2017 में, बीजेपी ने 47 सीटें जीतीं, जबकि उसके सहयोगी अपना दल ने इस क्षेत्र में 3 सीटें जीतीं। समाजवादी पार्टी (सपा) को 5, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) को 3, कांग्रेस को 1 और दो निर्दलीय उम्मीदवारों को भी जीत मिली है। लेकिन इस बार राजनीतिक दलों के लिए माहौल बदला हुआ है। बीजेपी अपनी मजबूत सीटों पर भी सरकार विरोधी लहर का सामना कर रही हैं। सपा ने 2012 में इस क्षेत्र में अच्छी जीत हासिल की थी लेकिन 2017 में बीजेपी से हार गई। इस बार उसे उम्मीद है कि वह अपने गढ़ से बीजेपी की जुमलेबाजी को खत्म कर देगी, जबकि बीएसपी अभी किंगमेकर बनने का ख्वाब देख रही है।
बीजेपी के लिए यह क्यों महत्वपूर्ण?
अवध और पूर्वांचल पर बीजेपी पूरी मेहनत कर रही है, ताकि पहले तीन चरणों में हुए नुकसान को कम किया जा सके। पहले चरण में सपा-रालोद गठबंधन ने बीजेपी के वोट बैंक को नुकसान पहुंचाया है। 2022 में बीजेपी से जिस जाट वोटर का मोहभंग हुआ था, वह इस बार किसी और ही तरफ जाता दिख रहा है।
अवध और पूर्वांचल बेल्ट 2017 में बीजेपी का मजबूत गढ़ बन गया। 2019 के लोकसभा नतीजों ने पार्टी आलाकमान में विश्वास को मजबूत किया, जब उसने सपा और बीएसपी गठबंधन के एकसाथ आने के बावजूद यूपी में व्यापक जीत हासिल की।
बहराइच में पीएम मोदी ने रैली में कहा कि पार्टी इस मुद्दे से निपटने के लिए एक योजना लेकर आएगी। सीएम योगी आदित्यनाथ ने गाय पालने वालों को 900 रुपये देने का वादा किया है। इस बीच, अखिलेश यादव ने कहा है कि अगर पार्टी सत्ता में आती है तो अपने खेतों की रक्षा करते हुए जान गंवाने वालों को 5 लाख रुपये का मुआवजा देगी।
सरकार विरोधी लहर
सपा भी शुरू से ही राम मंदिर मुद्दे के राजनीतिकरण के खिलाफ सक्रिय रही है। शायद, यह भी एक कारण है जो अल्पसंख्यक वोटों को अपनी ओर खींचता है। लेकिन सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने इस बार अपनी रैलियों में चालाकी से इस मुद्दे को टाल दिया।
अखिलेश यादव ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि अवध और पूर्वांचल क्षेत्रों में पार्टी के पास कोई मजबूत सहयोगी नहीं है। इसके सहयोगी ओम प्रकाश राजभर का गाजीपुर-जौनपुर बेल्ट में प्रभाव है, लेकिन पूरे यूपी में उसकी पकड़ नहीं है। सपा सुप्रीमो ने अपने यादव-मुस्लिम वोटबैंक टैग से हटाने के लिए काफी प्रयास किए और अन्य जातियों को भी अपने पाले में शामिल करने की कोशिश की।
पूर्वांचल क्षेत्र में बीएसपी कहां
अपनी राय बतायें