कांग्रेस शायद अब भी उसी दौर में जी रही है, जब उसका एकछत्र शासन चला करता था। गांधी परिवार के निज़ाम को चुनौती देने की पार्टी के किसी नेता की जुर्रत नहीं होती थी। आज़ादी के बाद से अब तक कुछ नेताओं ने गांधी परिवार के निज़ाम के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की कोशिश की लेकिन उनमें से ममता बनर्जी, शरद पवार को छोड़कर कोई और ख़ुद के सियासी वजूद को जिंदा नहीं रख सका। आवाज़ उठाने वालों को या तो पार्टी से बाहर जाना पड़ा या फिर मजबूर होकर पार्टी नेतृत्व के आदेश को मानना पड़ा।