समस्या दुर्भाव से होती है। जब मन में सद्भाव हो, सहभाव हो तो कोई समस्या नहीं होती। जीव का मन सहज संवाद का अभिलाषी होता है। वह संवाद का कोई न कोई साधन खोज ही लेता है।
क्या ‘एक देश, एक भाषा’ के नाम पर किसी की उपेक्षा होनी चाहिए?
- विचार
- |
- रमेश जोशी
- |
- 21 Mar, 2025

रमेश जोशी
भारत में तीन भाषा नीति को लेकर फिर विवाद तेज़। क्या ‘एक देश, एक भाषा’ के सिद्धांत से क्षेत्रीय भाषाओं की उपेक्षा हो रही है? जानिए इस बहस के पीछे की सच्चाई और राजनीतिक नज़रिया।
भाषा कभी भी, कहीं भी समस्या नहीं होती। वह तो संवाद करके समस्याओं को सुलझाने का एक ज़रिया है। जब नीयत ठीक नहीं होती तो संसाधन समस्या बन जाते हैं। चाकू और तलवार दोनों ही उपयोगी हैं लेकिन नीयत ठीक न होने पर दोनों ही किसी की जान लेने के कारण बन जाते हैं।
कभी गौर किया है? जब अलग-अलग नस्ल, धर्म और भाषा के बच्चे मिलते हैं तो वे किसी राजभाषा, राष्ट्रभाषा या संपर्क भाषा की घोषणा का इंतज़ार नहीं करते। वे संकेत, आँखों, शरीर की चेष्टाओं या ऐसे ही सहज, प्राकृतिक उपायों से संवाद शुरू कर देते हैं। दस दिन भी नहीं लगते और वे अपने लिए संपर्क भाषा बना लेते हैं। किसी व्याकरण सम्मत, मानक, सत्ता-अनुमोदित भाषा के विधि-विधान जब आएँ-आएँ; न आएँ-न आएँ। अच्छा हो हम इनके बीच में अपनी खाप-पंचायती कुंठा न लाएँ।
- Language Controversy
- Ramesh Joshi
- Hindi Controversy