कोलकाता से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी अख़बार 'द टेलीग्राफ़' के बारे में लिखना हो तो सबसे बड़ी समस्या यह है कि शुरुआत कब से की जाए। पूर्व केंद्रीय विदेश मंत्री एमजे अकबर इसके संस्थापक संपादक हैं और अगर मेरी याद्दाश्त और समझ सही है तो यह पहले दिन से ऐसा ही निकल रहा है। बीच में बहुत कुछ हुआ पर टेलीग्राफ़ कभी नहीं बदला।
'द टेलीग्राफ़' – रीढ़ वाला अख़बार जो असली पत्रकारिता कर रहा है
- विचार
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- 24 Sep, 2019

अगर बाबुल सुप्रियो ‘द टेलीग्राफ़’ पढ़ते तो संपादक को फ़ोन ही नहीं करते। ऐसी धारदार ख़बरें छापने वाला अख़बार अगर फ़ोन करने से डरने वाला होता तो बहुत पहले डर गया होता या फिर विज्ञापन छाप रहा होता।
दिल्ली में जब इसके छपे हुए अंक आमतौर पर नहीं मिलते थे और इंटरनेट नहीं था तो मैं इसे नियमित रूप से नहीं पढ़ पाता था। पर जब भी देखा, जहां भी देखा - मुझे लगा कि टेलीग्राफ़ की एक ख़ासियत है और वह हमेशा कायम रही। शुरू में निश्चित रूप से लगता था कि यह संपादक के प्रयासों से ही संभव है पर धीरे-धीरे लगने लगा कि यहां की व्यवस्था ऐसी बन गई है कि अख़बार वैसा ही निकलता है।