कहा जाता है कि मुसलिम-यादव (एम-वाई) गठजोड़ के दम पर यूपी में मुलायम सिंह की सपा और बिहार में लालू प्रसाद यादव के आरजेडी को जीत मिलती रही थी। बीजेपी ने इन राज्यों में उस गठजोड़ को तोड़ दिया और सपा व आरजेडी के क़िले को भी भेद दिया। इन राज्यों में या तो उसने अकेले दम पर सरकार बनायी या फिर गठबंधन में सरकार बनाई। कहा जा रहा है कि अब कर्नाटक में बीजेपी सिद्धारमैया और कांग्रेस के ऐसे ही गठजोड़ को तोड़ने की कोशिश में है। तो सवाल है कि क्या कर्नाटक में भी मुसलिम-यादव गठजोड़ है वह इसे तोड़ने के लिए क्या कर रही है?
इस सवाल का सीधा-सीधा जवाब तो यह है कि कर्नाटक में मुसलिम-यादव गठजोड़ तो नहीं है, लेकिन गठजोड़ है बिल्कुस उसी तरह का। यूपी और बिहार में मुसलिम और ओबीसी जाति यादव का गठजोड़ था तो कर्नाटक में मुसलिम और ओबीसी की एक जाति कुरुबा का गठजोड़ है। कहा जाता है कि इस गठजोड़ से सिद्धारमैया का राज्य में मज़बूत आधार तैयार रहा है।
वैसे, मुसलिम और कुरुबा की अलग-अलग आबादी को देखा जाए तो ये इतने ताक़तवर समूह नहीं हैं। इस तरह से देखा जाए तो सबसे ज़्यादा आबादी लिंगायत की है और फिर वोक्कालिगा की। राज्य में लिंगायत की आबादी 17 फ़ीसदी है, वोक्कालिगा की 12-15 फीसदी और मुसलिम की 12 फीसदी। एससी 17 फ़ीसदी हैं लेकिन इसमें भी बँटे हुए हैं और एससी लेफ़्ट 6 फ़ीसदी, एससी राइट 5.5 फ़ीसदी, एससी 'अछूत' 4.5 फीसदी। एसटी 7 फ़ीसदी हैं। ओबीसी 33 फीसदी हैं जिसमें से कुरुबा 6 फीसदी, इंडिगा 5 फीसदी और ऐसे ही 100 से ज़्यादा ओबीसी समुदाय की जातियाँ हैं।
इस सामाजिक समीकरण में कांग्रेस नेता सिद्धारमैया का मुसलिम, कुरुबा और दलित (एहिंडा) का गठजोड़ है। सिद्धारमैया खुद कुरुबा समुदाय से आते हैं।
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इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार ओबीसी कुरुबा और मुस्लिम समुदाय राज्य के कुल 224 निर्वाचन क्षेत्रों में फैले हुए हैं। लिंगायत उत्तर कर्नाटक में 80 विधानसभा क्षेत्र, और वोक्कालिगा मुख्य रूप से राज्य के दक्षिणी भाग में 75 निर्वाचन क्षेत्रों में रहते हैं।
बीजेपी अब तक लिंगायतों पर केंद्रित एक जातिगत रणनीति के भरोसे रही है। पूर्व मुख्यमंत्री और लिंगायत नेता बी एस येदियुरप्पा इसका चेहरा रहे हैं। बीजेपी अब तक लिंगायत के साथ ही दलितों और आदिवासियों के गठजोड़ और हिंदुत्व के माध्यम से चुनाव जीतती रही है। लेकिन कहा जा रहा है कि इस बार बीजेपी ने इस रणनीति में बदलाव किया है।
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कर्नाटक में सत्तारूढ़ भाजपा अपने यूपी-बिहार वाले फॉर्मूले को फिर से सक्रिय करने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस के कुरुबा (ओबीसी)-मुस्लिम आधार को पार्टी के अल्पसंख्यकों, ओबीसी और दलितों (एहिंडा) के सामाजिक गठबंधन से अलग करने की कोशिश कर रही है।
भाजपा की यह रणनीति साफ़ दिखाई देती जा रही है क्योंकि पार्टी 4% पिछड़े वर्ग के आरक्षण को ख़त्म करने जैसे क़दमों से मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रही है। वह कुरुबा के दिग्गज और कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्धारमैया पर भी निशाना साध रही है।
अंग्रेजी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी पहले सिद्धारमैया को मुसलमानों का समर्थक होने के लिए 'सिद्धारमुल्ला' जैसे नामों से संबोधित करके उनपर निशाना साधती रही है। अब पार्टी सिद्धारमैया पर ऐसे ही हमले कर रही है।
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रिपोर्ट के अनुसार बसवराज बोम्मई ने एक हफ़्ते पहले आरोप लगाया था, 'सिद्धारमैया के मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दौरान केवल एक समुदाय ने प्रगति की। वह किस प्रकार की नीति थी? उन्होंने एससी/एसटी को समर्थन देने का दावा करने के बावजूद आंतरिक आरक्षण देने के प्रति प्रतिबद्ध नहीं थे। कांग्रेस पार्टी का दोहरा मापदंड है। उनके आचरण और उनके शब्दों के बीच अंतर है।'
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