जिस दिन महाराष्ट्र में ठाकरे की सरकार बनी थी उसी दिन इसकी मौत के काग़ज़ पर दस्तख़त कर दिये गये थे। बस उस पर तारीख़ डालनी बाक़ी थी। बीजेपी को ‘धोखा’ देने के बाद कब तक बकरे की माँ ख़ैर मनाती। उसे तो कटना ही था। एकनाथ शिंदे तो बस बहाना हैं। वो नहीं कोई और होता। हाँ जो चीज़ हैरान करने वाली है वो है इतनी बड़ी संख्या में शिवसेना के विधायकों का बगावत करना वो भी ठाकरे परिवार के ख़िलाफ़। इससे ये भी साबित होता है कि ठाकरे में अपने पिता की तरह न तो तेज है और न ही रणनीतिक तौर पर कुशल। सबको मालूम था कि मोदी काल में विपक्ष की सरकारों के सिर पर हमेशा तलवार लटकती रहती है, उस स्थिति में सुरक्षा इंतज़ाम ठाकरे ने क्यों नहीं किये? वो क्यों अपने ही विधायकों से दूर होते चले गये?