प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली की एक अदालत को बताया है कि अगुस्ता वेस्टलैंड मामले के एक आरोपी क्रिश्चन मिशेल ने पूछताछ में सोनिया गाँधी का नाम लिया है। यह नाम किस संदर्भ में लिया है, यह ईडी के वकील ने नहीं बताया लेकिन सारे मीडिया में ख़बर चल गई कि मिशेल ने सोनिया का नाम लिया। मैं नहीं जानता कि इस मामले में सोनिया, राहुल या किसी भी कांग्रेसी नेता का हाथ है या नहीं लेकिन बिना संदर्भ बताए किसी का नाम लिए जाने का ज़िक्र करना और उसके आधार पर हेडलाइन चलवा देना अपने-आपमें एक राजनीतिक बदमाशी है। इस तरह से तो किसी भी आरोपी के मुँह से किसी का भी नाम बुलवाया जा सकता है। मसलन कल को रफ़ाल से जुड़े किसी आरोपी से पूछा जाए कि अभी भारत का प्रधानमंत्री कौन है और वह नरेंद्र मोदी का नाम ले तो क्या सीबीआई का वकील कोर्ट से कहेगा कि हम संदर्भ तो नहीं बताएँगे लेकिन रफ़ाल मामले में संदिग्ध इस आरोपी ने मोदी का नाम लिया? और क्या तब मीडिया यह हेडलाइन चलाएगा कि रफ़ाल के आरोपी ने मोदी का नाम लिया!

मोदी के नाम से याद आया। यदि किसी के द्वारा नाम लिये जाने से या किसी डॉक्युमेंट में नाम आने से ही कोई दोषी ठहराया जा सकता तो आज नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं होते, किसी जेल में बंद होते। मैं नीचे केवल दो उदाहरण दूँगा जहाँ मोदी का नाम आया है या लिया गया है। पहला मामला पैसे लेने का है वह भी कैश में और दूसरा दंगे भड़काने का। पहले पैसों का मामला क्योंकि अगुस्ता वेस्टलैंड में भी घूसखोरी का ही आरोप है।