2019 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी को फिर से सत्ता में आने से रोकने के लिए हाथ-पैर मार चुके तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव एक बार फिर इस मुहिम में जुटने जा रहे हैं। सियासत में केसीआर के नाम से चर्चित राव बीजेपी के ख़िलाफ़ देश भर के विपक्षी दलों को साथ लाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
2019 में बीजेपी को बड़ी जीत मिलने के बाद अधिकांश विपक्षी दल लगता है कि हिम्मत हार गए हैं। उत्तर प्रदेश में बीएसपी हो या आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस या उड़ीसा में बीजेडी, इन दलों ने बीजेपी के साथ चलने या फिर उसके ख़िलाफ़ चुप रहने की रणनीति अपना रखी है। इसलिए, ऐसे माहौल में बाक़ी दलों के सामने बड़ी चुनौती है कि या तो वे भी सरेंडर कर दें या फिर बीजेपी से लड़ें क्योंकि बीच वाली स्थिति में उन्हें बीजेपी की ‘बी’ टीम कहकर पुकारा जा रहा है और इससे उनका राजनीतिक भविष्य चौपट हो रहा है।
तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के मुखिया केसीआर ने अपनी पार्टी के नेताओं से कहा है कि वे बीजेपी विरोधी दलों के अलावा किसान संगठनों, मजदूर यूनियनों को भी एक समान प्लेटफ़ॉर्म पर लेकर आएं जिससे केंद्र सरकार को चुनौती दी जा सके।
राव ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विनिवेश और कृषि क़ानूनों के मुद्दे को उठाया है और उन्हें इन उपक्रमों के कर्मचारियों और किसान संगठनों से अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। विपक्षी दलों में बीजेपी के ‘एक देश-एक चुनाव’ के मुद्दे को लेकर भी खासी चिंता है। नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि देश में यह पैटर्न 2024 से लागू हो लेकिन विपक्षी दल इसके पूरी तरह ख़िलाफ़ हैं।
नेताओं से करेंगे मुलाक़ात
राव जल्द ही चेन्नई, दिल्ली, लखनऊ और कोलकाता जाकर कई क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं से मिलेंगे। केसीआर इस सिलसिले में केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, वरिष्ठ मार्क्सवादी नेता सीताराम येचुरी, सीपीआई नेता डी. राजा से बातचीत कर चुके हैं। आगे की कड़ी में वे ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, जगन मोहन रेड्डी, स्टालिन, अखिलेश यादव, महबूबा मुफ़्ती से मिल सकते हैं।
केसीआर जानते हैं कि एनडीए लगातार कमजोर हो रहा है। शिव सेना और शिरोमणि अकाली दल के इसका साथ छोड़ने के बाद सिर्फ़ जेडीयू ही इसमें राज्य स्तरीय दल बचा है। बिहार में मोदी के पूरा जोर लगाने के बाद भी लगभग 13 हज़ार वोटों से ही एनडीए की जीत हुई है।
आने वाले कुछ महीनों में बंगाल, असम, केरल और तमिलनाडु में विधानसभा के चुनाव होने हैं और कृषि क़ानूनों, सीएए, एनआरसी-एनपीआर को लेकर एक बार फिर से शोर शुरू होने वाला है।
केसीआर जानते हैं कि कांग्रेस अब कमज़ोर पड़ गई है और वह ऐसी स्थिति में नहीं है कि बीजेपी के ख़िलाफ़ बनने वाले किसी गठबंधन की अगुवाई कर सके। लेकिन कई राज्यों में क्षेत्रीय दल मजबूत स्थिति में हैं और ऐसे में ये दल ही बीजेपी से लड़ सकते हैं।
दक्षिण के बड़े नेता हैं केसीआर
जयललिता के निधन के बाद दक्षिण में केसीआर के क़द का दूसरा नेता नहीं दिखाई देता। केसीआर के बारे में कहा जाता है कि उनकी नज़र प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है। केसीआर अपनी अगुवाई में ग़ैर-बीजेपी और ग़ैर-कांग्रेस फ्रंट बनाकर पूरी ताक़त के साथ 2024 का चुनाव लड़ना चाहते हैं। केसीआर दक्षिण से ख़ुद को प्रधानमंत्री का सबसे बड़ा दावेदार साबित करना चाहते हैं।
तेलंगाना की राजनीति के जानकारों के मुताबिक़, केसीआर अपने बेटे के. तारक रामा राव (केटीआर) को पार्टी और सरकार की जिम्मेदारी सौंप देंगे और एंटी मोदी फ्रंट बनाने की मुहिम में जोर-शोर से जुटेंगे।
मोदी लहर में भी अजेय
केसीआर को सियासत का अच्छा-खासा तजुर्बा है। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने विरोधियों को चारों खाने चित कर दिया था। 119 सदस्यों वाली तेलंगाना विधानसभा में टीआरएस को 87 सीटें मिली थीं जबकि 2014 में यह आंकड़ा 63 था। तेलंगाना में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ ही हुए थे। राष्ट्रीय स्तर पर प्रचंड मोदी लहर के बाद भी केसीआर ने राज्य की 17 लोकसभा सीटों में से 11 सीटें जीती थीं। जबकि कांग्रेस को 2, बीजेपी-टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस और एआईएमआईएम को 1-1 सीट मिली थी।
पस्त हुए चंद्रबाबू नायडू
पिछली बार एंटी बीजेपी या एंटी मोदी फ्रंट बनाने की केसीआर की कोशिशों को उनके सियासी विरोधी और टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने फ़ेल कर दिया था। लेकिन आंध्र प्रदेश के पिछले चुनाव में तगड़ी हार के बाद नायडू पूरी तरह बैकफ़ुट पर हैं और शायद एनडीए में वापसी की जुगत लगा रहे हैं।
इसलिए, इस बार केसीआर का रास्ता साफ है लेकिन सवाल यह है कि केसीआर को क्षेत्रीय दलों का कितना समर्थन मिलेगा क्योंकि 2019 में ऐसी कोशिश फ़ेल हो चुकी है। कई राजनीतिक दलों के प्रमुख जांच एजेंसियों के डर से बीजेपी विरोधी गठबंधन में शामिल होने को तैयार नहीं दिखते और ऐसे में बीजेपी विरोधी वोटों का बंटवारा हो जाता है।
बीते दिनों में बीजेपी ने वाईएसआर कांग्रेस के प्रमुख जगन मोहन रेड्डी और बीजेडी मुखिया नवीन पटनायक से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश की है। केसीआर की कोशिशें कितनी परवान चढ़ती हैं, यह इससे पता चलेगा कि वह कितनी मेहनत कर कितने बीजेपी विरोधी दलों को एक मंच पर ला पाते हैं।
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