बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार
आगे
बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार
आगे
कल्पना सोरेन
जेएमएम - गांडेय
पीछे
तीन लोकसभा और 29 विधानसभा सीटों के नतीजों का असर क्या पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव पर हो सकता है। इससे भी आगे बढ़ें तो क्या 2024 के चुनाव पर भी इन नतीजों का कुछ असर होगा? इस पर ही हम बात करेंगे। इसमें हम उपचुनाव वाले कुछ राज्यों के नतीजों का विश्लेषण भी करेंगे। पांच राज्यों के चुनाव फरवरी-मार्च में होने हैं।
हिमाचल में जिस मंडी सीट पर वह 2019 में चार लाख से ज़्यादा वोटों से जीती थी, वहां वह हार गई है। इसके अलावा तीन विधानसभा सीटों पर भी उसे हार मिली है। मध्य प्रदेश की खंडवा सीट पर बीजेपी की जीत का अंतर पौने तीन लाख वोटों से घटकर 82 हजार रह गया है। राज्य की रैगांव सीट भी वह 31 साल बाद हारी है और जिन दो विधानसभा सीटों पर जीती है, वहां आयातित नेताओं की बदौलत उसे जीत मिली है।
इसी तरह बीजेपी को बंगाल में करारी हार मिली है। यहां की चारों सीटों पर टीएमसी को जीत मिली है। इसमें दिन्हाटा में जीत का अंतर डेढ़ लाख वोटों से ज़्यादा रहा है जबकि गोसाबा में भी टीएमसी को लगभग डेढ़ लाख वोटों से जीत मिली है।
टीएमसी अगर इसी तरह आक्रामक ढंग से आगे बढ़ी तो निश्चित रूप से वह 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को राज्य में उसका पिछला प्रदर्शन दोहराने से रोक देगी।
बिहार में जेडीयू के दोनों सीटों पर जीत दर्ज करने के बाद बीजेपी को अपने सहयोगी से एक तरह से चुनौती मिली है। क्योंकि वह राज्य में अपने नेता का मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा देखना चाहती है लेकिन इस जीत के बाद नीतीश और जेडीयू का मनोबल ऊंचा हुआ है और वह बीजेपी को ख़ुद पर हावी नहीं होने देंगे।
राजस्थान में बीजेपी की शर्मनाक हार हुई है। वल्लभनगर और धरियावद सीट पर हुए उपचुनाव में पार्टी एक सीट पर तीसरे और दूसरी सीट पर चौथे स्थान पर रही है। जबकि राज्य में वह बड़ी सियासी ताक़त है। तेलंगाना में जिस हुजूराबाद सीट पर बीजेपी को जीत मिली है, वह उसकी अपनी जीत नहीं है। यह ईटाला राजेंद्र की जीत है। वह छह बार के विधायक रहे हैं और कुछ वक़्त पहले ही बीजेपी में शामिल हुए हैं।
हरियाणा के एलनाबाद में बीजेपी-जेजेपी सरकार के पूरा जोर लगाने के बाद भी इनेलो के अभय चौटाला ने उसके उम्मीदवार को हरा दिया है। यहां किसानों ने भी बीजेपी-जेजेपी का पुरजोर विरोध किया था।
यहां जिक्र उत्तराखंड का ज़रूर करना होगा। क्योंकि हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में कई समानताएं हैं। दोनों राज्य पर्वतीय हैं, दोनों में सैनिकों की आबादी ज़्यादा है।
हिमाचल में जीत के बाद उत्तराखंड के कांग्रेसी भी बेहद ख़ुश नज़र आ रहे हैं। उन्हें लगता है कि इस पर्वतीय राज्य की जनता भी बीजेपी का डिब्बा गोल कर सकती है। हिमाचल के नतीजों की उत्तराखंड की बीजेपी और कांग्रेस, दोनों इकाइयों में जबरदस्त चर्चा है।
बीजेपी उत्तराखंड में कुछ ही महीने के अंदर तीन मुख्यमंत्री बदल चुकी है तो हिमाचल में अगले विधानसभा चुनाव में किसी ख़तरे को देखते हुए क्या वह जयराम ठाकुर को भी बदल देगी? इस बात की चर्चा भी मीडिया और राजनीति के गलियारों में है।
कुल मिलाकर हिंदी बेल्ट के जिन राज्यों में उपचुनाव हुए हैं- वहां पार्टी का प्रदर्शन उसकी उम्मीदों के हिसाब से बिलकुल भी ठीक नहीं रहा है और यह कम से कम उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में ज़रूर असर कर सकता है।
अंत में एक अहम बात यह कि उपचुनाव के नतीजों से विपक्षी दलों को इस बात की ताक़त मिली है कि वे बीजेपी का खूंटा उखाड़ सकते हैं। हिमाचल और राजस्थान की जीत से निश्चित रूप से पांच चुनावी राज्यों के कांग्रेस कार्यकर्ता मैदान में उतर जाएंगे।
यहां एक बात और ध्यान रखनी होगी कि हिमाचल प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक बीजेपी का वोट प्रतिशत गिरा है। राजस्थान में बुरी ग़त हुई है। इसका सीधा मतलब है कि मतदाता बीजेपी से ख़ुश नहीं हैं।
बेशक ये नतीजे बीजेपी के लिए ख़तरे की घंटी हैं क्योंकि उसे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में अपनी और एनडीए की सरकारों को बचाना है। उपचुनाव के नतीजों के बाद राजस्थान और हिमाचल प्रदेश बीजेपी में जबरदस्त हलचल है और माना जा रहा है कि पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व कोई बड़ा क़दम उठा सकता है।
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