कर्नाटक के कांग्रेस सांसद डीके सुरेश कुमार के एक बयान पर शुक्रवार को संसद में बहस हो गई। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को बयान देना पड़ गया कि 'अगर कोई भी व्यक्ति जो देश को तोड़ने की बात करेगा तो कांग्रेस पार्टी उसे कभी भी बर्दाश्त नहीं करेगी, चाहे वह मेरी पार्टी का हो या फिर किसी और पार्टी का हो।' दरअसल, वह राज्यसभा में सदन के नेता पीयूष गोयल के सवाल पर प्रतिक्रिया दे रहे थे। तो सवाल है कि कांग्रेस सांसद डीके सुरेश ने आख़िर क्या विवादास्पद बयान दे दिया था? और क्या उनकी शिकायत सुनी गई जो वह कहना चाहते थे?
इस पर विवाद तब शुरू हुआ जब कांग्रेस के नेता डीके सुरेश कुमार ने गुरुवार को अंतरिम बजट पेश होने के तुरंत बाद केंद्र पर दक्षिण भारत की उपेक्षा किए जाने का आरोप लगाया। उन्होंने दक्षिण भारत को विकासात्मक निधि के उसके हिस्से से वंचित करने और इसका उपयोग उत्तर को बढ़ावा देने के लिए करने का आरोप लगाया था।
बजट में दक्षिण भारत के साथ भेदभाव किए जाने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस सांसद डीके सुरेश कुमार ने कहा था, "अगर मुद्दे का समाधान नहीं किया गया तो दक्षिण को एक 'अलग देश' बनाना होगा।" इसी को लेकर बीजेपी ने पार्टी पर विभाजनकारी मानसिकता रखने का आरोप लगाया। इसने इसको मुद्दा बना दिया। लेकिन बीजेपी ने सांसद की शिकायत के उस हिस्से पर कुछ नहीं कहा जिसमें आरोप लगाया गया कि दक्षिण भारत के साथ भेदभाव होता है।
कर्नाटक के इस सांसद ने बिल्कुल उसी तरह के आरोप लगाए जैसे बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केंद्रीय निधि में राज्य का हिस्सा नहीं मिलने की शिकायत करती रही हैं। सांसद ने आरोप लगाया कि दक्षिण भारत में 'हर स्तर पर अन्याय' हो रहा है। उन्होंने कहा था, 'हम अपना पैसा पाना चाहते हैं। चाहे वह जीएसटी, सीमा शुल्क या प्रत्यक्ष कर हो, हम अपना उचित हिस्सा पाना चाहते हैं... विकास के लिए हमारे हिस्से का पैसा उत्तर भारत में वितरित किया जा रहा है।'
कांग्रेस सांसद के इस बयान पर बीजेपी ने हमला किया। इसने कहा कि कांग्रेस 'भारत जोड़ो' नहीं, 'भारत तोड़ो' का काम कर रही है। बीजेपी नेताओं ने आरोप लगाया कि कांग्रेस की मानसिकता इस देश को विभाजित करने की है। राज्यसभा में सदन के नेता पीयूष गोयल ने भी इस मुद्दे को उठाया।
इस बीच कांग्रेस के उस सांसद ने सफ़ाई जारी की और उन्होंने खुद को गौरवान्वित भारतीय बताया। उन्होंने कहा, 'एक गौरवान्वित भारतीय और एक गौरवान्वित कन्नडिगा हूँ! दक्षिण भारत और विशेष रूप से कर्नाटक ने धन वितरण में अन्याय की क्रूरता का सामना किया है। दूसरा सबसे बड़ा जीएसटी योगदान देने वाला राज्य होने के बाद भी, केंद्र कर्नाटक और दक्षिणी राज्यों के साथ पूरी तरह से अन्याय कर रहा है जबकि गुजरात जैसे राज्य में 51 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है। अगर यह अन्याय नहीं है, तो क्या है?'
बता दें कि इस महीने की शुरुआत में राज्य कांग्रेस ने एक श्वेत पत्र जारी किया था, जिसमें आरोप लगाया गया कि यद्यपि कर्नाटक भारत के विकास को सबसे तेज़ गति देने वालों में से एक है, लेकिन इसे केंद्र से बहुत कम रिटर्न मिल रहा है। राज्य कांग्रेस के प्रवक्ता एम लक्ष्मण ने कहा कि कॉर्पोरेट और अन्य करों के तहत कर्नाटक का योगदान 2023-24 के लिए 2.25 लाख करोड़ रुपये था, लेकिन कर हस्तांतरण के माध्यम से वह केवल 37,252 करोड़ रुपये की उम्मीद कर सकता था।
राज्य का जीएसटी योगदान लगभग 1.4 लाख करोड़ रुपये था, लेकिन केवल 13,005 करोड़ रुपये की उम्मीद की जा सकती थी। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार लक्ष्मण ने कहा कि विभिन्न करों के माध्यम से लगभग 4 लाख करोड़ रुपये उत्पन्न करने के बावजूद, कर्नाटक को 1 लाख करोड़ रुपये के बजाय कुल मिलाकर 50,257 करोड़ रुपये मिलने की संभावना है।
बता दें कि इसी तरह की शिकायतें पहले केरल और हाल ही में तमिलनाडु में एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके सरकार से भी आई हैं। दक्षिण के राज्यों से जब तब बीजेपी पर हिंदी थोपे जाने के प्रयास करने के आरोप लगते रहे हैं। इसके अलावा भी कई मामलों में उत्तर-दक्षिण में भेदभाव होने के आरोप लगते रहे हैं। बहरहाल, इन भेदभाव के आरोपों या शिकायतों से ध्यान हटकर अब मुद्दा 'देश तोड़ने' का बन गया है।
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