बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बुधवार को एक ऐसे मुद्दे को हवा दे दी, जो बिहार के लोगों के दिल को छूता है। बुधवार को नीतीश ने कैबिनेट की बैठक बुलाई और बिहार को विशेष राज्य के दर्जे का प्रस्ताव पारित किया। नीतीश राज्य को विशेष दर्जा देने की मांग दिल्ली से लंबे समय से कर रहे हैं। कैबिनेट मीटिंग खत्म होने के बाद नीतीश फौरन ही सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखकर इसका खुलासा भी कर दिया। सोशल मीडिया पर नीतीश की पोस्ट अब वायरल हो गई है। इस उन्होंने बुधवार दोपहर करीब पौने 1 बजे शेयर किया।
“
कितनी जरूरी है ये मांगः बिहार के अपर मुख्य सचिव एस सिद्धार्थ का कहना है, ''...भूमिहीनों को जमीन और बेघर परिवारों को घर देने के लिए 2.5 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की जरूरत है...इतनी बड़ी रकम पाने के लिए...'' यह जरूरी है कि राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिले ताकि यह काम तेजी से हो... 2010 से केंद्र सरकार को बार-बार अनुरोध भेजा गया है... अब तक केंद्र सरकार ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया है।''
नीतीश कुमार ने बुधवार को अपनी लंबी पोस्ट में लिखा- "कैबिनेट ने केंद्र से बिहार को विशेष श्रेणी का दर्जा देने का अनुरोध करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया है।" जिसमें उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सरकार द्वारा कराए गए जाति सर्वेक्षण के निष्कर्षों के बाद यह नई मांग जरूरी हो गई है।
नीतीश ने लिखा है- देश में पहली बार बिहार में जाति आधारित गणना का काम कराया गया है। जाति आधारित गणना के सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक स्थिति के आंकड़ों के आधार पर अनुसूचित जाति के लिये आरक्षण सीमा को 16 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षण की सीमा को 1 प्रतिशत से बढ़ाकर 2 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिये आरक्षण की सीमा को 18 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत तथा पिछड़ा वर्ग के लिये आरक्षण की सीमा को 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दिया गया है अर्थात सामाजिक रूप से कमजोर तबकों के लिये आरक्षण सीमा को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया गया है। सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिये 10 प्रतिशत आरक्षण पूर्ववत लागू रहेगा। अर्थात इन सभी वर्गो के लिए कुल आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दिया गया है।
कब-कब उठी विशेश दर्जे की मांगः नीतीश ने अपनी पोस्ट में लिखा है कि हमलोग बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की माँग वर्ष 2010 से ही कर रहे हैं। इसके लिए 24 नवम्बर, 2012 को पटना के गाँधी मैदान में तथा 17 मार्च, 2013 को दिल्ली के रामलीला मैदान में बिहार को विशेष राज्य के दर्जे के लिए अधिकार रैली भी की थी। हमारी माँग पर तत्कालीन केन्द्र सरकार ने इसके लिए रघुराम राजन कमेटी भी बनाई थी जिसकी रिपोर्ट सितम्बर, 2013 में प्रकाशित हुई थी। परन्तु उस समय भी तत्कालीन केन्द्र सरकार ने इसके बारे में कुछ नहीं किया। मई, 2017 में भी हम लोगों ने विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए केन्द्र सरकार को पत्र लिखा था।
क्या है नीतीश की राजनीति
नीतीश का यह पत्र पूरी तरह से राजनीतिक है। उन्होंने इसमें दो प्रमुख राजनीतिक दलों को निशाना बनाया है। वो हैं- कांग्रेस और भाजपा। दोनों ही पार्टियों में इस समय पिछड़ों (ओबीसी) समर्थक बनने की होड़ चल रही है। जबकि नीतीश कह रहे हैं कि यह उनका उठाया हुआ मुद्दा है, जिससे ओबीसी जुड़ा है। नीतीश ने पिछले साल भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया था। उसके बाद 2023 में विपक्षी गठबंधन इंडिया को खड़ा करने में मुख्य भूमिका निभाई। अब वो इस बात पर जोर दे रहे हैं कि केंद्र में अगली सरकार अगर इंडिया या भाजपा की बनती है, तो वह "सभी दलों से बिहार को विशेष दर्जा" देने की मांग उठाएंगे या वादा कराएंगे। ऐसे में चुनाव हारने या जीतने के बाद भी वो खुद को प्रासंगिक बनाए रखेंगे।
बहरहाल, कोटे में वृद्धि के साथ वंचित जातियों को अपने पक्ष में करने की उम्मीद करते हुए नीतीश हाल ही में लंबे समय से चली आ रही मांग को नए जोश के साथ दोहरा रहे हैं। उन्होंने हाल ही में विधानसभा में भी मांग उठाई। विधानसभा में वो नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में कोटा बढ़ाने पर विधेयक लाए।
पिछले हफ्ते उन्होंने विशेष राज्य के दर्जे की मांग पूरी नहीं होने पर राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करने की धमकी दी थी। उनकी ये सारी गतिविधियां राजनीतिक हैं और भाजपा उनसे बहुत परेशान भी है। विशेष राज्य के मुद्दे पर उनका प्रदेशव्यापी आंदोलन किसी भी समय शुरू हो सकता है। अगर गौर से देखा जाए तो वो एक एक कदम बहुत सधे हुए तरीके से रख रहे हैं। पहले उन्होंने भाषणों के जरिए केंद्र को विशेष राज्य के दर्जे की मांग की याद दिलाई। फिर बुधवार 22 नवंबर को इस पर कैबिनेट मीटिंग बुलाकर प्रस्ताव पारित कराया और उसके फौरन बाद खुद ही इसका खुलासा कर दिया, ताकि आरजेडी के नेता इस पर बयान देकर खुद श्रेय नहीं ले सकें। इसके बाद अब उनका अगला कदम इस मुद्दे पर घूम-घूम कर रैलियां करना है।
नीतीश ने जब ओबीसी सर्वे की घोषणा की तो भाजपा ने इसका अपनी तरह से विरोध और समर्थन किया। अदालत में इसका खुलकर विरोध किया लेकिन सार्वजनिक सभाओं और मीडिया के सामने इसका समर्थन किया। ओबीसी सर्वे के बाद बिहार सरकार ने इसका ऐलान भी कर दिया। इसमें पाया गया राज्य में ओबीसी और मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा है। भाजपा ने इस पर आरोप लगाया कि इसमें मुसलमानों की आबादी को बढ़ाकर दिखाया गया है।
ओबीसी सर्वे की रिपोर्ट जारी करने के बाद नीतीश सरकार फौरन ही नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में कोटा बढ़ाने का प्रस्ताव भी ले आई। भाजपा ने इसमें भी कमियां निकालीं। भाजपा जब तक इसकी काट तलाशती, नीतीश ने अब विशेष राज्य के दर्ज का मुद्दा छेड़ दिया है।
अपनी राय बतायें