तो मायावती की राजनीति है क्या? यह सवाल अगर आज पूछा जा रहा है तो हैरान नहीं होना चाहिए! मायावती ने तीन दिन में दो बार पलटी मारी है। पहले उन्होंने कहा कि वह समाजवादी पार्टी को हराने के लिये बीजेपी को भी सपोर्ट कर सकती हैं। उनका यह बयान आया तो लोग भौंचक्के रह गये। आख़िर मायावती ने यह क्यों कहा? अमूमन इस तरह की बात नेता विधानसभा या लोकसभा चुनावों के दौरान चुनावी गठबंधन के समय करते हैं। यहाँ तो सिर्फ़ राज्यसभा की कुछ सीटों के लिये ही वोट पड़ने थे। वह यह बयान नहीं भी देतीं तो चलता।

बीजेपी ने कामयाबी से यह साबित कर दिया है कि दलितों में भी मायावती सिर्फ़ जाटव बिरादरी की ही नेता हैं। बीजेपी बाक़ी दलित तबक़े को अपने साथ लाने की कोशिश में लगी है। और अगर मायावती नहीं संभलीं तो बीजेपी और आरएसएस बीएसपी को हजम कर जायेंगे। मायावती को इस बात का अंदाज़ा है। वह समझ रही हैं कि अब वह पहले की तरह महत्वपूर्ण नहीं रह गयी हैं।
उम्मीद के अनुसार बीएसपी के कार्यकर्ता हतप्रभ रह गये। मायावती को फौरन अपनी ग़लती का एहसास हुआ होगा लिहाज़ा उन्होंने बयान दिया कि बीजेपी के साथ वह कभी भी गठबंधन नहीं करेंगी। लोग कह सकते हैं कि मायावती ने भूल सुधार कर लिया है। हक़ीक़त में जब कोई नेता इस तरह से बयानबाज़ी करता है या करती है तो उसे फ़ायदा कम नुक़सान ज़्यादा होता है, नेता की छवि बनती है कि वह कनफ्यूज्ड है, समझ साफ़ नहीं है और दूरदृष्टि का अभाव है।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।