्टता के नए अध्याय की नींव रख दी जिसे फिलहाल सिर्फ महसूस किया जा सकता है।
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बुलंदशहर में यह नजारा चुनावी प्रचार के दौरान कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और सपा और रालोद प्रमुख अखिलेश यादव और जयंत चौधरी रोड शो में एक दूसरे के आमने-सामने आ गए। दोनों के चुनावी रथ और उनके समर्थक जब आमने-सामने आए तब दोनों को रुकना पड़ा लेकिन तभी रथ रूपी वाहन की खिड़की से प्रियंका ने दूसरे रथ में सवार अखिलेश-जयंत को देखकर मुस्कुराते हुए अभिवादन किया और फिर दोनों रथ के ऊपर निकल आए। गर्मजोशी से तीनों नेता एक दूसरे को नमस्कार करते रहे।
फिर अखिलेश ने वहीं से ट्वीट कर प्रियंका को शुभकामनाएं दीं जिसके जवाब में प्रियंका ने ट्वीट किया- राम राम जी।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अपने नेताओं को सौहार्दपूर्ण वातावरण में मुस्कराकर अभिवादन करते देख तीनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं में भी ग़ज़ब का जोश देखा गया। प्रसन्न कार्यकर्ताओं ने करतल ध्वनि से इसका स्वागत किया। प्रियंका की यह पहल आज की राजनीति में विलक्षण घटना है, जो निश्चय ही आने वाली राजनीति के संकेत दे रही है।
इस तरह का सौहार्द प्रियंका के नाना जवाहर लाल नेहरू की याद दिलाता है। नेहरू ने हमेशा भाषा की मर्यादा, प्रेम और सौहार्द को कायम रखा और यह आदर्श बीजेपी में अटल बिहारी वाजपेयी में भी परिलक्षित होते थे लेकिन राजनीति में मोदी युग की शुरुआत होने के साथ बीजेपी से प्रेम और सौहार्द विलुप्त हो गए। मान-मर्यादा, चाल-चरित्र-चेहरा, शुचिता जैसे शब्द अपना अस्तित्व खो बैठे।
सामाजिक ताने-बाने को उजाड़कर कथित राष्ट्रवाद, जातिवाद और सांप्रदायिकता छिछलेपन के साथ आज सबके सामने है। यहां वाजपेयी और नेहरू से जुड़ी दो घटनाओं को याद करना तर्कसंगत होगा।
नेहरू मानते थे कि लोकतंत्र में विपक्ष की अहम भूमिका होती है इसलिए आईना दिखाने के लिए मजबूत विपक्ष जरूरी है।
एक बार ब्रिटिश प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के दौरान पंडित नेहरू ने वाजपेयी से उनका विशिष्ट अंदाज में परिचय कराते हुए कहा था- "इनसे मिलिए. ये विपक्ष के उभरते हुए युवा नेता हैं। मेरी हमेशा आलोचना करते हैं लेकिन इनमें मैं भविष्य की बहुत संभावनाएं देखता हूं।"
उन्होंने विपक्ष को सदा मान दिया जिसका नतीजा तब देखने को मिला जब अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने।
वाजपेयी के मन में नेहरू के लिए कितना सम्मान था, इसका अंदाजा 1977 की उस घटना से लगता है जब वाजपेयी विदेश मंत्री बने। कार्यभार संभालने के लिए साउथ ब्लॉक के दफ्तर पहुंचने पर उन्होंने देखा कि वहां पर लगी पंडित जवाहर लाल नेहरू की तस्वीर गायब थी।
अपने सेकेट्री से पूछने पर पता लगा कि कुछ अधिकारियों ने जानबूझकर वह तस्वीर वहां से हटा दी थी क्योंकि पंडित नेहरू विरोधी दल से ताल्लुक रखते थे। पर वाजपेयी जी ने आदेश देते हुए कहा कि उस तस्वीर को फिर से वहीं लगा दिया जाए।
आज सत्तारूढ़ दल अतीत के सौहार्दपूर्ण इतिहास को दफन करने में कोई कोर-कसर छोड़ता दिखाई नहीं देता। हर राजनीतिक दल और व्यक्ति की अपनी विचारधारा होती है और विभिन्न मुद्दों पर आलोचना या निंदा होना स्वाभाविक है।
अभिव्यक्ति और विचारों की स्वतंत्रता लोकतंत्र के अनिवार्य पहलू हैं। लेकिन आज जिस तरह चारित्रिक हनन से लेकर अमर्यादित भाषा का प्रयोग हो रहा है उसमें नई पीढ़ी के इन तीनों युवा नेताओं ने सौहार्द की जो मिसाल पेश की है उसे नई सुबह की तरह देखना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
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