जेडीयू के बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन से बाहर निकलने के बाद सभी की निगाहें इस बात पर हैं कि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश का क्या होगा। क्या वो अपने पद से इस्तीफा देंगे। इसी के साथ राज्यसभा में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं।
सितंबर 2020 में, सत्तारूढ़ एनडीए के उम्मीदवार के रूप में, हरिवंश, राज्यसभा के उप सभापति के रूप में फिर से चुने गए थे। उस समय पीएम नरेंद्र मोदी ने उनकी जबरदस्त तारीफ की थी। पीएम मोदी ने कहा था कि हरिवंश ने सदन का संचालन उत्साह और शालीनता के साथ किया। अपने प्रति बीजेपी के रुख से गदगद हरिवंश पीएम मोदी की इस टिप्पणी के बाद और गदगद हो गए थे। लेकिन सदन का संचालन उतना तटस्थ नहीं था, जितनी तारीफ पीएम मोदी ने की थी।
बहरहाल, हरिवंश के सामने अब जो-जो ऑप्शन बचे हैं, वो इस बात पर निर्भर करेगा कि अंदरुनी तौर पर नीतीश से उनके रिश्ते किस तरह के हैं। जिस तरह आरसीपी सिंह और नीतीश के मतभेद सार्वजनिक हुए, वो स्थिति हरिवंश के बारे में सामने नहीं आई लेकिन हरिवंश को अब किसी एक तरफ तो जाना ही पड़ेगा।
संसद सचिवालय के सूत्रों का कहना है कि सत्ताधारी गठबंधन से समर्थन वापस लेने के बावजूद हरिवंश राज्यसभा उपसभापति पद पर बने रह सकते हैं। लेकिन ऐसा तभी संभव है जब जेडीयू ऐसा करने की छूट दे। इसमें तमाम शर्तों का आना स्वाभाविक है। होना तो यह चाहिए कि जेडीयू अब एनडीए गठबंधन का हिस्सा नहीं है तो हरिवंश को भी इस्तीफा देकर नीतीश के प्रति वफादारी प्रकट करना चाहिए।
अगर हरिवंश ऐसा नहीं करते हैं और पीएम मोदी ने जिस तरह उनको गदगद अवस्था में डाल दिया था, उस वजह से वो बीजेपी के साथ अपने रिश्ते और मजबूत करना चाहेंगे तो उन्हें जेडीयू की नाराजगी का सामना करने के लिए तैयार रहना पड़ेगा। ऐसे में जेडीयू और अन्य विपक्षी दल उनके खिलाफ प्रस्ताव लाकर उन्हें राज्यसभा के उपसभापति पद से हटा भी सकते हैं। क्योंकि राज्यसभा में विपक्ष अब जेडीयू के साथ आने से संख्या बल के मामले में मजबूत स्थिति में है।
अगर हरिवंश बीजेपी का दामन थामते हैं वो सोमनाथ चटर्जी जैसी स्थिति का सामना करने को जरूर तैयार होंगे। 2008 में सीपीएम सोमनाथ चटर्जी ने खुद को तटस्थ घोषित करते हुए लोकसभा स्पीकर पद से इस्तीफा नहीं दिया था तो सीपीएम ने उनको पार्टी से निकाल दिया। सोमनाथ इस दाग के लिए आजीवन अफसोस में रहे। ठीक यही हालात अब हरिवंश के साथ हैं, अगर वो बीजेपी के सुर में सुर मिलाते हैं तो विपक्ष उनको हटा सकता है और जेडीयू से रिश्ता खत्म हो जाएगा।
हरिवंश अनुभवी पत्रकार भी हैं। वो जो भी फैसला करेंगे, बहुत सोच समझकर करेंगे। बिहार की राजनीति ही 2024 के आम चुनाव को शक्ल देगी, नीतीश पर विपक्ष बड़ा दांव खेल सकता है, ऐसे में हरिवंश का फैसला भी दूरगामी नतीजा देगा।
राज्यसभा का गणितः राज्यसभा में जेडीयू के पांच सांसद अब विपक्ष का हिस्सा हो गए हैं। इस तरह एनडीए के राज्यसभा सांसदों की संख्या अब 100 से भी नीचे आ गई है। 237 सदस्यों वाली राज्यसभा में इसका आधा 119 से भी कम संख्या एनडीए समर्थक सांसदों की हो गई है। इस तरह बीजेपी अब राज्यसभा में मनचाहा विधेयक पारित नहीं करा पाएगी। उपसभापति यानी हरिवंश भी उसकी कोई मदद नहीं कर पाएंगे।
राज्यसभा में बीजेपी कभी बेहतर स्थिति में नहीं रही। लेकिन जेडीयू की मदद से उसने कई मनचाहे विधेयक राज्यसभा में पास करा लिए। अब वो दिन लद गए। अगर जेडीयू में कोई टूट नहीं होती है तो उसके सांसद बीजेपी का समर्थन नहीं करने वाले।
बीजेपी का दारोमदार अब सिर्फ वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल के 9-9 सदस्यों, और एआईएडीएमके के 4 सदस्यों पर निर्भर है। बीजेपी के पास अभी एक मौका यह है कि वो तीन मनोनीत सदस्यों को राज्यसभा में लाकर इसकी थोड़ी बहुत भरपाई कर सकती है। आमतौर पर मनोनीत सदस्य सत्तारूढ़ पार्टी का ही साथ देते हैं। लेकिन इन तीन सदस्यों के बावजूद दो सांसद फिर भी कम बैठ रहे हैं। अब आगे संसद का शीतकालीन अधिवेशन जब चलेगा, तब बीजेपी द्वारा लाए जाने वाले बिलों का एसिड टेस्ट होगा।
राजनीति में यह मुहावरा पूरी तरह फिट बैठता है कि बिहार-यूपी बिना देश की राजनीति क्या है। अभी हाल तक बहुत मजबूत माने जाने वाली बीजेपी को एक पल में जेडीयू ने जमीन पर ला पटका है। ऐसे समय में जब समूचा विपक्ष बीजेपी के आक्रामक तेवरों से हताश और निराश था, जेडीयू ने उसे उम्मीद बंधा दी है।
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