लोकसभा चुनाव में अब करीब 3 महीने ही बचे हैं। 10 मार्च तक लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो जाएगा। सत्ताधारी बीजेपी और कांग्रेस जोर-जोर से इस चुनाव को जीतने की कोशिशों में जुटी हुई हैं। 10 साल सत्ता में रहने के बाद बीजेपी अगले चुनाव को अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे तक सीमित करने की कोशिशों में जुटी हुई है। वहीं कांग्रेस ने अपने स्थापना दिवस के मौके पर आरएसएस के गढ़ नागपुर में बड़ा कार्यक्रम करके 'हैं तैयार हम' का नारा दिया। कांग्रेस लोकसभा चुनाव में बीजेपी से मुकाबले के लिए कितना तैयार है, इसका विश्लेषण ज़रूरी है।
क्या है बीजेपी की तैयारी?
लोकसभा चुनाव में हैट्रिक लगाने की रणनीति बना रही है। नवंबर में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बड़ी जीत दर्ज करने के बाद बीजेपी के हौसले काफी बुलंद है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन राज्यों की इस जीत को लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत की हैट्रिक की गारंटी बताया था। लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले इन पांच राज्यों के चुनाव को सत्ता के संघर्ष का सेमीफाइनल माना जाता है। यह सेमीफाइनल जीतने के बाद बीजेपी पूरे जोर-जोर से सत्ता का फाइनल जीतने में जुट गई है। बीजेपी अगले लोकसभा चुनाव में अपने दम पर 350 जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है। अपने सहयोगियों के साथ मिलकर ये आंकड़ा 400 पार पहुंचने का उसका संकल्प है।
सामाजिक दायरा बढ़ाने में जुटी बीजेपी
बीजेपी लगातार अपना सामाजिक दायरा बढ़ाने में जुटी हुई है। इसके लिए वह कई स्तर पर काम कर रही है।हिंदुत्व की राजनीति के सहारे 22 तारीख को अयोध्या में राम मंदिर में होने वाले रामलला की मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम के सहारे समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रही है। गुजरे साल के आखिरी 'मन की बात' कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने 'राष्ट्र प्रथम' की बात करके बीजेपी के दूसरे मुद्दे राष्ट्रवाद को भुनाने की कोशिश की है। वहीं 'विकसित भारत संकल्प यात्रा' के ज़रिए बीजेपी केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों के बीच अपनी पैठ और मजबूत करने में जुटी है। जमीन स्तर पर चल रही भाजपा की इस मुहिम का मक़सद अगले लोकसभा चुनाव में काम से कम 5 से 10% वोट बढ़ाना है। गृहमंत्री अमित शाह अगले चुनाव में बीजेपी का 10% वोट बढ़ाने का दावा कर चुके हैं। अगर बीजेपी का 5% वोट भी बढ़ता है तो निश्चित तौर पर उसकी सीटों की संख्या 350 के आसपास पहुंचेगी।
क्या है कांग्रेस की तैयारीः बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस चुनावी तैयारी में काफी पिछड़े हुई नज़र आ रही है। जहां बीजेपी ज़मीनी स्तर पर तैयारी कर रही है वहीं कांग्रेस अभी वैचारिक स्तर तक ही सीमित है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के बाद अब 'न्याय यात्रा' निकालने जा रहे हैं। 14 जनवरी से शुरू होने वाली ये यात्रा 20 मार्च तक चलेगी। इस बीच चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका होगा। इस यात्रा को लेकर पार्टी में एक राय नहीं थी। कांग्रेस की पिछली कार्य समिति की बैठक में जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने राहुल गांधी से भारत यात्रा निकालने का आग्रह किया था तो पार्टी के कई वर्ष नेताओं ने बैठक में ही इसका विरोध किया था। उनका कहना था कि लोकसभा चुनाव सिर पर हैं। ऐसे में पार्टी को यात्रा न निकालकर सीधे चुनाव जीतने की अभी तैयार करके उसे पर अमल करना चाहिए। लेकिन उनकी राय को दरकिनार कर दो दिन बाद ही राहुल गांधी की इस यात्रा का ऐलान कर दिया गया।
सीटों का लक्ष्य तय नहीं
