दिल्ली में दो दिन चली बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक इस उम्मीद के साथ ख़त्म हुई के सवर्णों के लिए 10% आरक्षण और राम मंदिर के मुद्दे पर हो रहा ध्रुवीकरण उसे फिर से केंद्र की सत्ता में वापस लाएगा। हालाँकि कार्यकारिणी की बैठक में पास किए गए राजनीतिक प्रस्ताव में अयोध्या मुद्दे का ज़िक्र नहीं है। इसमें सिर्फ़ पिछले 5 साल में मोदी सरकार के कामकाज का बखान है। अमित शाह ने जिस अंदाज़ में अपने उद्घाटन भाषण में अयोध्या मुद्दे को उठाया उससे बीजेपी कार्यकर्ताओं में साफ़ तौर पर संदेश गया है कि अगर अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला राम मंदिर के हक़ में नहीं आता है तो सरकार अध्यादेश लाने से नहीं चूकेगी।
ग़रीबों को आरक्षण और राम मंदिर से जीत की उम्मीदें लगा रखी हैं मोदी और शाह ने
- राजनीति
- |
- |
- 2 Feb, 2019

दिल्ली में दो दिन चली बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक इस उम्मीद के साथ ख़त्म हुई के सवर्णों के लिए 10% आरक्षण और राम मंदिर के मुद्दे पर हो रहा ध्रुवीकरण उसे फिर से केंद्र की सत्ता में वापस लाएगा।
ग़ौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के समापन भाषण में अयोध्या मुद्दे का ज़िक्र नहीं किया। इस साल के पहले दिन एक न्यूज़ एजेंसी को दिए अपने इंटरव्यू में उन्होंने यह बात साफ़ कर दी थी कि सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने से पहले सरकार का राम मंदिर निर्माण को लेकर अध्यादेश लाने या क़ानून बनाने का कोई इरादा नहीं है। ऐसा लगता है कि रणनीतिक तरीक़े से मोदी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अयोध्या मुद्दा नहीं छुआ। जबकि इस पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह मुखर होकर बोले। शाह ने अपने उद्घाटन भाषण में ज़ोरदार तरीक़े से अयोध्या के मुद्दे को उठाया। उन्होंने कहा, 'भारतीय जनता पार्टी चाहती है कि उसी स्थान पर भव्य राम मंदिर का निर्माण हो, और यह जल्द से जल्द हो। मैं आश्वस्त करता हूँ कि संवैधानिक तरीक़े से भव्य राम मंदिर बनाने के लिए हम कटिबद्ध थे, हैं और आगे भी रहेंगे।' अमित शाह ने आगे कहा, 'सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर पर सुनवाई चल रही है। हम जल्द सुनवाई के लिए प्रयास कर रहे हैं। लेकिन कांग्रेस एंड कंपनी सुनवाई को हटाने के लिए लगातार प्रयत्न कर रही है। कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई को टालने के लिए दलीलें दी हैं।' अमित शाह ने जिस अंदाज़ में अपने भाषण में इस मुद्दे का ज़िक्र किया उससे साफ़ है कि बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं को इस मुद्दे पर आक्रामक करना चाहती है। ऐसा कहकर अमित शाह ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को साफ़ संदेश दे दिया है कि समाज में राम मंदिर के निर्माण में हो रही देरी के लिए कांग्रेस को ही ज़िम्मेदार ठहराया जाए।
पार्टी कार्यकर्ताओं को मोदी का मंत्र
पहली बार बीजेपी ने इतने बड़े स्तर पर राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की है। इसमें देशभर से मंडल स्तर के कार्यकर्ताओं को बुलाया गया। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हुई इस राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तमाम कार्यकर्ताओं को चुनाव में जीत का मंत्र देकर वापस भेजा है। मंत्र यह है कि मोदी सरकार के पाँच साल में ग़रीबों, महिलाओं और मध्यम वर्ग के लिए किए गए काम को अभी से जनता के बीच पहुँचाने में जुट जाएँ। बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पहली बार प्रधानमंत्री कार्यालय भी बनाया गया और बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए भी अलग से दफ्तर बनाया गया। अपने भाषण में ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी इसे लेकर भावुक हो गए और बोले कि कभी दो कमरों से चलने वाली और दो सांसद जीतने वाली पार्टी इतने भव्य स्तर पर कार्यकारिणी की बैठक करेगी, शायद किसी ने सोचा नहीं होगा।
मज़बूत या मजबूर सरकार?
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पास किए गए राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया है कि देश के सामने दो विकल्प हैं। एक यह कि वह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की मज़बूत सरकार चुनें या फिर किसी और गठबंधन वाली कमज़ोर सरकार को चुने। राजनीति प्रस्ताव में कहा गया है कि देश के विकास के लिए मजबूत सरकार का होना बहुत ज़रूरी है। मजबूर सरकार देश का विकास नहीं कर सकती। और इससे पहले देश कई बार इस तरह के प्रयोग देख चुका है। इशारा साफ़ है कि उत्तर प्रदेश में हुए समाजवादी पार्टी और बीएसपी गठबंधन के साथ कांग्रेस के नेतृत्व में चल रही महागठबंधन बनाने की कोशिशों पर चोट की गई है। इससे यह साफ़ लगता है कि इन गठबंधनों से बीजेपी को ख़तरा नज़र आ रहा है। ख़ासकर, उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा के गठबंधन से उसे ख़ासे नुक़सान की आशंका है।