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क्या दिल्ली में ‘आप’ से हो पाएगा कांग्रेस का गठबंधन?

क्या अगले लोकसभा चुनाव में दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन हो पाएगा? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि बुधवार को हुई कांग्रेस की एक अहम बैठक में आलाकमान ने दिल्ली के नेताओं को दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी करने को कहा है। इस बैठक के बाद दिल्ली कांग्रेस के कुछ नेताओं के बयानों से ऐसा लगा शायद कांग्रेस दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ने के मूड में है। आम आदमी पार्टी की आपत्ति के बाद कांग्रेस को इस मुद्दे पर अपना रुख साफ करना पड़ा। लेकिन दोनों तरफ से होने वाली बयानबाजी की वजह से संभावित गठबंधन पर संकट के बादल तो मंडरा रहे हैं।

दरअसल कांग्रेस आलाकमान ने दिल्ली प्रदेश इकाई के साथ चुनावी तैयारियोंको लेकर बैठक बुलाई थी। इस बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुनखड़गे, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, दिल्ली के प्रभारी दीपक बावरिया के साथ दिल्ली प्रदेश के नेता शामिल थे। बैठक में लोकसभा चुनाव की तैयारियों का जायज़ा लिया गया। लोकसभा चुनावों के मद्देनजर संगठन को मजबूत करने पर चर्चा हुई। आलाकमान  की तरफ से कहा गया गया कि दिल्ली के नेता दिल्ली की सभी सातों सीटों परमजबूती से चुनाव लड़ने की तैयारी करें।

इससे पहले कांग्रेस 18 राज्यों में चुनाव की तैयारियों को लेकर इसी तरह की बैठकें कर चुकी है। बैठक में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर चर्चा नहीं हुई। इस बारे में बाद में चर्चा होगी। बैठक के बाद दीपक बावरिया ने इस बात को साफ किया।
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अलका लांबा के बयान से मचा बवाल

आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन को लेकर कांग्रेस नेता का अलका लांबा के बयान से बवाल मचा। हालांकि अलका ने यह नहीं कहा था कि कांग्रेस दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ेगी। उन्होंने कहा, ‘2024 कैसे जीतना है इसको लेकर हमें आदेश हुआ है कि सातों सीटों पर मजबूती के साथ संगठन के हर नेता को निकलना है। सात महीने, सात सीटें हैं। मीटिंग में ये बात हुई कि जिसकी दिल्ली उसका देश होता है। ये दिल्ली का इतिहास बताता है। इसलिए कहा गया है कि सातों सीटों पर तैयारी रखनी है। संगठन से जो भी जिम्मेदारियां तय होंगी उस पर हम लोग काम करेंगे।’ गठबंधन के सवाल पर उन्होंने कहा कि अभी कोई फैसला नहीं हुआ है। 2019 के चुनावों में हम हम सातों सीटों पर दूसरे नंबर पर रहे हैं। अब भारत जोड़ो यात्रा के बाद हम देख रहे हैं कि लोग बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत विकल्प के रूप में देश में कांग्रेस को देख रहे हैं। राहुल गांधी ने हमें अपने अनुभव भी बताए। मुद्दों को लेकर जनता में जाना है।

Congress will be able to form an alliance with AAP in Delhi? - Satya Hindi
कांग्रेस नेता अलका लांबा

‘आप’ पर अलका का हमला

दरअसल आम आदमी पार्टी पर अलका लांबा के हमले से बात बिगड़ी। एक सवाल के जबाव में अलका ने मनीष सिसोदिया और संत्येंद्र जैन के जेल में होने की बात कही। साथ ही कजरीवाल पर भी कानूनी शिकंजा कसने की बात कह दी। अलका ने कहा, ‘बैठक में ये चिंता जरूर जाहिर की गई कि हमारा वोट उनकी (आम आदमी पार्टी) तरफ गया है। बीजेपी की स्थिर लाइन है। हमारी लड़ाई बीजेपी के साथ है लेकिन वोट हमारा आम आदमी पार्टी की तरफ गया है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी के दो बड़े नेता भ्रष्टाचार केआरोप में इस समय जेल में हैं, मुख्यमंत्री पर भी शिकंजा कस सकता है इस बात की भी चिंता जाहिर की गई लेकिन लड़ेंगे या नहीं लड़ेंगे इस पर कोई बात नहीं हुई है। हम अपनी तैयारी पूरी रखेंगे जो फैसला होगा वो देखा जाएगा।‘

'आप’ का पलटवार

अलका लांबा के बयानों से तिमिलाई आम आदमी पार्टी ने भी जमकर पलटवार किया। ‘आप’ की प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने अलका लांबा पर बड़बोलेपन का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि उनकी इन्हीं हरकतों की वजह से उन्हें आम आदमी पार्टी से निकाला गया था। उन्होंने कांग्रेस से अलका लांबा के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी कर दी। 

