नोटबंदी क्या भारत की राजनीति में बोला गया सबसे बड़ा झूठ है? क्या नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुँचा दिया? 8 नवंबर को देश नोटबंदी की तीसरी बरसी झेल रहा है। हैरानी की बात यह है कि जिस नोटबंदी की वजह से सौ से ज़्यादा लोगों की जान गयी आज तक उस पर सरकार ने कोई क्षमा याचना नहीं की और न ही यह क़बूला कि इस वजह से देश को आर्थिक मोर्चे पर ज़बर्दस्त झटका लगा।
नोटबंदी को रात आठ बजे लागू करने के एलान के समय मोदी ने चार बड़े टार्गेट तय किये थे। एक, भारतीय सिस्टम में जो काला धन है वह ख़त्म हो जायेगा। दो, आतंकवाद की कमर टूट जाएगी। तीन, पाकिस्तान जो भारत में फ़र्ज़ी नोट भेज रहा है वह ग़ायब हो जायेगा। चार, नशीली दवाओं का क़ारोबार पूरी तरह से चौपट हो जायेगा। आज यह सवाल पूछना चाहिए कि क्या ये चारों लक्ष्य सरकार पाने में कामयाब रही?
नोटबंदी के लागू होने के समय यह बात ज़ोरदार तरीक़े से कही गयी कि तक़रीबन साढ़े चार लाख करोड़ का काला धन सिस्टम में है, वह पकड़ा जायेगा। दिलचस्प बात यह है कि नोटबंदी के बाद सरकार से कई बार पूछा गया कि कितना काला धन बर्बाद हुआ। लंबे समय तक सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया। यहाँ तक कि संसदीय समिति के सामने भी रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने काफ़ी टाल-मटोली की। और आख़िर में जब आँकड़े सामने आये तो सबकी आँखें फटी की फटी रह गयीं। 99% पैसा रिज़र्व बैंक में वापस आ गया। तो फिर क्या सरकार की पूरी मेहनत बेकार गयी या यूँ कहें कि सिस्टम ने सबको बेवक़ूफ़ बना दिया?
उन दिनों अख़बारों में ख़ूब ख़बरें छपी थीं कि बैंक और धन्नासेठों ने मिल कर बड़े पैमाने पर काले धन को सफ़ेद कर लिया। यानी नोटबंदी से काला धन वालों की बल्ले बल्ले हो गयी, उनका हराम का पैसा ईमानदारी में बदल गया। अब सवाल यह उठता है कि सरकार क्या सो रही थी? आख़िर उसकी नाक के नीचे इतना बड़ा घोटाला कैसे हो गया? सरकार काला क़ारोबारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं कर पायी? इक्का-दुक्का बैंक कर्मचारियों को तो सज़ा मिली पर बाक़ी कोई बड़ा क़ारोबारी नहीं पकड़ा गया। ख़बर यह भी थी कि बीजेपी के कुछ बेहद बड़े नेताओं ने भी बैंकों की आड़ में करोड़ों रुपये सफ़ेद कर लिये। यह अकारण नहीं है कि विपक्ष ने नोटबंदी को आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा घोटाला क़रार दिया।
मोदी ने ताल ठोक कर कहा था कि नोटबंदी से आतंकवाद की कमर टूट जायेगी। क्या वाक़ई ऐसा हुआ? आतंकवाद आज भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। आज भी पाकिस्तान के आतंकवादी कश्मीर में हिंसा का घिनौना खेल खेल रहे हैं। आज भी नागरिकों और भारतीय सुरक्षा बलों को जान माल का नुक़सान हो रहा है। सरकार ने नोटबंदी के पहले भी सर्जिकल स्ट्राइक का दावा करते वक़्त आतंकवाद को मिटाने की बात कही थी। लेकिन अब तक कई सर्जिकल स्ट्राइक हो चुके हैं और आतंकवाद की समस्या ज्यों का त्यों बनी हुई है। नशीली दवाओं का क़ारोबार भी जस का तस जारी है। फ़र्ज़ी नोट का धंधा भी सुचारू रूप से चल रहा है। ऐसे में प्रधानमंत्री से यह पूछना चाहिए कि नोटबंदी से क्या बदला और क्यों जिन उद्देश्यों का हवाला दिया गया था वे पूरे नहीं हुए। आज क्यों न यह कहा जाए कि देश के साथ एक बड़ा मज़ाक किया गया। एक झूठ बोला गया।
