आख़िरकार भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण सिंह के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे पहलवानों ने आंदोलन ख़त्म कर दिया। महिला पहलवान साक्षी मालिक, विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया का कहना है कि अब अपनी लड़ाई सड़क पर नहीं, अदालत में लड़ी जाएगी और ये तब तक जारी रहेगी, जब तक न्याय नहीं मिल जाता। इसका सीधा मतलब है कि महिला और पुरुष पहलवान सियासत के दांव-पेंच के सामने चित हो गए, क्योंकि वे सड़क से अपनी लड़ाई नहीं जीत सके। अदालत के दरवाजे तो लड़ाई के लिए पहले से खुले थे। आप इसे एक आंदोलन की भ्रूण हत्या मान सकते हैं।

देश में आंदलनों का भविष्य क्या है? यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ महिला पहलवानों के आंदलन के क्या मायने हैं? किसान आंदोलन का क्या हस्र हुआ?
बृजभूषण के खिलाफ लड़ाई को लेकर सरकार के वादों पर यक़ीन करना महिला खिलाड़ियों की मजबूरी थी, क्योंकि सरकार ने साफ़ जाहिर कर दिया था कि उसके रहते आरोपी जेल तो नहीं जाएगा। शायद इसीलिए साक्षी को कहना पड़ा कि सरकार ने पहलवानों के साथ किए वादे पर अमल करते हुए महिला कुश्ती खिलाड़ियों की ओर से महिला उत्पीड़न और यौन शोषण के संबंध में की गई शिकायतों पर प्राथमिकी दर्ज की। दिल्ली पुलिस ने जांच पूरी करके 15 जून को कोर्ट में चार्जशीट पेश कर दी है। इस केस में पहलवानों की कानूनी लड़ाई सड़क की जगह कोर्ट में जारी रहेगी। कुश्ती संघ के सुधार के संबंध में नई कुश्ती संघ के चुनाव की प्रक्रिया वादे के अनुसार शुरू हो गई है। चुनाव 11 जुलाई को होना तय है। सरकार ने जो वादे किए हैं, उस पर अमल होने का इंतजार रहेगा।