बिहार में कड़ाके की ठंड पड़ रही है लेकिन राजनीति अचानक गर्म हो गयी है। गांधी मैदान में धरना पर बैठे प्रशांत किशोर 6 जनवरी को अल सुबह गिरफ्तार हुए और अदालत से जमानत पर छूट भी गए। उधर सांसद पप्पू यादव और उनके करीब दो सौ समर्थकों पर भी मुकदमा दर्ज हो गया है। प्रशांत और पप्पू यादव दोनों ही बिहार प्रशासनिक सेवा (बी पी एस सी ) की हाल में हुई परीक्षा को रद्द करने की कुछ छात्रों की मांग के समर्थन में आंदोलन कर रहे हैं। आरोप है कि बी पी एस सी की परीक्षा के पेपर लीक हो गए थे।
प्रशांत ने अब इस आंदोलन के लिए राहुल गांधी और तेजस्वी यादव से भी समर्थन मांगा है। और कहा है कि ये छात्रों का आंदोलन है और वो व्यक्तिगत रूप से छात्रों का समर्थन कर रहे हैं। प्रशांत चाहे जितनी सफ़ाई दें, उनके विरोधी आरोप लगा रहे हैं कि वो छात्र आंदोलन की आग में अपनी राजनीति की रोटी सेंकने की कोशिश कर रहे हैं। लोक सभा का पिछला चुनाव जीतने के बाद पप्पू यादव भी अपनी राजनीतिक हैसियत बढ़ाने में जुटे हैं। बहर हाल सरकार परीक्षा रद्द करने के लिए तैयार नहीं है। सरकार इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं है कि पेपर लीक हुआ है।
नीतीश का एन डी ए राग
पत्रकार इस बात को लेकर परेशान हैं कि एन डी ए को लेकर मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के मन में क्या चल रहा है। मुजफ्फर पुर में प्रगति यात्रा पर पहुंचे नीतीश से पत्रकारों ने एक बार फिर जानने की कोशिश की कि आर जे डी गठबंधन में शामिल होने के लालू प्रसाद के आमंत्रण को स्वीकार करेंगे या नहीं। नीतीश ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया। लेकिन इतना जरूर कहा कि उन्हें पहले भी आर जे डी के साथ जाने का अफ़सोस है। उन लोगों (आर जे डी ) के साथ दो बार गया लेकिन उन्होंने कुछ काम नहीं किया। पत्रकार इस जवाब को रहस्यमय मानते हैं।
ख़ास कर इस लिए भी कि गृह मंत्री अमित शाह के एक बयान से बिहार की सियासत में सनसनी फैल गयी थी। शाह से पूछा गया कि अगले विधान सभा चुनावों के बाद मुख्य मंत्री कौन होगा तो उन्होंने जवाब दिया कि चुनाव के बाद बैठ कर तय कर लेंगे। तब से नीतीश के कई समर्थकों को डर है कि विधान सभा चुनाव के बाद बी जे पी अपनी पार्टी के किसी नेता को मुख्य मंत्री बना सकती है। फिर नीतीश का क्या होगा। वो केंद्र में मंत्री बनेंगे या फिर किसी राज भवन में स्थापित होंगे।
इसी ऊहापोह के बीच नए साल के पहले दिन उनके पुराने राजनीतिक मित्र और शत्रु लालू प्रसाद यादव ने आर जे डी गठबंधन में उनकी वापसी का दरवाजा खोलने की बात करके राजनीतिक सनसनी और बढ़ा दी। नीतीश ने इस पर कोई साफ़ टिप्पणी नहीं की। अगले दिन राज भवन में पत्रकारों ने पूछ लिया कि क्या वो लालू के प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं तो नीतीश ने सिर्फ़ इतना जवाब दिया कि “ये क्या बात हुई” इसके साथ ही उनके चेहरे पर एक अनोखी मुस्कान पसर गयी। राजनीति के पंडित अब उनकी मुस्कान का रहस्य ढूंढ़ रहे हैं।
सवाल ये है कि क्या नीतीश एक बार फिर आर जे डी के साथ जा सकते हैं। कुछ हफ़्ते पहले नीतीश ने राज्य में प्रगति यात्रा शुरू की तब भी कई सवाल उठे। आख़िर इस ठंढ में वो राजनीतिक यात्रा पर क्यों निकल पड़े हैं। अक्टूबर - नवंबर में होने वाले विधान सभा चुनावों के बाद क्या नीतीश को मुख्य मंत्री पद छोड़ना पड़ सकता है। ठीक उसी तरह जिस तरह महाराष्ट्र में शिंदे को मुख्यमंत्री पद से हटाया गया।
क्या करेंगे नीतीश ?
