बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (जे डी यू ) के आला कमान तेजस्वी यादव ने कांग्रेस पार्टी को नया झटका दिया है। तेजस्वी ने यह कह कर सबको चौका दिया कि आई एन डी आई ए गठबंधन सिर्फ 2024 के लोक सभा चुनावों के लिए था। उनके इस बयान को ये संकेत माना गया कि इस साल के आखिर में होने वाले राज्य विधान सभा के चुनावों में कांग्रेस पार्टी के साथ उनकी पार्टी का गठबंधन नहीं होगा।तो क्या ये मान लिया जाए कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, दिल्ली में आम आदमी पार्टी और बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की तरह बिहार में आर जे डी ने अलग रास्ता पकड़ने का फैसला कर लिया है।
क्या तेजस्वी के इस फैसले को पार्टी सुप्रीमो लालू यादव मान लेंगे। बिहार की राजनीति को करीब से जानने वाले लोगों का कहना है कि राज्य की राजनीतिक परिस्थिति उत्तर प्रदेश, बंगाल और दिल्ली से अलग है, इसलिए कांग्रेस से गठबंधन टूटने का नुकसान आर जे डी को भी हो सकता है। आर जे डी सिर्फ वामपंथी पार्टियों के सहारे बी जे पी और जे डी यू जैसी मजबूत पार्टियों के एन डी ए गठबंधन का मुकाबला नहीं कर सकती है। यही कारण है कि लालू यादव ने नए साल में जे डी यू और नीतीश कुमार के लिए अपने गठबंधन का दरवाजा खोलने की घोषणा कर दी। तेजस्वी ने लालू के इस बयान को भी गंभीरता से नहीं लिया।
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जातीय समीकरण
आर जे डी का राजनीतिक प्रभाव पूरे बिहार पर है। लेकिन यह भी सच है कि उसे मुख्य तौर पर यादव और मुसलमानों की पार्टी माना जाता है। सिर्फ़ इन दोनों जातियों के बूते पर विधान सभा में बहुमत मिलना असंभव है। 2005 से पहले लालू के साथ अन्य पिछड़ी जातियों के लोग भी जुड़े थे, इसलिए क़रीब 15 वर्षों तक लालू सत्ता में बने रहे। नीतीश कुमार ने अति पिछड़ों और अति दलितों को अलग करके लालू की राजनीतिक शक्ति को कमजोर कर दिया। सवर्ण मुख्य रूप से पहले कांग्रेस के साथ थे, और बाद में बी जे पी के साथ चले गए।अभी भी सवर्णों का एक वर्ग कांग्रेस के साथ है। जिन सीमित इलाकों में आर एल जे पी और रामबिलास पासवान का दबदबा था, और अब उनके बेटे चिराग पासवान का है उन इलाकों को छोड़ दें तो बाकी हिस्सों में दलितों पर कांग्रेस का प्रभाव अभी भी है। तेजस्वी अगर कांग्रेस के साथ गठबंधन को तोड़ते हैं तो उन्हें सवर्णों और दलितों का बचा खुचा समर्थन मिलना मुश्किल हो जाएगा।लालू इस बात को अच्छी तरह समझते हैं, इसलिए नीतीश कुमार के लिए दरवाजा खोलने की बात करते हैं और युवा जोश में तेजस्वी उनकी इस बात को टाल जाते हैं।
टिकट में हिस्सेदारी
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि गठबंधन को लेकर बयानबाजी असल में टिकट बंटवारे की पेशबंदी से ज़्यादा कुछ नहीं है। 2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 70 सीटें मिली थीं। उनमें से कांग्रेस सिर्फ 19 सीटें जीत पायी थी। तेजस्वी इस बार कांग्रेस को कम सीटें देना चाहते हैं। जबकि कांग्रेस ज़्यादा सीटों का दावा कर रही है। अखिलेश यादव की तरह तेजस्वी भी दबाव की राजनीति कर रहे हैं, पर एक बड़ा ख़तरा बिहार में उनके गठबंधन के लिए राजनीतिक माहौल खराब होने का है।
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तेजस्वी को चुनावी रणनीति बनाने की कला बी जे पी से सीखना चाहिए। बी जे पी जानती है कि बिहार में अकेले चलना मुश्किल है,इसलिए वो हर हाल में नीतीश कुमार और चिराग पासवान के साथ साथ जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेताओं को भी साथ बनाये रखती है। 2024 के लोक सभा चुनावों में गठबंधन बनाये रखने के लिए अपनी 2019 में एक जीती हुई सीट भी बी जे पी ने क़ुर्बान कर दी थी। तेजस्वी इन दिनों जोड़ने की जगह तोड़ने की की दिशा में कदम बढ़ाते दिख रहे हैं।
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