loader
प्रतीकात्मक तस्वीर।

वी-डेम रिपोर्ट: क्या भारत में लोकतंत्र की जड़ें हिल रही हैं?

वी-डेम  इंस्टिट्यूट की भारत के संबंध में रपट, जो द हिंदू में प्रकाशित की गई है, में कहा गया है कि ‘यह रेखांकित करते हुए कि लोकतंत्र के लगभग सभी घटकों की स्थिति जितने देशों में सुधर रही है, उससे अधिक देशों में बिगड़ रही है, रपट में विशेष तौर पर यह ज़िक्र किया गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निष्पक्ष चुनाव और संगठित होने व नागरिक समाज की आज़ादी पर निरंकुशता की ओर बढ़ते देशों में सबसे गंभीर दुष्प्रभाव पड़ा है।’

रपट में भारत के मैदानी हालात का काफ़ी सटीक सार प्रस्तुत किया गया है। इसके अलावा, भारत में अल्पसंख्यकों के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया जा रहा है। हाल के समय में आरएसएस-बीजेपी मिलकर हिंदू उत्सवों और समागमों का इस्तेमाल अल्पसंख्यकों को आतंकित करने के एक और औजार के रूप में करने लगे हैं। यह रामनवमी के समारोहों, होली और कुंभ मेले के दौरान व्यापक तौर पर देखा गया।

ताज़ा ख़बरें

पिछले दस सालों से सत्ता पर काबिज समूह के बढ़ते हुए तानाशाहीपूर्ण रवैये के चलते ही तमाम विरोधाभासों के बावजूद अधिकांश विपक्षी दलों ने एकजुट होकर इंडिया गठबंधन बनाया।  इस गठबंधन के गठन, राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा व भारत जोड़ो न्याय यात्रा व सामाजिक समूहों द्वारा गठित मंचों जैसे इदिलू कर्नाटका और भारत जोड़ो अभियान का मिलाजुला प्रभाव लोकसभा चुनावों पर पड़ा और बीजेपी का 400 सीटें जीतने का लक्ष्य मिट्टी में मिल गया।

यह सच है कि इंडिया गठबंधन वांछित दिशा में नहीं बढ़ा और विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ने का इरादा पूरा न हो सका। यह इंडिया गठबंधन को महाराष्ट्र और हरियाणा चुनावों में सफलता हासिल न हो पाने की एक वजह थी। इसकी दूसरी वजह थी संघ परिवार के सभी सदस्यों द्वारा बीजेपी के पक्ष में पूरी ताक़त लगा देना। यह कोई नई बात नहीं है लेकिन यह उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनावों के दौरान जे. पी. नड्डा ने बयान दिया था कि बीजेपी को आरएसएस की मदद की ज़रूरत नहीं है क्योंकि अब वह इतनी सशक्त हो गई है कि सिर्फ़ अपने दम पर चुनाव जीत सके।

ऐसा लगता है कि लोकसभा चुनावों के बाद इंडिया गठबंधन को मज़बूत बनाने की महत्वपूर्ण ज़रूरत के प्रति उसके कई घटक दलों का रवैया उपेक्षापूर्ण रहा और कई ने इसके प्रति उदासीनता दर्शाई और सबसे बड़े विपक्षी दल, कांग्रेस ने भी इस संबंध में कोई बड़ी पहल नहीं की। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि विचारधारा की दृष्टि से इस गठबंधन का सशक्त घटक सीपीआई (एम) इस मामले पर पुनर्विचार कर रहा है। उसके कार्यवाहक महासचिव प्रकाश करात ने कहा है कि विपक्षी इंडिया गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए बनाया गया था राज्यों के चुनावों के लिए नहीं… और उन्होंने धर्मनिरपेक्ष विपक्षी दलों का एक वृहद गठबंधन बनाए जाने का आह्वान किया।
प्रकाश करात ने यह भी कहा कि गठबंधनों को एक वृहद परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए ताकि चुनावी राजनीति उनका गला न घोंट दे।
यही बात दूसरे शब्दों में वामपंथी झुकाव वाले बुद्धिजीवी कह रहे हैं जिनका मानना है कि भाजपा दरअसल, एक पूरी तरह फासीवादी पार्टी नहीं है। जैसे प्रभात पटनायक तर्क देते हैं कि नवउदारवादी पूंजीवाद एक ‘फासीवादी हालात‘ उत्पन्न करता है जो दक्षिणपंथी अधिनायकवादी आंदोलनों, विदेशियों के प्रति द्वेष, अति राष्ट्रवाद और लोकतांत्रिक मूल्यों के क्षय के रूप में प्रकट होती है - किंतु यह अनिवार्यतः 1930 के दशक के पूरी तरह से ‘फासीवादी राष्ट्र‘ का पुनर्सृजन नहीं करती।

हिन्दुत्वादी राष्ट्रवाद के लिए नव फासीवाद, आद्य फासीवाद, कट्टरवाद आदि कई शब्दों का इस्तेमाल किया गया है परंतु रेखांकित करने वाली बात यह है कि कोई भी राजनैतिक परिघटना स्वयं को उसी तरीक़े से नहीं दुहराती। आज हिन्दुत्वादी राष्ट्रवाद के कई लक्षण फासीवाद से मिलते-जुलते हैं। फासीवाद ही आरएसएस के संस्थापकों, विशेषकर एम. एस. गोलवलकर का प्रेरणास्रोत था। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘वी ऑर अवर नेशनहुड डिफाइंड‘ में कहा,