कुछ दिनों पहले तक “ एन डी ए अब कभी नहीं छोड़ने” का राग अलापने वाले नीतीश आर जे डी के साथ जाने के सवाल का सीधा जवाब क्यों नहीं देते। राज्य की राजनीति के जानकारों का मानना है कि नीतीश उतनी आसानी से पद नहीं छोड़ेंगे जितनी आसानी से शिंदे ने मुख्य मंत्री की कुर्सी छोड़ कर उप मुख्यमंत्री का पद ले लिया। नीतीश के पास आर जे डी गठबंधन में जाने का विकल्प खुला हुआ है। वहां भी उन्हें मुख्यमंत्री का पद आसानी से मिल जाएगा।
लेकिन राजनीतिक पंडितों का मानना है कि इस समय नीतीश की सबसे बड़ी चिंता विधान सभा चुनावों में एन डी ए गठबंधन में ही ज़्यादा से ज़्यादा सीटें पाने की है। 2020 के चुनावों में लगभग आधी सीटें नीतीश की पार्टी को मिली थीं। लेकिन उनका स्ट्राइक रेट अच्छा नहीं रहा। उनके करीब 120 उम्मीदवारों में से 43 ही चुनाव जीत सके। जबकि बी जे पी 72 सीटें जीतने में कामयाब रही। इस बार बी जे पी के नेता ज़्यादा सीटों पर लड़ने की वकालत कर रहे हैं।
2020 में नीतीश के दबाव के कारण चिराग पासवान के नेतृत्व वाले एल जे पी को एन डी ए से बाहर रहना पड़ा था। चिराग ने जे डी यू के उम्मीदवारों के खिलाफ चुन चुन कर उम्मीदवार खड़े किए। जे डी यू के ख़राब प्रदर्शन का एक कारण एल जे पी को भी माना गया। 2024 के लोक सभा चुनाव में चिराग की एन डी ए में फिर वापसी हुई और 5 लोक सभा सीटें जीत कर चिराग विधान सभा चुनावों में ज़्यादा सीटों के मजबूत दावेदार बन गए हैं। ये अलग बात है कि केंद्र सरकार में सीधी भर्ती, एस सी कोटा, जाति जनगणना और कुछ अन्य मुद्दों पर अलग राय रखने के कारण बी जे पी नेतृत्व उनसे खुश नहीं है। नीतीश और उनकी पार्टी के अन्य नेता किसी भी हाल में राज्य की 243 में से आधी से कम सीट लेने के लिए तैयार दिखाई नहीं दे रहे हैं। एन डी ए में बात नहीं बनी तो उनके पास एक विकल्प आर जे डी तो हो ही सकता है।
तेजस्वी के तरकश में कितने तीर
लालू यादव ने नीतीश के लिए दरवाजा खोलने की बात कर दी लेकिन उनके बेटे तेजस्वी ने तुरंत संकेत दिया कि आर जे डी गठबंधन में नीतीश की वापसी आसान नहीं होगी। तेजस्वी ने अपने पिता के बयान को सिर्फ पत्रकारों को खुश करने के लिए दिया गया बयान बता कर उसे हवा में उड़ाने की कोशिश की। पिछले 10 सालों में नीतीश के दो बार खेमा बदलने से तेजस्वी नाराज हैं, हालांकि सरकार में वापस लौटने के लिए तेजस्वी के पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है। कांग्रेस और वाम पंथी दलों के साथ बेहतर ताल मेल के कारण उनकी स्थिति अच्छी हुई है,लेकिन प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के चलते उनको राजनीतिक नुकसान का डर है।
अपनी राय बतायें