नए सिरे पुनर्गठित होने के बाद से नई दिल्ली में कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक नहीं हुई थी। सोमवार 9 अक्टूबर को होने वाली इस बैठक में जाति जनगणना के मुद्दे पर गंभीर चर्चा की संभावना है। पिछली सीडब्ल्यूसी की बैठक के बाद बिहार की जाति जनगणना की रिपोर्ट आई थी। बिहार की रिपोर्ट आने के बाद से पार्टी में इस पर नए सिरे से विचार की जरूरत महसूस की जा रही है। क्योंकि सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने इसे मुद्दा बना दिया है। बिहार की जाति जनगणना रिपोर्ट से नए सवाल उभरे हैं, पार्टी उन पर चर्चा के बाद बड़ी रणनीति बना सकती है। इसके अलावा पांच राज्यों में इसी साल होने वाले चुनाव की रणनीति पर भी विचार होगा। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना में कांग्रेस प्रत्याशियों की पहली सूची नहीं आ पाई है। इस पर भी विचार होगा।
दरअसल, सीडब्ल्यूसी सदस्य और जाने माने वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने हाल ही में राहुल गांधी के "जितनी आबादी उतना हक" नारे को लेकर चेतावनी दी थी। लेकिन जब पार्टी ने सिंघवी के ट्वीट को अच्छा नहीं माना तो उन्होंने ट्वीट हटा दिया। लेकिन पार्टी में इस पर बहस की शुरुआत हो गई। सूत्रों का कहना है कि इसीलिए जाति जनगणना के प्रति कांग्रेस के दृढ़ समर्थन पर पार्टी के सर्वोच्च फोरम में चर्चा की जरूरत महसूस की जा रही है।
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कांग्रेस के भीतर, कुछ नेताओं को लगता है कि जाति जनगणना की कहानी को सही ढंग से पेश करने की जरूरत है, ताकि पीएम नरेंद्र मोदी के इस हमले का मुकाबला किया जा सके कि कांग्रेस हिंदुओं को विभाजित करने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस और अन्य दलों पर नया आरोप यह लग रहा है कि वे जाति जनगणना के जरिए अल्पसंख्यक विरोधी रुख अपना रहे हैं।
पीएम नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपनी एक रैली के भाषण में इसका जिक्र किया था। मोदी का भाषण बिहार की जाति जनगणना रिपोर्ट के फौरन बाद हुआ था। मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस और विपक्षी दल हिन्दुओं को बांट रहे हैं और अल्पसंख्यक विरोधी रुख अपना रहे हैं। हालांकि अल्पसंख्यकों और खासकर मुसलमानों को लेकर भाजपा का रवैया कभी अच्छा नहीं रहा लेकिन उसने अब यह कहना शुरू कर दिया है कि अल्पसंख्यकों के प्रति कांग्रेस ने हमेशा अन्याय किया है। एक तरह से मोदी ने जाति जनगणना रिपोर्ट के नेरेटिव को बदलने की कोशिश की है। कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना की मांग की है। इसलिए भाजपा उस नेरेटिव को बदलने की कोशिश में जुटी है।
इंडिया गठबंधन अभी तक सीट शेयरिंग फॉर्मूले को अंतिम रूप नहीं दे पाया है। पांच राज्यों में चुनाव के तारीखों की घोषणा सोमवार को ही संभावित है। ऐसे में कांग्रेस इस पर अपनी रणनीति को अंतिम रूप देना चाहती है। कांग्रेस चाहती है कि पांच राज्यों में भी सीट शेयरिंग फॉर्मूले के दम पर अगर चुनाव लड़ा जाता है तो नतीजे और भी बेहतर हो सकते हैं। हालांकि चार राज्यों (एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना) में कांग्रेस ही सबसे अग्रणी पार्टी है लेकिन वो क्षेत्रीय दलों को एडजस्ट करने को तैयार दिख रही है। जिसमें समाजवादी पार्टी प्रमुख है।
भाजपा का चुनाव प्रबंधन बहुत व्यवस्थित होता है। कांग्रेस उस मॉडल को अपनाना चाहती है। क्योंकि कांग्रेस में चुनाव प्रबंधन ठीक से नहीं हो पाता। मई 2022 में कांग्रेस के उदयपुर चिंतन शिविर घोषणापत्र में चुनाव प्रबंधन विभाग स्थापित करने की बात कही गई थी। लेकिन वो घोषणा आगे नहीं बढ़ पाई। भाजपा से प्रभावी ढंग से लड़ने के लिए इसे लागू करने पर सीडब्ल्यूसी में सोमवार को विचार हो सकता है।
पार्टी एमपी और राजस्थान के कांग्रेस प्रत्याशियों की सूची अभी घोषित नहीं कर पाई है। जबकि भाजपा एमपी में दो सूची घोषित कर चुकी है। दो दिन पहले पार्टी की बैठक इस मुद्दे पर हुई थी, लेकिन उसमें भी कोई फैसला नहीं हो पाया था। इन्हीं दोनों राज्यों में प्रत्याशियों को लेकर ज्यादा उठा-पटक है। खासकर एमपी में तो विवाद ही विवाद है। पार्टी सोमवार को सीडब्ल्यूसी में इस पर विचार कर सकती है।
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सीडब्ल्यूसी की बैठक में पांच चुनावी राज्यों के कांग्रेस अध्यक्षों और प्रमुख नेताओं को भी बुलाया गया है। चुनाव आयोग सोमवार को मतदान की तारीखों की घोषणा करने वाला है, इसलिए भी कांग्रेस की इस बैठक का महत्व बढ़ गया है। क्योंकि कई सारे फैसले चुनावी तारीख का ऐलान न होने से रुके हुए थे।
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