तीन तलाक़ विधेयक लोकसभा में पास हो गया है। राज्यसभा में पास होगा या नहीं, इस पर संशय बना हुआ है। विधेयक क़ानून का रूप ले पाएगा या नहीं, यह इस पर निर्भर करेगा कि राज्यसभा में इस विधेयक का क्या होता है। लेकिन देश का मुसलमान इस विधेयक को मजहबी मामलों में सरकार की ग़ैरज़रूरी दख़लअंदाज़ी मानता है। यही वजह है कि तीन तलाक़ का विरोध करने वाले तमाम संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता भी इस विधेयक का समर्थन नहीं कर रहे हैं। सबका मानना है कि अगर यह विधेयक इसी रूप में लागू होता है तो इससे मुस्लिम समाज पर बुरा असर पड़ेगा। इससे कहीं ना कहीं संवैधानिक रूप से मिली उनकी धार्मिक आज़ादी कमज़ोर होगी।
तीन तलाक़ बिल को मुसलमान मानते हैं मज़हब में दख़लंदाज़ी
- राजनीति
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- 7 Feb, 2019
मुसलमानों का कहना है कि सत्तारूढ़ दल तीन तलाक़ के बहाने अपना राजनीतिक अजंडा लागू करना चाहता है, सरकार इस मुद्दे पर समाज से राय मशविरा ले कर अब भी काम कर सकती है।

तीन तलाक विधेयक का पुरज़ोर विरोध करने वाला ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड लोकसभा में इसके पास किए जाने को सरकार की हठधर्मिता क़रार देता है। पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फ़ारुक़ी ने 'सत्य हिंदी' से कहा कि मुसलमानों के मजहबी मामलों में यह सरकार की खुली दख़लअंदाज़ी और दादागिरी है। कमाल फ़ारुक़ी पूछते हैं कि जब दुनिया के किसी देश में तलाक़ को अपराध नहीं माना गया है और भारत में भी किसी भी समुदाय में इसे अपराध नहीं माना गया है तो सिर्फ मुसलमानों के मामले में इसे अपराध मारकर तीन साल की सज़ा का प्रावधान क्यों थोपा जा रहा है ?