13 राज्यों में उपचुनाव के नतीज़ों के बाद केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल सस्ते किए जाने का फ़ैसला किया है। सरकार पेट्रोल और डीजल पर पाँच और 10 रुपये का उत्पाद शुल्क कम करेगी। यह फ़ैसला दिवाली के दिन लागू होगा। पाँच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले लिया गया सरकार का यह निर्णय लोगों को राहत पहुँचाने वाली है। सवाल है कि सरकार का यह फ़ैसला चुनावी हलचल के बीच क्यों आई है?
माना जा रहा है कि उत्पाद शुल्क में कमी किए जाने से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी आएगी। इसके साथ ही केंद्र ने राज्यों से उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए दोनों ईंधनों पर वैट कम करने का आग्रह किया है।
भारत उन देशों में शामिल है जहाँ ईंधनों पर सबसे ज़्यादा टैक्स लिया जा रहा है। आर्थिक मामलों के जानकार प्रोफ़ेसर संतोष महरोत्रा ने सत्य हिंदी के एक कार्यक्रम में कहा कि जर्मनी, इटली, जापान जैसे देशों में पेट्रोलियम पदार्थों पर 65 फ़ीसदी से ज़्यादा टैक्स नहीं लगाया जाता है, लेकिन भारत में यह 260 फ़ीसदी लगाया जा रहा है और इसी वजह से पेट्रोल-डीजल इतना महंगा है।
सरकार ने उत्पाद शुल्क में कटौती का यह फ़ैसला तब लिया है जब एक दिन पहले ही 13 राज्यों में हुए उपचुनाव के नतीजे आए हैं। ये नतीजे बीजेपी के लिए बड़ा झटका हैं। ऐसा इसलिए कि असम को छोड़कर किसी भी राज्य में बीजेपी के लिए निराशाजनक स्थिति रही है। पश्चिम बंगाल में 4 में से 3 सीटों पर जमानत जब्त हो गई। चौथे सीट पर भी बड़े अंतर से हार हुई। हिमाचल में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया। राजस्थान में भी बीजेपी की हालत बेहद ख़राब रही। बिहार का नतीजा भी उसके पक्ष में नहीं रहा। कर्नाटक में बीजेपी-कांग्रेस को 1-1 सीट मिली। मध्य प्रदेश में बीजेपी की अपेक्षाकृत अच्छी स्थिति रही, लेकिन उसके गढ़ में भी जीत का मार्जिन काफ़ी कम हो गया है। दूसरे राज्यों में भी बीजेपी की हालत ठीक नहीं रही।
इन सभी जगहों पर अन्य कारणों के साथ महंगाई को सबसे बड़ा मुद्दा माना गया। इसमें भी पेट्रोल और डीजल के महंगे होने का मुद्दा तो सबसे अहम रहा। बीजेपी नेताओं ने ही दबी जुबान में यह माना भी है।
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने तो कह दिया कि पार्टी को जनता ने नहीं, बल्कि महंगाई ने हराया है।
अब चूँकि पाँच महीने में ही पाँच राज्यों में चुनाव होने हैं तो सरकार के लिए यह एक निर्णायक वक़्त है। इन पाँच राज्यों में उत्तर प्रदेश भी शामिल है जहाँ का चुनाव केंद्र की राजनीति को बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है।वैसे, पेट्रोल और डीजल की बढ़ती क़ीमतों ने भी बीजेपी की राजनीति को प्रभावित करने लगा क्योंकि विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाना शुरू कर दिया। एक दिन पहले ही कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा था कि जब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार से 105.71 डॉलर प्रति बैरल में कच्चा तेल खरीदकर मई 2014 में पेट्रोल 71.41 रुपये और डीजल 55.49 रुपये में दिया जा रहा था तो अब यह इतना महंगा क्यों है? उन्होंने 2014 से तुलना करते हुए कहा था कि अभी तो अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चा तेल 85 डॉलर प्रति बैरल है तो फिर पेट्रोल क़रीब 110 और डीजल 98 रुपये प्रति लीटर क्यों?
सरकार से एक सवाल..
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) November 2, 2021
मई 2014 में पेट्रोल 71.41 रुपए और डीजल 55.49 रुपये था, तब कच्चा तेल 105.71 डॉलर/बैरल था..
नवंबर 2021 में पेट्रोल 109.69 और डीजल 98.42 रुपये प्रति लीटर है और कच्चा तेल 85 डॉलर/बैरल है..
जब कच्चा तेल अब पहले से सस्ता है तो पेट्रोल-पंप पर तेल क्यों महंगा है..?
गैस के दाम
तीन दिन पहले ही कमर्शियल गैस सिलेंडर का दाम 266 रुपये बढ़ाया गया है। इसके साथ ही दिल्ली में अब एक सिलेंडर की क़ीमत 2000 रुपये हो गई है। इससे पहले जून 2013 में यह सिलेंडर 1327 रुपये का था। कमर्शियल गैस सिलेंडर में 19 किलो गैस होती है। रसोई गैस सिलेंडर का दाम क़रीब 900 रुपये है। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इसके दाम दोगुने से भी ज़्यादा हो गए हैं। मार्च 2014 में जिस 14.2 किलोग्राम के रसोई गैस सिलेंडर के दाम दिल्ली में 410 रुपये थे उसकी क़ीमत अब 899.50 रुपये हो गई है।
अपनी राय बतायें