कांग्रेस में कुछ नेताओं ने शायद ठान लिया है पार्टी में चल रहे घमासान को थमने नहीं देना है। आए दिन कोई न कोई सीनियर नेता इस तरह का बयान दे देता है जिससे धीमी पड़ रही बवाल की आग फिर से जलने लगती है। नेताओं की ये सारी बयानबाज़ी मीडिया के सामने हो रही है जबकि किसी भी पार्टी का अनुशासन कहता है कि पार्टी के मसलों पर बात पार्टी फ़ोरम में ही होनी चाहिए। लेकिन यहां शायद अनुशासन वाली कोई बात ही नहीं है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कपिल सिब्बल के हालिया इंटरव्यू के बाद तीन कमेटियां बनाई थीं। उन्होंने इन कमेटियों में अंसतुष्टों के G-23 ग्रुप के चार लोगों को जगह देकर विवाद को थामने की कोशिश की थी। लेकिन उसके झट बाद वरिष्ठ नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद, कपिल सिब्बल और सलमान ख़ुर्शीद पार्टी के मसलों को लेकर फिर मीडिया के सामने आ गए।
‘रिफ़ॉर्म चाहने वाले बाग़ी नहीं’
पूर्व केंद्रीय मंत्री आज़ाद ने रविवार को न्यूज़ एजेंसी एएनआई के साथ बातचीत में कहा कि चिट्ठी लिखने वाले नेता कोई बाग़ी नहीं हैं बल्कि वे पार्टी में रिफ़ॉर्म चाहते हैं। जम्मू-कश्मीर से आने वाले आज़ाद ने कहा, ‘जब कोई नेता हमारी पार्टी में पदाधिकारी बनता है तो वह अपने विजिटिंग कार्ड, लेटर पैड छाप लेता है और समझता है कि उसका काम ख़त्म हो गया। लेकिन काम तो उस वक़्त से शुरू होना चाहिए।’
राज्यसभा में पार्टी के नेता आज़ाद ने एएनआई से आगे कहा, ‘आज हमारी पार्टी में नेताओं की प्रॉब्लम ये है कि टिकट ले लिया तो पहले फ़ाइव स्टार में जाकर बुक हो गए। फिर फ़ाइव स्टार में कौन अच्छा है, डीलक्स में जाएंगे, एसी गाड़ी के बिना नहीं जाएंगे, जहां कच्ची सड़क है, वहां नहीं जाएंगे।’ उन्होंने कहा कि फ़ाइव स्टार से चुनाव नहीं लड़े जाते हैं।
पार्टी में आतंरिक चुनाव कराने की जोरदार हिमायत करने में जुटे आज़ाद ने कहा, ‘स्टेट, ब्लॉक, जिले का अध्यक्ष इलेक्टेड होगा, उसको अपनी जिम्मेदारी का पता होगा और ऐसे लोग इन पदों पर चुने जाएंगे जिन्हें पार्टी से इश्क होगा।’ उन्होंने कहा कि अभी तो कोई भी इन पदों पर चुन लिया जाता है।
कुछ महीने पहले जब G-23 ग्रुप के नेताओं की चिट्ठी सामने आई थी तो जमकर हंगामा हुआ था और अंतत: सोनिया गांधी का ही अंतरिम अध्यक्ष के पद पर चयन करना पड़ा था, जबकि वह इसके लिए तैयार नहीं थीं।
तब भी आज़ाद, सिब्बल, आनंद शर्मा, जितिन प्रसाद समेत कई नेताओं ने पार्टी में आंतरिक चुनाव कराने, पूर्ण कालिक अध्यक्ष चुनने की मांग उठाई थी। इन नेताओं ने नेतृत्व के प्रभावी न होने को लेकर सवाल खड़े किए थे। इसके कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में भी बवाल हुआ था।
‘जिम्मेदारी तय करनी होगी’
