किसी भी चैनल के विज्ञापन की दर उसके दर्शकों की संख्या के आधार पर तय होती है। उदाहरण के लिए अगर किसी चैनल के दर्शकों की संख्या सबसे ज़्यादा है तो उस पर विज्ञापन महँगा होता है और जिस चैनल के दर्शकों की संख्या कम है उस पर विज्ञापन सस्ता होता है। हिंदी न्यूज़ में सबसे ज़्यादा दर्शक वाले चैनल को दस सेकेंड के विज्ञापन के लिए चार हज़ार रुपये तक मिल जाते हैं जबकि सबसे कम दर्शक वाले चैनल को दस सेकेंड के विज्ञापन के लिए मात्र दस रुपये मिलते हैं।

टैम के ज़माने में टीआरपी की एक बड़ी धोखाधड़ी सामने आयी थी। बड़ी संख्या में ख़ास लोगों के घर पर मुफ़्त टीवी सेट दिए गए थे। उनमें टैम का मीटर लगाया गया था। आरोप था कि टैम के कुछ अधिकारी पैसे लेकर एक ख़ास चैनल चलवाते थे जिससे उसकी टीआरपी बढ़ जाए। इसके बदले में चैनल से उनको मोटी रक़म मिलती थी।
विज्ञापन की आमदनी पर निर्भर
इसके अलावा ज़्यादातर बड़े विज्ञापनदाता सबसे ज़्यादा दर्शक वाले तीन या चार चैनलों को ही विज्ञापन देते हैं। भारत में दर्शक अभी भी न्यूज़ चैनलों को देखने के लिए पैसे नहीं देते यानी न्यूज़ चैनल पे चैनल नहीं हैं इसलिए वे सिर्फ़ विज्ञापन की आमदनी पर निर्भर हैं। मनोरंजन चैनल को दर्शकों से फ़ीस तो मिलने लगी है लेकिन ख़र्च के हिसाब से ऐसे पे चैनलों की आमदनी भी बहुत कम है इसलिए वे भी विज्ञापन पर ही निर्भर हैं।
शैलेश कुमार न्यूज़ नेशन के सीईओ एवं प्रधान संपादक रह चुके हैं। उससे पहले उन्होंने देश के पहले चौबीस घंटा न्यूज़ चैनल - ज़ी न्यूज़ - के लॉन्च में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। टीवी टुडे में एग्ज़िक्युटिव प्रड्यूसर के तौर पर उन्होंने आजतक