मोदी सरकार ने अपनी आदत के हिसाब से कभी अपनी ग़लती नहीं मानी और न ही माना कि नोटबंदी को लागू करने में वह चूक गये। उल्टे तर्क दिया गया कि नोटबंदी के कारण देश ‘कैशलेस इकॉनमी’ बन गया है। टैक्स वसूली में इज़ाफ़ा हुआ।
कैशलेस इकॉनमी आर्थिक और तकनीकी विकास की दिशा में एक स्वाभाविक क़दम है। टैक्स वसूली में बढ़ोतरी का दावा आज तीन साल बाद पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है। तीन साल बाद अर्थव्यवस्था की जो हालत है उससे जीएसटी वसूली और डायरेक्ट टैक्स वसूली दोनों में कमी आयी है। सरकार के हाथ तंग हुए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भविष्यवाणी सच साबित हो गयी है। उन्होंने कहा था कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था की कमर टूट जायेगी और जीडीपी ग्रोथ में दो प्वाइंट की गिरावट आयेगी। 2019 में विकास दर 8% से गिर कर 5% के क़रीब हो गयी है। आर्थिक विकास के सारे पैरामीटर निगेटिव में दिखायी पड़ रहे हैं। यहाँ तक कि ख़ुद रिज़र्व बैंक ने अनुमानित विकास दर को 6.9% से घटा कर 6.1% कर दिया है। वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ़ ने भी अनुमानित विकास दर कम की है। रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत की रेटिंग ‘स्टेबल’ से घटाकर ‘नेगेटिव’ कर दी है।
नोटबंदी से धंधा चौपट
हालाँकि विकास दर गिरने में जीएसटी का भी हाथ है लेकिन सारे अर्थशास्त्री इस बात पर एकमत हैं कि नोटबंदी ने छोटे और मझोले व्यवसायियों का धंधा चौपट कर दिया। लाखों इंडस्ट्रीज़ और कारख़ाने बंद हो गये। यह अनायास नहीं है कि ख़ुद सरकारी आँकड़े कहते हैं कि बेरोज़गारी पैंतालीस साल के सबसे ऊँचे स्तर पर है। कोर सेक्टर के ताज़ा आँकड़े बताते हैं कि विकास दर बढ़ने की जगह घट रही है। नवंबर के पहले हफ़्ते में कोर सेक्टर में उत्पादन दर माइनस 5.2% है। देश एक लंबे मंदी के दौर में प्रवेश कर चुका है। शहर हो या गाँव माँग लगातार सिकुड़ रही है। लोग पैसे ख़र्च नहीं कर रहे हैं। बैंकों से व्यवसायी क़र्ज़ लेने से हिचक रहे हैं।
यह सिलसिला 2017 से ही शुरू हो गया था। अब उसके नतीजे शीशे की तरह सामने आ रहे हैं।
ऐसे में यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि जब अर्थव्यवस्था की इतनी बुरी गत हो गयी तो नोटबंदी के फ़ौरन बाद यूपी में बीजेपी इतने बंपर वोट से कैसे जीती और 2019 में मोदी की लोकसभा सीटें बढ़ कर 303 कैसे हो गयीं?
अब इसे भारतीय जनता की बलिहारी कहा जाये या फिर मोदी के व्यक्तित्व का चमत्कार या भारतीय चुनावी प्रणाली की कमज़ोरी, आज की तारीख़ में मोदी पहले से अधिक ताक़तवर बन कर उभरे हैं। इसके लिये मीडिया पर उनकी ज़बर्दस्त पकड़, जनता से सीधे संवाद करने की उनकी अदा, बालाकोट की आड़ में देश पर थोपा गया राष्ट्रवाद या फिर विपक्ष में नेतृत्वहीनता और विकल्पहीनता को दोष दें, कोई भी तर्क हम खोज सकते हैं। या यह कह सकते हैं कि मोदी ने सबको सम्मोहित कर लिया। उनकी मोहमाया में लोग सच नहीं देख पा रहे हैं। हक़ीक़त यह है कि देश नोटबंदी की बहुत महँगी क़ीमत चुका रहा है। इससे उबरने में देश को लंबा वक़्त लगेगा। इतिहास मोदी को अपने चौराहे पर एक दिन ज़रूर लायेगा और सवाल पूछेगा - नोटबंदी की आड़ में असल खेल क्या खेला गया था? जवाब शायद तब भी न मिले।
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