चिट्ठी के सामने आने के बाद कांग्रेस महासचिव के पद से विदा कर दिए गए आज़ाद ने एएनआई से कहा कि उन्होंने चिट्ठी में जो चार मांगें रखी थीं, उनमें कोई कमी नहीं आई है। उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस को जिंदा करना है, राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प बनना है तो पार्टी में हर स्तर पर नेताओं के चुनाव कराने होंगे और जिम्मेदारी तय करनी होगी।’
नेताओं के निशाने पर रहे सिब्बल
कुछ दिन पहले कपिल सिब्बल ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को दिए इंटरव्यू में जब ये कहा था कि लोग अब कांग्रेस को एक प्रभावी विकल्प के रूप में नहीं देखते और नेतृत्व उन मुद्दों पर ध्यान नहीं दे रहा है, जिनसे पार्टी जूझ रही है, तो कई नेता उन पर हमलावर हो गए थे। इन सारे नेताओं ने मीडिया में ही आकर बयानबाज़ी की थी और हुआ इससे वही कि अधमरी हो चुकी कांग्रेस को और नुक़सान हुआ।
सिब्बल ने नेतृत्व पर हमला करते हुए कहा था कि कांग्रेस ने जब छह साल तक आत्मचिंतन नहीं किया, तो अब हम इसकी क्या उम्मीद कर सकते हैं।
संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने सिब्बल पर करारा वार करते हुए कहा था, ‘अगर कुछ नेता सोचते हैं कि कांग्रेस उनके लिए सही दल नहीं है तो उन्हें नई पार्टी बना लेनी चाहिए या वे कोई दूसरी ऐसी पार्टी में भी शामिल हो सकते हैं, जो उन्हें अपने लिए सही लगती हो।’
‘हम दमदार विकल्प नहीं’
सिब्बल इसके बाद भी नहीं रुके हैं और उन्होंने इंडिया टुडे को दिए ताज़ा इंटरव्यू में कहा है कि कैसे एक पार्टी डेढ़ साल तक बिना अध्यक्ष के चल सकती है। सिब्बल ने गुजरात, मध्य प्रदेश के उपचुनाव में पार्टी के ख़राब प्रदर्शन का जिक्र करते हुए कहा, ‘जहां भी हमारी बीजेपी से सीधी लड़ाई है, हम एक दमदार विकल्प नहीं हैं और हमें इस मामले में कुछ करना होगा।’
सलमान ख़ुर्शीद का पलटवार
सिब्बल के इस नए हमले के बाद पार्टी नेतृत्व के बचाव में उतरे पूर्व विदेश मंत्री सलमान ख़ुर्शीद ने रविवार को पीटीआई से कहा कि पार्टी में नेतृत्व का कोई संकट नहीं है और सोनिया और राहुल गांधी को पूरा समर्थन हासिल है। उन्होंने हमला करते हुए कहा कि जो अंधा नहीं है, उसे यह साफ दिखाई दे रहा है।
ख़ुर्शीद ने कहा कि बिहार चुनाव और उपचुनाव को लेकर वह इन नेताओं के बयानों से असहमत नहीं हैं लेकिन हर कोई मीडिया में जाकर यह क्यों बता रहा है कि हमें ये करना चाहिए। उन्होंने कहा कि पार्टी हर वक़्त समीक्षा करती है और इस बात को लेकर कोई झगड़ा भी नहीं है।
किस ओर इशारा?
ऐसे वक़्त में वरिष्ठ नेताओं को पार्टी को ऑक्सीजन देनी चाहिए लेकिन ये नेता पार्टी का दम निकाल रहे हैं। आज़ाद का ये कहना कि हमारे नेता फ़ाइव स्टार होटल और एसी गाड़ी की आदत वाले हैं, न जाने किस पर निशाना है। लेकिन इतने वरिष्ठ नेता का लगातार पार्टी नेतृत्व को चेताते रहना शायद उन्हें जगाने की ही कोशिश है कि वह स्थायी अध्यक्ष और पार्टी में आतंरिक चुनाव के मसले पर अब और आंखें मूंद कर नहीं रह सकता।
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