हरियाणा में प्रधानमंत्री की दूसरी रैली से भी केंद्रीय मंत्री और राज्य के पूर्व मंत्री मनोहर लाल खट्टर को फिर दूर रखा गया। सोनीपत में बुधवार को पीएम की रैली थी जिसमें खट्टर को आने नहीं दिया गया। इससे पहले 14 सितंबर को कुरुक्षेत्र में पीएम मोदी की दूसरी रैली में भी खट्टर को आने नहीं दिया गया था। दूसरी रैली में खट्टर को नहीं आने देने से पंजाबी नेता के तौर पर उनकी छवि को भाजपा ने तार-तार कर दिया। क्योंकि खट्टर को जब 2014 में हरियाणा का पैराशूट सीएम बनाकर मोदी-शाह ने भेजा था तो पंजाबियों ने इस फैसले को काफी पसंद किया था। लेकिन अब वही खट्टर भाजपा में नेगेटिव नेता करार दे दिये गए हैं, जिनसे सभी समुदायों के वोट छिटक सकते हैं, इसलिए खट्टर को हाशिये पर ढकेल दिया गया है।
खट्टर के आने के बाद हरियाणा जबरदस्त जाट आरक्षण आंदोलन चला था। लेकिन खट्टर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने उस आंदोलन को बेरहमी से कुचल दिया था। मूरथल के एक ढाबे पर महिलाओं से गैंगरेप का आरोप लगाकर हरियाणा के समुदाय को बदनाम भी किया गया और अंत में उसमें कुछ नहीं निकला। जाट आरक्षण आंदोलन को कुचलने से हरियाणा जाट बनाम पंजाबी में उसी तरह बांट दिया गया, जिस तरह ऐसा ही प्रयोग भाजपा ने तमाम प्रदेशों में हिन्दू बनाम मुसलमान को बांटने के लिए किया। यूपी, असम, एमपी, राजस्थान के सीएम और भाजपा नेता हिन्दू-मुस्लिम खाई को बढ़ाने में कामयाब रहे। भाजपा शासित राज्यों में समुदायों को बांटने की राजनीति आज भी जारी है।
प्रदेश भाजपा के नेताओं का कहना है कि बीजेपी गैर-जाट, पिछड़े और पंजाबी वोटों को जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रही है, उनका मानना है कि वे अभी भी बीजेपी के पीछे एकजुट हो सकते हैं, जैसा कि वे 2014 और 2019 में भी रहे हैं। लेकिन खट्टर को लेकर पंजाबियों, पिछड़ों और अन्य गैर जाट बिरादरियों में इतनी नकारात्मकता है कि बात बन नहीं पा रही। मोदी-शाह इस बात को पहले ही भांप गये थे तो उन्होंने हरियाणा चुनाव की घोषणा से पहले ही खट्टर को सीएम पद से हटाकर नायब सिंह सैनी को वहां बैठा दिया। खट्टर को केंद्र में मंत्री बना दिया गया। लेकिन भाजपा का यह फॉर्मूला भी फेल हो गया।
भाजपा ने मोदी की रैलियों और भाजपा के प्रचार अभियान से अपने पोस्टर बॉय खट्टर को हटाकर एक स्मार्ट कदम उठाने की कोशिश की। लेकिन सत्ता विरोधी लहर इतनी जबरदस्त है कि बात फिर बन नहीं पाई।
भाजपा ने इसके बाद कांग्रेस ने भूपिंदर सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के बीच मतभेद को खूब प्रचारित किया। यह सच भी था। लेकिन शैलजा कांग्रेस के चुनाव अभियान में फिर से जुट गईं। गुरुवार 26 सितंबर को वो राहुल गांधी की रैलियों में शामिल हो रही है। राहुल की रैली में भीड़ जुटाने के लिए मेहनत करती दिखाई दीं। कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह तक दावा किया गया था कि शैलजा ने खट्टर और किरण चौधरी से संपर्क साधा है ताकि भाजपा में उनकी एंट्री ठीक से हो सके। इसके बाद भाजपा ने आम आदमी पार्टी से उम्मीदें लगाईं कि वो कांग्रेस के वोट काटकर भाजपा की मदद करेगी। यह रणनीति भी फेल हो गई।
मोदी की सोनीपत रैली से खट्टर को बाहर रखने की वजह बताते हुए भाजपा के एक नेता ने कहा- "सोनीपत में खट्टर की मौजूदगी की कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि उनकी मौजूदगी जाट बहुल विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी को अच्छी स्थिति में नहीं खड़ा करेगी।" लेकिन यही भाजपा नेता 14 सितंबर को मोदी की कुरूक्षेत्र रैली से खट्टर को दूर रहने का वाजिब कारण नहीं बता पाये, क्योंकि कुरुक्षेत्र जाट बहुल न होकर पंजाबी, दलित और ओबीसी वाला इलाका है। इसके पड़ोस में करनाल लोकसभा सीट है, जहां से खट्टर सांसद हैं।
लेकिन इससे भाजपा ने अपनी स्थिति खुद हास्यास्पद बना ली है। एक तरफ तो खट्टर को एक कोने में पटक दिया गया लेकिन पार्टी पार्टी हरियाणा मुख्यमंत्री के रूप में खट्टर के कार्यकाल के दौरान "नो पर्ची, नो खर्ची" (नौकरियों के लिए पैसा नहीं) जुमले और सुशासन सिद्धांतों के नाम पर वोट मांग रही है। क्योंकि साढ़े नौ साल से खट्टर ही मुख्यमंत्री थे। सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए, भाजपा ने राज्य में 30% से अधिक ओबीसी वोटों को भुनाने के लिए 12 मार्च को खट्टर की जगह अपने ओबीसी चेहरे नायब सिंह सैनी को सीएम बनाया। सैनी को ही आगामी चुनावों के लिए पार्टी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा भी हैं।
हरियाणा में 10 साल से राज कर रही भाजपा बहुत मुश्किल हालात में फंस गई है। मोदी के करिश्मे की हवा निकल गई है। हरियाणा का मतदाता अब मोदी की तरफ आकर्षित नहीं हो रहा है। मोदी की दोनों रैलियों के फ्लॉप होने की वजह भी यही है। हालात ये हैं कि तमाम भाजपा नेता और प्रत्याशी पार्कों, धर्मशालाओं में कुर्सी रखवाकर अपनी सभाएं कर रहे हैं, जिनमें दिहाड़ी पर लोगों को लाकर बैठाया जाता है। लेकिन ऐसी 200 कुर्सियां भी भर नहीं पातीं।
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