आलका लांबा और ‘आप’ के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। दरअसल कांग्रेस में एनएसयूआई और युवा कांग्रेस से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत करन वाली अलका लांबा 2015 में चांदनी चौक सीट से आम आदमी पार्टी के टिकट पर जीत कर पहली और आखिरी बार विधायक बनी थीं। अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के साथ विवादों के चलते उन्हें पार्टी से निकाला दिया गया था। 2020 के विधानसभा में वो कांग्रेस के टिकट पर चांदनी चौक सीट से चुनाव लड़ी थी। लेकिन आम आदमी पार्टी के प्रह्लाद साहनी से बुरी तरह हार गईं थीं। 2105 में उन्होंने प्रह्लाद साहनी को हराया था। तब साहनी काग्रेस के उम्मीदवार थे। आम आदमी पार्टी से निकाले जाने की वजह से अलका अक्सर ‘आप’ और खासकर अरविंद केजरीवाल पर हमलावर रहती हैं। उनके बयान से ज्यादा उनका लहजा आक्रामक था। इसी लिए विवाद हुआ।

जिसकी दिल्ली, उसका देश

बुधवार को हुई कांग्रेस की बैठक में अगर राहुल गांधी ने यह कहा है कि ‘जिसकी दिल्ली, उसका देश।’ पिछले छह लोकसभा चुनाव के नतीजे तो यही बताते हैं दिल्ली पर जिसने कब्जा किया है केंद्र की सत्ता भी उसी के हाथ आई है। 2014 और 2019 में दिल्ली की सातों सीटें बीजेपी ने जीती हैं। दोनों ही बार केंद्र में उसकी सरकार बनी है। इससे पहले 2009 में कांग्रेस ने दिल्ली की सभी सातों सीटें जीती थीं। 2004 में कांग्रेस ने 6 और बीजेपी ने एक सीट जीती थी। 1998 में अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में केंद्रमें एनडीए की सरकार बनी थी तब दिल्ली की 6 सीटें बीजेपी ने और एक सीट कांग्रेस ने जीती थी। 1999 में भी केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी थी तब दिल्ली की सभी सातों सीटें बीजेपी ने जीती थी।

कांग्रेस की दबाव की रणनीतिः दरअसल कांग्रेस का दिल्ली की सातों सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी करने का ऐलान आम आदमी पार्टी पर दबाव की रणनीति है। दिल्ली के समीकरण ऐसे हैं जिनमें ना अकेले कांग्रेस बीजेपी को टक्कर दे सकती है और नहीं आम आदमी पार्टी, दोनों अगर आपस में गठबंधन कर ले तो शायद कुछ सीटें जीत जाएं इस जमीनी सच्चाई को समझने के लिए दोनों ही पार्टियां तैयार नहीं है। जब तक दोनों पार्टियां इस सच्चाई को नहीं समझेंगी तब तक गठबंधन का रास्ता आसान नहीं होगा। 2019 की तरह इस बार भी गठबंधन खटाई में पड़ सकता है। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले 30 नवंबर 2018 को रामलीला मैदान में भारतीय किसान संघर्ष मोर्चा समन्वय समिति की रैली में राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल ने मंच साझा किया था। दिल्ली के तत्कालीन प्रभारी पीसी चाको और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह के बीच गठबंधन को लेकर मुलाकात भी हुई थी। 13 फरवरी 2019 को शरद पवार के घर राहुल गांधी और केजरीवाल मिले भी थे लेकिन इसके बावजूद सीटों के बंटवारे पर सहमति नहीं बन पाई थी।

2014 में आप तो 2019 में कांग्रेस भारी

दरअसल 2014 में सभी सातों सीटें बीजेपी जीती और आम आदमी पार्टी सभी सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी। कांग्रेस तीसरे स्थान पर खिसक गई थी। तब बीजेपी को 46.40%, आप को 32.90% और कांग्रेस को सिर्फ 15.10% वोट ही मिले थे। 2019 में इन आंकड़ों के अधार पर आप कांग्रेस को 2 से ज्यादा सीटे देने को तैयार नहीं थी। लेकिन अब 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले 2019 के आंकड़ेहैं। अब पासा पलट गया है। 2019 में एक बार फिर सभी सातों सीटें बीजेपी जीती। लेकिन इस बार कांग्रेस जबरदस्त वापसी करते हुए पांच सीटों पर दूसरे स्थान पर आ गई। आप सिर्फ दो ही सीटों पर आगे रही। मोदी की दूसरी लहर में बीजेपी को 46.40%  वोट मिले। यानि उसे 10.46% वोटो का फायदा हुआ।

कांग्रेस को 46.40% यानी  7.42 % वोटों का फायदा हुआ और उसे 22.51% वोट मिले। जबकि 2014 में 32.90% वोट हासिल करने वाली ‘आप’ 18.11% वोटों पर सिमट गई। उसे 14.79% वोटों का नुकसान हुआ।

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2024 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन होगा या नहीं यह इस बात पर निर्भर करेगा कि दोनों पार्टियों एक दूसरे को कितनी जगह देने को तैयार हैं। 2019 में आम आदमी पार्टी कांग्रेस को दो से ज्यादा सीटें देने पर तैयार नहीं थी। लेकिन  2019 में कांग्रेस पांच और आप दो सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी। दोनों पार्टियों की यही जिद गठबंधन में असली अरोड़ा है। इसीलिए यह सवाल उठ रहा है कि क्या वाकई 2024 में दोनों के बीच गठबंधन हो पाएगा?

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