समाजवाद के प्रखर चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि जब सड़कें सूनी हो जाती हैं तो संसद आवारा हो जाती है। डॉ. लोहिया ने बिलकुल ठीक कहा था और बीते कुछ सालों से सड़कें सूनी थीं लेकिन इन दिनों पेगासस जासूसी मामला हो या किसान आंदोलन का या फिर कोरोना की दूसरी लहर में मोदी सरकार की नाकामियों का, इन मुद्दों को लेकर संसद से लेकर सड़क तक ख़ूब शोर हो रहा है और इसका सीधा मतलब यह है कि विपक्ष अब नींद से जाग गया है।
हुक़ूमत किसी भी दल की हो, विपक्ष का काम लगातार सत्ता पक्ष को कठघरे में खड़े करने का है। इसलिए जम्हूरियत को जिंदा रखने में विपक्ष का बड़ा रोल माना जाता है।
ख़ैर, जम्हूरियत में भरोसा रखने वाले लोगों को ये देखकर काफ़ी सूकून मिला है कि जिन लोगों को उन्होंने अपनी नुमाइंदगी करने के लिए देश की सबसे ऊंची पंचायत में भेजा था, वहां वे उनके मुद्दों के साथ ही उन मुद्दों के लिए भी हुक़ूमत से टकरा रहे हैं जो इस मुल्क़ की लोकतांत्रिक व्यवस्था से सीधा ताल्लुक रखते हैं।
लोग देख रहे हैं कि पेगासस जासूसी मामले में विपक्ष ने सरकार पर इस बात के लिए दबाव बनाया है कि वह अगर पाक साफ है तो इस मामले की जांच क्यों नहीं कराती जबकि दीगर कई मुल्क़ों में जासूसी मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं।
दूसरा मसला किसान आंदोलन का है। किसान तो संसद के नज़दीक प्रदर्शन कर ही रहे हैं, विपक्ष ने इसे भी जोरदार ढंग से संसद के दोनों सदनों में उठाया है। इसके अलावा कोरोना की दूसरी लहर में मोदी सरकार की नाकामियों और ऑक्सीजन की कमी से मौत न होने के बयान पर भी विपक्ष ने सत्ता पक्ष की जमकर ख़बर ली है।
कभी पूछा ही नहीं
ऑक्सीजन की कमी से मौत न होने के मामले में छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने कहा है कि केंद्र सरकार का यह बयान गुमराह करने वाला है क्योंकि केंद्र सरकार ने कभी राज्यों से पूछा ही नहीं कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत हुई है या नहीं। उन्होंने कहा कि कम से कम छत्तीसगढ़ के मामले में ऐसा ज़रूर है। यहां पर केंद्र सरकार फंसती दिख रही है और इसे भी मुद्दा बनाए जाने की ज़रूरत है।
लड़ना ही पड़ेगा
विपक्ष की लगभग निष्क्रियता से यह संदेश जा रहा था कि केंद्र सरकार के लिए राह अब आसान होने जा रही है। लेकिन पिछले साल नवंबर में सड़क पर उतरे और अब तक डटे किसानों ने उसे यह समझाया है कि अपने हक़ के लिए लड़ना ही पड़ेगा। इसके बाद चाहे कांग्रेस हो या एनसीपी या फिर टीएमसी, शिव सेना और बाक़ी विपक्षी दल, वे एकजुट हुए हैं और तमाम मामलों को पुरजोर ढंग से उठा रहे हैं।
2024 हालांकि अभी दूर है लेकिन विपक्ष को इस बात को समझना होगा कि राजनीति में सत्ता को घेरने के बड़े मौक़े बार-बार नहीं आते। जिस तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बीजेपी को हराने के लिए लगातार विपक्षी दलों की एकता पर जोर दे रही हैं और जल्द ही दिल्ली का दौरा करने वाली हैं, उससे भी विपक्षी दलों में करंट दौड़ा है।
सुननी पड़ेगी आवाज़
हुक़ूमत चाहे किसी की भी हो, विपक्ष को यह नहीं भूलना चाहिए कि उसका क्या काम है। इन दिनों वह अपने काम को करता दिख रहा है और उम्मीद की जानी चाहिए कि अगर संसद 13 अगस्त तक चली तो वह सरकार को चाहे किसानों का मसला हो, पेगासस जासूसी का मसला हो या फिर कोई और, बैकफ़ुट पर ला देगा और सरकार को आम लोगों की आवाज़ को सुनना ही पड़ेगा।
अगर विपक्ष ऐसा करने में कामयाब रहा तो यकीन मानिए कि मुल्क़ की जम्हूरी व्यवस्था में यह एक ठंडी हवा के ताज़ा झोंके की तरह होगा जो यहां की अवाम को ताजगी से भर देगा और ऐसा करके विपक्ष हुकू़मत को भी अपने जिंदा होने का अहसास कराएगा।
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