"अपनी संस्कृति और नस्ल की शुद्धता कायम रखने के लिए जर्मनी ने सेमेटिक नस्लों - यहूदियों - का देश से सफाया कर दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया। यह नस्लीय अभिमान की उच्चतम अभिव्यक्ति है। जर्मनी ने यह भी दिखा दिया है कि मूलभूत अंतर वाली विभिन्न संस्कृतियों और नस्लों का मिलकर एक हो जाना लगभग असंभव होता है। यह हिन्दुस्तान में हमारे लिए एक अच्छा सबक़ है जिससे हम कुछ सीख सकते हैं और लाभान्वित हो सकते हैं।"

हम भारत में फासीवाद के लक्षणों को उभरता देख रहे हैं जैसे स्वर्णिम अतीत, अखंड भारत की अभिलाषा, अल्पसंख्यकों को देश का शत्रु क़रार देकर निशाना बनाना, अधिनायकवाद, बड़े उद्योग-धंधों को बढ़ावा देना, अभिव्यक्ति की आज़ादी पर प्रहार और सामाजिक चिंतन पर हावी होना आदि। हम यहां अभिव्यक्ति की आज़ादी के प्रति असहनशीलता का नजारा देख रहे हैं, जैसा कि महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी के मामले में हाल में हुआ। उन्होंने कहा था,

‘‘आरएसएस एक जहर है। वे इस देश की अंतरात्मा को नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं। हमें इससे भयभीत होना चाहिए क्योंकि यदि अंतरात्मा नष्ट हो जाती है, तो सब कुछ छिन जाता है।" 

तुषार गांधी से माफी मांगने और अपने शब्द वापस लेने की मांग की गई। उन्होंने दोनों में से कुछ भी नहीं किया और अब उन्हें हत्या की धमकियां दी जा रही हैं।

आरएसएस ने अपनी जबरदस्त पहुंच, सैकड़ों अनुषांगिक संगठनों, हजारों प्रचारकों और लाखों कार्यकर्ताओं के माध्यम से आजादी के आंदोलन से जन्मे भारत के विचार के लिए ख़तरा पैदा कर दिया है, आज़ादी के आंदोलन के मूल्य हमारे संविधान में अभिव्यक्त हुए, जो सभी नागरिकों को समान अधिकार देने पर आधारित हैं और इसके केन्द्र में है समावेशिता। आरएसएस की विचारधारा आज़ादी के आंदोलन और भारतीय संविधान के मूल्यों के विपरीत है। और वह अपने विशाल नेटवर्क के माध्यम से उसे आगे बढ़ा रहा है।

प्रारंभ में उसने इतिहास को तोड़-मरोड़कर मुसलमानों के प्रति नफ़रत पैदा की, जैसा इस समय महाराष्ट्र में हो रहा है जहां औरंगजेब की कब्र को हटाया जाना सत्ताधारी भाजपा की पहली प्राथमिकता बन गया है। इस समय उसके इशारे पर स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता महात्मा गांधी भी हैं, जिनके बारे में यह प्रोपेगेंडा फैलाया जा रहा है कि हमें आज़ादी दिलवाने में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। यहाँ तक कि उसके कई सोशल मीडिया पोस्टों पर यह तक दावा किया जा रहा है कि गांधीजी ने स्वतंत्रता आंदोलन में रोड़े अटकाने का काम किया।

ख़ास ख़बरें

यह सूची बहुत लंबी है। आज क्या किए जाने की ज़रूरत है? करात का यह कहना सही है कि एक वृहद धर्मनिरपेक्ष गठबंधन बनाए जाने की ज़रूरत है। इंडिया गठबंधन निश्चित रूप से इस यात्रा का पहला क़दम था। ज़रूरत इस बात की है कि इस गठबंधन को और सशक्त बनाया जाए। गठबंधन के आंतरिक मतभेदों, टकरावों और विवादों को सुलझाया जाए। गठबंधन के सदस्य दलों के बीच कुछ विरोधाभासों के बावजूद 10 लाख से अधिक सदस्यों वाली करात की पार्टी इस गठबंधन को मज़बूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। एक बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए घटक दलों को छोटी-छोटी कुर्बानियाँ देनी ही होंगी।

इस प्रक्रिया को और बल प्रदान करने के लिए सामाजिक संगठनों को वह प्रभावी काम जारी रखना होगा जो उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद किया था। एक राष्ट्रीय धर्मनिरपेक्ष गठबंधन भी इन्हें शुरू कर सकता है। वर्तमान सत्ताधारियों का ठीक-ठीक चरित्र फासीवादी हो या उसमें फासीवाद के कुछ तत्व हों या जो भी हो, इंडिया की रणनीति एक व्यापक गठबंधन बनाने की होनी चाहिए जो उस ऊर्जा और गतिशीलता से भरा हुआ हो, जो 2024 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले नज़र आई थी। 

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया। लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
राम पुनियानी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें