कैसे बदले समीकरण
आरएलडी, जो 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान सपा और बसपा के साथ और 2022 के विधानसभा चुनावों में सपा के साथ गठबंधन में थी, ने इस बार बीजेपी के साथ गठबंधन किया है। बताते हैं कि मुज़फ़्फ़रनगर सीट को लेकर ही सपा-आरएलडी गठबंधन टूटा। जयंत यह सीट चाहते थे। लेकिन सपा ने मना कर दिया। जयंत ने भाजपा का रुख किया, वहां संजीव बालियान को भाजपा क्यों हटाती। हालांकि सपा मुजफ्फरनगर सीट आरएलडी को देने को तैयार थी, लेकिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव की मांग थी कि हरेंद्र मलिक रालोद के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ें, यह सुझाव जयंत चौधरी के लिए कड़वी गोली की तरह था। इसके चलते गठबंधन टूट गया।कुल मिलाकर मुजफ्फरनगर सीट पर बदले समीकरण में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता चरम पर है। शह और मात का खेल चल रहा है। संजीव बालियान को आरएलडी प्रभाव वाले और राजपूत प्रभाव वाले गांवों में जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा है। एक गांव में तो बालियान की गाड़ियों के शीशे तक तोड़ दिए गए। राजपूतों ने पहले ही पंचायत करके भाजपा प्रत्याशी को वोट न देने का फैसला कर लिया है।
2022 का प्रदर्शन
2022 में किसान आंदोलन के कारण पश्चिमी यूपी में माहौल सपा-आरएलडी के पक्ष में था। नतीजा यह निकला कि यूपी विधानसभा चुनावो में उनकी जीत हुई। लेकिन इस बार मामला अलग है। किसान नेता राकेश टिकेत-नरेश टिकैत ने संजीव बालियान के लिए खुलकर वोट की अपील नहीं की है। न ही उन्होंने सपा के हरेंद्र मलिक के लिए अपील की है। टिकैत बंधु अगर भाजपा प्रत्याशी का समर्थन करते हैं तो उनकी भारतीय किसान यूनियन से जुड़े मुसलमान नाराज हो सकते हैं। पश्चिमी यूपी के जाट बेल्ट में जाट और मुसलमान तमाम जगहों पर मिलकर वोट करते हैं। यही भाईचारा 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों में टूट गया था, जिसके लिए आज भी संजीव बालियान और संगीत सोम को जिम्मेदार ठहराया जाता है।मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र में सपा-रालोदगठबंधन 2022 में तीन सीटें हासिल करने में कामयाब रहा था, जबकि भाजपा ने दो सीटें जीतीं थी। इसके बाद खतौली उपचुनाव में बीजेपीरालोद से एक और सीट हार गई, जिससेगठबंधन के पक्ष में सीटें 4-1 हो गईं। हालाँकि, बाद के घटनाक्रम में, आरएलडीने भाजपा के साथ गठबंधन करने का फैसलाकिया। लेकिन मुस्लिम मतदाताओं का एक महत्वपूर्ण प्रतिशत, जो लोकसभा के कुल मतदाताओंका लगभग 39 प्रतिशत है, औरजाटों के एक गुट ने भाजपा के साथ गठबंधन करने के जयंत चौधरी के फैसले पर निराशा औरअसंतोष व्यक्त किया।
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मुजफ्फरनगर शहर में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के बीच साझाआम सहमति सपा के उम्मीदवार की ओर नजर आ रही है। उन्हें 2013 के सांप्रदायिक दंगे अच्छी तरह यादहैं, जिसने शहर मेंसद्भाव और प्रगति को काफी हद तक बाधित कर दिया था। कई लोगों ने ऐसे विभाजनकारी समयको दोबारा न देखने की इच्छा व्यक्त की।
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