उप राष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ ने सोमवार को पर्चा दाखिल कर दिया है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान सहित बीजेपी व एनडीए के कई बड़े नेता मौजूद रहे। धनखड़ के सामने विपक्ष ने कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मार्ग्रेट अल्वा को चुनाव मैदान में उतारा है।
उप राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान 6 अगस्त को होगा और इसके नतीजे उसी दिन आ जाएंगे।
जगदीप धनखड़ और मार्गेट अल्वा आने वाले दिनों में चुनाव प्रचार शुरू करेंगे। विपक्षी दल बीजेडी और एआईएडीएमके ने उप राष्ट्रपति के चुनाव में जगदीप धनखड़ को अपना समर्थन दे दिया है।
कौन हैं जगदीप धनखड़?
राजस्थान के झुंझुनू जिले के किठाणा गांव में 1951 में जन्मे जगदीप धनखड़ प्रभावशाली जाट बिरादरी से आते हैं। राजस्थान के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली के बाहरी इलाकों में जाट समुदाय की अच्छी-खासी आबादी है। पंजाब में सिख जाट ताकतवर हैं। माना जा रहा है कि जाट मतदाताओं को अपनी ओर खींचने के लिए ही बीजेपी ने जगदीप धनखड़ को चुनाव मैदान में उतारा है। पेशे से वकील रहे जगदीप धनखड़ बीजेपी, आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों को कानूनी सलाह और सहायता देते रहे हैं।
जगदीप धनखड़ 1989 में ही राजनीति में आए। धनखड़ 1989 से 91 तक जनता दल के टिकट पर राजस्थान की झुंझुनू सीट से सांसद रहे हैं और 1990 में केंद्र सरकार में मंत्री भी बने। धनखड़ राजस्थान हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं और उन्होंने लंबे वक्त तक सुप्रीम कोर्ट में भी वकालत की है। वह 1993 से 98 तक किशनगढ़ विधानसभा सीट से विधायक भी रहे।
बीजेपी ने एनडीए उम्मीदवार के रूप में आदिवासी समुदाय से आने वालीं द्रौपदी मुर्मू को उतारा तो उप राष्ट्रपति के चुनाव में ओबीसी समुदाय से आने वाले जगदीप धनखड़ को। बीजेपी ने ऐसा करके इन समुदायों तक अपनी पहुंच को बढ़ाने की कोशिश की है।
कौन हैं अल्वा?
कुछ विपक्षी दलों की उम्मीदवार अल्वा राज्यसभा की उपसभापति रही हैं व कांग्रेस की वरिष्ठ नेताओं में शुमार हैं। वह 1984 से 85 तक केंद्र सरकार में युवा और खेल मंत्रालय के राज्यमंत्री के रूप में काम कर चुकी हैं।
मार्गेट अल्वा ने कर्नाटक में कांग्रेस के लिए काफी काम किया है और वह 1972 में कर्नाटक महिला कांग्रेस की संयोजक चुनी गई थीं। अल्वा ने अपना संसदीय जीवन 1974 में शुरू किया था जब वह पहली बार राज्यसभा के लिए चुनी गई थीं। अल्वा 1999 में लोकसभा की सांसद बनीं। वह उत्तराखंड और राजस्थान की राज्यपाल भी रह चुकी हैं।
कांग्रेस की ओर से उनका नाम काफी सोच-समझ कर आगे बढ़ाया गया क्योंकि 4 फैक्टर उनके पक्ष में जाते हैं। उनके पास विशाल अनुभव है, वह महिला हैं, दक्षिण से आती हैं और अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय से ताल्लुक रखती हैं।
उप राष्ट्रपति के चुनाव में राज्यसभा के 233 सांसदों के साथ ही 12 मनोनीत सांसद और लोकसभा के सभी 543 सांसद मतदान करते हैं। बीजेपी के पास अकेले लोकसभा और राज्यसभा में 394 सांसद हैं। ऐसे में निश्चित रूप से वह इस चुनाव में काफी आगे है। उप राष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति भी होते हैं।
उप राष्ट्रपति के चुनाव में नामांकन के लिए किसी भी उम्मीदवार को प्रस्तावक के रूप में 20 सांसदों का और अनुमोदक के रूप में भी 20 सांसदों का समर्थन जरूरी होता है। कोई भी उम्मीदवार अधिकतम चार नामांकन पत्र दाखिल कर सकता है। उम्मीदवारों को 15000 रुपये की सिक्योरिटी भी जमा करानी होती है। राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के चुनाव में ओपन वोटिंग का कोई प्रावधान नहीं है और यह सीक्रेट बैलेट के जरिए होती है।
चुनाव आयोग ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के चुनाव में अपना बैलेट किसी को भी दिखाया जाना मना है और राजनीतिक दल वोटिंग के मुद्दे पर अपने सांसदों को व्हिप भी जारी नहीं कर सकते।
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