जहां बीजेपी लोकसभा चुनाव में 350 सीटें जीतने का लक्ष्य तय करके चुनावी तैयारी में जुटी हुई है वहीं कांग्रेस की तरफ से ऐसा कोई लक्ष्य तय नहीं किया गया है। अभी यह भी साफ नहीं है कि कांग्रेस अकेले कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी और अपने सहयोगी दलों के लिए कितनी सीटें छोड़ेगी। कांग्रेस से हमदर्दी रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस को सलाह दे रहे हैं कि कौन कि उसे ढाई सौ से 300 सीटों के बीच चुनाव लड़ना चाहिए बाकी सिम सहयोगी दिनों के लिए छोड़ देनी चाहिए लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकार इस विचार से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को पूरे दमखम के साथ से 400 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए। पार्टी में इस मुद्दे पर अभी विचार मंथन चल रहा है।
कमजोर संगठनः चुनाव में जीत हासिल करने के लिए किसी भी पार्टी का संगठन उसकी सबसे बड़ी ताकत होता है। कांग्रेस का कमजोर संगठन उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी साबित हो रहा है। मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी को नई कमेटी बनाने में साल भर से भी ज्यादा का वक्त लगा। इस बीच संगठन को मजबूत करने का काम नहीं हो पाया। क्योंकि विभिन्र पदों पर बैठे नेताओं के साथ राज्य की इकाइयों ने सहयोग नहीं किया। कांग्रेस कार्य समिति का ऐलान के कई महीने बाद महासचिवों और राज्यों के प्रभारियों के नामों का हाल ही में ऐलान हुआ है। कई राज्यों में ज़िला स्तर पर कमेटी तक नहीं है। बूथ स्तर की कमेटियां तो बहुत दूर की बात है। जहां बीजेपी बूथ स्तर के आगे 'पन्ना प्रमुख' बनाकर अपने मतदाताओं को सीधे पोलिंग बूथ तक लाने की रणनीति बनाने में जुटी है वहीं कांग्रेस अभी बूथ स्तर तक की तैयारी भी नहीं कर पाई है।
क्या कहते हैं पिछले चुनाव के आंकड़े?
पिछले चुनाव में बीजेपी को 303 सीटें और लगभग 23 करोड़ मिला था। बीजेपी को मिलने वाले वोट 37.30% थे। वहीं कांग्रेस को सिर्फ 52 सीटें और करीब 12 करोड़ वोट मिले थे। कांग्रेस को मिलने वाले वोट 19.46% थे। 2014 के चुनाव में बीजेपी को 282 सीट और सवा 17 करोड़ वोट मिले थे वोटो का प्रतिशत 31 था। जबकि कांग्रेस को सिर्फ 44 सीटें और साढ़े 10 करोड़ मिले थे। उसे मिलने वाले वोटों का प्रतिशत 19.3 था। इन आंकडों से साफ है कि 2014 के मुकाबले 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के वोटो में 7% से ज्यादा का इज़ाफ़ा हुआ था, जबकि कांग्रेस आधा प्रतिशत वोट भी नहीं बढ़ा पाई थी। इतने बड़े अंतर को पाठ पाना फिलहाल कांग्रेस के बूते के बाहर की बात लगती है।
क्या कहते हैं 2004 और 2009 के आंकड़े?
2004 में जब कांग्रेस बीजेपी को हराकर सत्ता में आई थी तो तब उसे 143 सीटें और 10.34 करोड़ वोट मिले थे। वोटो का प्रतिशत 26.53 था जबकि बीजेपी को सिर्फ 138 सीटें और 8.63 करोड़ वोट मिले थे। बीजेपी को मिले वोटो का प्रतिशत 22.16 था। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 206 सीटें और करीब 12 करोड़ वोट मिले थे। तब उसके वोटो का प्रतिशत 28.5 था जबकि बीजेपी को 116 सीटें और 7.84 करोड़ वोट मिले थे। तब बीजेपी को मिले वोटो का प्रतिशत महज़ 18.80 था। 2009 के मुकाबले 2019 में बीजेपी ने करीब तीन गुना ज्यादा वोट हासिल किए और अपना प्रतिशत लगभग दोगुना कर लिया है। कांग्रेस 2009 के मुकाबले 2019 में करीब 12 करोड़ वोटो पर ही अटकी हुई है उसके वोट प्रतिशत में 9% की गिरावट हुई है। वोटो के अंतर को पाटने के लिए कांग्रेस के पास को ठोस रणनीति अभी तक नज़र नहीं आ रही।
कांग्रेस कार्य समिति के बाद कांग्रेस में कई दिन तक राज्यों के नेताओं के साथ लोकसभा चुनाव की रणनीति पर विचार हुआ है। इसमें क्या तय हुआ, पार्टी की तरफ से इसका बारे में ठोस जानकारी नहीं दी गई। लेकिन राज्य के नेताओं ने आलाकमान को साफ-साफ बता दिया है कि कम सीटों पर चुनाव लड़ने से उसे फौरी तौर पर थोड़ा बहुत लाभ हो सकता है लेकिन दूरगामी नुकसान होंगे। फिलहाल कांग्रेस गठबंधन के साथ सीटों के बंटवारे के गणित में ही उलझी हुई है। रैली में 'हैं तैयार हम' कहने भर से चुनावी तैयारी पूरी नहीं मानी जा सकती। गांव जीतने के लिए कांग्रेस को ठोस रणनीति बनाकर उसे अमली जामा पहनाना होगा।
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