क़रीब चार साल पहले यूपीएससी के परिणाम आए और मैंने देखा कि एक नाम फिर सामने आया वो था ज़कात फ़ाउंडेशन का। मैं हैरान था और हतप्रभ भी। मेरे मन में कई सवाल थे, पहला, ये कौन सी संस्था है, दूसरा, ये ऐसा क्या कर रही है जो इतने अल्पसंख्यक बच्चे इनके यहाँ से पढ़कर सिविल सेवा में पास हो रहे हैं, और आख़िरी- अल्पसंख्यकों में इतनी फ़िक्र किसे पड़ी है। सारे सवाल समेट कर एक दिन मैं ज़फ़र साहब से मिलने गया। सीआईएसआरएस, जंगपुरा में भी उनका ऑफ़िस है, जहाँ बच्चों की सिविल सेवा परीक्षा की तैयारियों के लिए चयन की प्रक्रिया होती है।
माई डियर, तुम्हें ज़कात नहीं, मुसलमानों से नफरत है
- विचार
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- 20 Sep, 2020

सैयद जफर महमूद का ज़कात फ़ाउंडेशन क्यों चर्चा में है? यह संस्था ऐसा क्या कर रही है जो इतने अल्पसंख्यक बच्चे सिविल सेवा में पास हो रहे हैं?
वहाँ पहुँचा तो देखता हूँ एक हॉल में जहाँ हम बैठे हुए थे, एक छोटे से कद का, बढ़ी उम्र का एक शख्स हमारे सामने आया, चेहरे पर आधी मुस्कुराहट, पूरी गंभीरता। परिचय के बाद मैंने दिमाग में उधम मचा रहे पहले सवाल को दागा। मैंने पूछा, आप कौन हैं और ये काम कब से कर रहे हैं? सवाल के जवाब में जफर साहब मुस्कुराए और बोले, हम भी सरकार की नौकरी कर के आए हैं और कुछ लोग मिलकर माइनॉरिटी के उन बच्चों को जिनमें कुछ करने की सलाहियत है, आगे बढ़ा रहे हैं। मैंने पूछा, सिर्फ़ मुसलमान? जवाब आया बिल्कुल नहीं, हमारे पास ईसाई, सिख और अन्य अल्पसंख्यकों के बच्चे भी कोचिंग पाते हैं। आप चाहें तो सिविल क्वालिफाई कर निकले बच्चों की लिस्ट को देख सकते हैं। मेरा दूसरा सवाल था कि मुसलिम समाज में बीते 70 सालों में तो ये सब नहीं हुआ तो अब कैसे? जवाब था कि आज नहीं तो किसी को तो शुरुआत करनी होगी। हम कब तक कहेंगे कि बीते साल, बीते साल। हिंदुस्तान ने सबको बराबरी का हक दिया है और आप कोशिश क्यों नहीं करते। हम सिर्फ़ ज़रिया हैं ऐसी उम्मीदों का जो कुछ करना चाहती हैं लेकिन आर्थिक तंगी और सहुलियतें उनके आड़े आती हैं।