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कांग्रेस ने दलित, ओबीसी को नहीं गँवाया होता तो बीजेपी सत्ता में नहीं आ पाती?

क्या कांग्रेस से दलितों और ओबीसी समुदायों के छिटकने की वजह से ही बीजेपी सत्ता में आई? यदि ऐसा नहीं होता तो क्या कांग्रेस सत्ता में बनी रहती? कम से कम राहुल गांधी ने तो यही स्वीकार किया है। दलित इंफ्लुएंसरों और बुद्धिजीवियों को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने यह बात कही और यह भी कहा कि अब यह स्थिति बदल रही है। 

राहुल गांधी ने इसको लेकर क्या-क्या कहा, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर किस संदर्भ में दलितों और ओबीसी समुदायों के लोगों का कांग्रेस से छिटकना शुरू हुआ। माना जाता है कि मंडल कमीशन के दौर और जनता पार्टी के उदय के बाद ओबीसी समुदायों में हलचल शुरू हुई और फिर कांग्रेस पर सवाल उठाए जाने लगे। 

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वैसे, राहुल गांधी 90 के दशक के बाद का हवाला दे रहे हैं, लेकिन बीजेपी इस बात पर जोर देती रही है कि इंदिरा गांधी और उसके बाद राजीव गांधी ने 1979 में जनता सरकार द्वारा गठित मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू नहीं किया। इसी आधार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस को ओबीसी विरोधी होने का आरोप लगाते रहे हैं। हर चुनाव में उन्होंने इसे मुद्दा बनाने की कोशिश की है। 

मंडल आयोग की रिपोर्ट में ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने की सिफारिश की गई थी। रिपोर्ट की मुख्य सिफारिश को लागू करने में 11 साल लग गए। इसे लागू भी किया जा सका तो एक गैर-कांग्रेसी सरकार में। केंद्रीय सेवाओं और सार्वजनिक उपक्रमों में नौकरियों के लिए सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को 27% आरक्षण देने का प्रावधान किया गया। 1990 में जनता दल सरकार का नेतृत्व कर रहे प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने इस आरक्षण को लागू किया। 

मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू किए जाने के बाद देश में जाति की राजनीति की दिशा बदल गई। ओबीसी के लिए 27% आरक्षण ने समुदाय में मुखरता की लहर पैदा की और मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार जैसे नेता उभरकर राजनीति में आए। उन्होंने अपना खुद का ओबीसी वोट बेस बनाया।

मंडल कमीशन के बाद जो जाति की राजनीति बदली और फिर मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद व नीतीश कुमार जैसे नेता उभरे तो कांग्रेस का मजबूत ओबीसी वोट बैंक सिकुड़ने लगा।

हिंदी पट्टी में यह बड़े पैमाने पर हुआ। इसी बीच बीजेपी भी ओबीसी में एक मज़बूत पक्ष उभरकर सामने आया। बीजेपी 2014 से ओबीसी, दलित और आदिवासी वोटों में बड़ी पैठ बना रही है। इसके साथ साथ मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद व नीतीश कुमार की पार्टियों का जनाधार भी सिकुड़ता हुआ दिख रहा है।

इन्हीं हालातों में कांग्रेस ने फिर से दलितों और ओबीसी को अपने पक्ष में करने की कोशिशें शुरू की हैं। खासकर राहुल गांधी जातिगत जनगणना और आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से बढ़ाने की वकालत कर रहे हैं। वह जितनी जिसकी भागीदारी उतनी उसकी हिस्सेदारी की बात कह रहे हैं। हाल में कुछ दलितों और ओबीसी में इसके प्रति रुख भी बदलता दिख रहा है। 

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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने गुरुवार को कहा कि पिछले 10-15 सालों में कांग्रेस ने दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए पर्याप्त काम नहीं किया है। उन्होंने कहा कि उन्हें यह स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि पार्टी वंचित वर्गों द्वारा उनकी दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय में दिखाए गए विश्वास को बनाए रखने में सक्षम नहीं रही। 

दलितों के प्रभावशाली लोगों और बुद्धिजीवियों के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए राहुल ने कहा कि 'दलितों और पिछड़े वर्गों की मुक्ति का एक नया चरण आकार लेना शुरू कर रहा है'। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार राहुल ने कहा, 'मैं कह सकता हूं कि कांग्रेस ने पिछले 10-15 सालों में वह नहीं किया जो उसे करना चाहिए था। अगर मैं यह नहीं कहता… तो मैं आपसे झूठ बोल रहा होता। और मुझे झूठ बोलना पसंद नहीं है। यही हकीकत है। अगर कांग्रेस पार्टी ने दलितों, पिछड़ों और अति पिछड़ों का विश्वास बनाए रखा होता तो आरएसएस कभी सत्ता में नहीं आता।' कांग्रेस नेता ने कहा, '

इंदिरा गांधी के समय में पूरा विश्वास बनाए रखा गया था। दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, अति पिछड़ों को पता था कि इंदिरा गांधी उनके लिए लड़ेंगी और मर जाएंगी। लेकिन 1990 के दशक से आत्मविश्वास में गिरावट आ रही है और मैं इसे देख सकता हूँ।


राहुल गांधी, कांग्रेस नेता

उन्होंने कहा कि मैं नाम नहीं लूँगा, लेकिन यह वास्तविकता है और कांग्रेस पार्टी को वास्तविकता को स्वीकार करना होगा।

राहुल ने कहा है कि मौजूदा ढाँचे में दलितों और ओबीसी के लिए कोई अवसर नहीं हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि इस पर भाजपा और आरएसएस ने कब्जा कर लिया है। उन्होंने कहा कि वंचित वर्गों को सिर्फ प्रतिनिधित्व की नहीं बल्कि सत्ता की जरूरत है। उन्होंने कहा, 'उन्हें संस्थानों, शैक्षणिक संस्थानों, कॉरपोरेट इंडिया और न्यायपालिका में सत्ता में हिस्सेदारी की जरूरत है। सत्ता में हिस्सेदारी और प्रतिनिधित्व में बहुत अंतर है।' 

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आंतरिक क्राँति की ज़रूरत?

राहुल गांधी ने कहा कि अब स्थिति से निपटने में कांग्रेस को पार्टी में आंतरिक क्रांति लानी होगी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की ओर से स्वीकारोक्ति नुकसान पहुँचा सकती है, लेकिन वे नतीजों से डरते नहीं हैं।

राहुल ने कहा, 'मैंने कहा कि कांग्रेस ने आपके (दलित और ओबीसी) हितों की रक्षा नहीं की, जैसा कि उसे करना चाहिए था… मीडिया कहेगा कि राहुल गांधी यह कह रहे हैं, लेकिन यह मेरे लिए मायने नहीं रखता क्योंकि यह वास्तविकता है।'

राहुल ने कहा कि बीजेपी नफरत की राजनीति करती है, जबकि कांग्रेस मोहब्बत की दुकान खोलती और विचारधारा की लड़ाई लड़ रही है इसलिए किसी भी स्तर पर बीजेपी से समझौता नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हम मर जाएंगे, लेकिन भाजपा से समझौता नहीं करेंगे। 

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है।)
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क़मर वहीद नक़वी
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