आम आदमी पार्टी यानी आप ने बुधवार को समान नागरिक संहिता को अपना सैद्धांतिक समर्थन दिया है। हालाँकि, इसके साथ ही इसने एक शर्त भी जोड़ दी है और कहा है कि सभी हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया जाना चाहिए।
आप के राष्ट्रीय महासचिव संदीप पाठक ने कहा है, 'सैद्धांतिक रूप से हम समान नागरिक संहिता का समर्थन करते हैं क्योंकि अनुच्छेद 44 भी कहता है कि देश में यूसीसी होना चाहिए। हालांकि, इसे सभी के साथ व्यापक परामर्श के बाद लागू किया जाना चाहिए। हमारा मानना है कि सभी धर्मों के साथ व्यापक परामर्श होना चाहिए। राजनीतिक दलों और संगठनों को एक आम सहमति बनानी चाहिए।'
हम सैद्धांतिक रूप से UCC के समर्थन में हैं क्योंकि Article 44 भी कहता है कि देश में UCC होना चाहिए।
— AAP (@AamAadmiParty) June 28, 2023
कुछ मुद्दे ऐसे होते हैं, जिन पर आप Reverse नहीं जा सकते हैं, ऐसे मुद्दे लागू करने से आपसे कई धर्मो, सम्प्रदाय के लोग नाराज़ हो सकते हैं
आप Authoritarian तरीक़े से इसे लागू नहीं… pic.twitter.com/RKXZvtsLVu
आम आदमी पार्टी का यह बयान तब आया है जब समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी को लागू करने की बात अब प्रधानमंत्री मोदी ने भी की है। यूसीसी पर जोर देते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को कहा कि भारत दो कानूनों के साथ नहीं चल सकता, जबकि भारत का संविधान सभी के लिए समानता की बात करता है। उन्होंने पूछा कि परिवार के अलग-अलग सदस्यों पर अलग-अलग नियम कैसे लागू हो सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों और अगले साल लोकसभा चुनावों के लिए धार्मिक ध्रुवीकरण के रूप में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। विपक्षी दल भी इसको लेकर सवाल उठा रहे हैं कि विविधता वाले देश में आख़िर एकरूपता लाने की कोशिश क्यों की जा रही है।
आप चाहती है कि कांग्रेस दिल्ली में ट्रांसफर पोस्टिंग से जुड़े केंद्र के अध्यादेश की आलोचना करे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब सीएम भगवंत मान बैठक में शामिल हुए, लेकिन उसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल नहीं हुए थे।
इस बीच कांग्रेस ने देश में सभी धर्मों के लिए नियमों के एक सेट पर बहस में शामिल हुए बिना यूसीसी के लिए प्रधानमंत्री की वकालत को ध्यान भटकाने वाली रणनीति के रूप में आलोचना की। कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि समान नागरिक संहिता को सही ठहराने के लिए एक परिवार और राष्ट्र के बीच तुलना करना ग़लत है।
चिदंबरम ने कहा, 'एक परिवार खून के रिश्तों से जुड़ा होता है। एक राष्ट्र को एक संविधान द्वारा एक साथ लाया जाता है जो एक राजनीतिक-कानूनी दस्तावेज है। यहां तक कि एक परिवार में भी विविधता है। भारत के संविधान ने भारत के लोगों के बीच विविधता और बहुलता को मान्यता दी है।'
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