तनिष्क के दूसरे विज्ञापनों की तरह ही मुसलिम सास और हिन्दू बहू का यह विज्ञापन भी बहुत ही सुंदर है। इसे वापस लेने का मतलब है यह मानना कि यह शरारतपूर्ण कल्पना है, यह कि इस तरह के रिश्ते वास्तव में नहीं होते। पर इस तरह के रिश्ते होते हैं। मैं एक जीता-जागता सबूत हूँ। उस विज्ञापन की अजन्मी बच्ची मैं हूँ।
झूठ नहीं है तनिष्क का विज्ञापन, मिश्रित नस्लें भारत का सच है
- विचार
- |
- |
- 19 Oct, 2020

(ऐसे में जब तनिष्क के विज्ञापन का विरोध हो रहा है, मशहूर मुसलिम समाज सुधारक हमीद दलवई के भाई की बेटी समीना दलवई ने यह लेख लिखा है। समीना की माँ हिन्दू हैं और पिता मुसलमान। यह लेख ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने प्रकाशित किया था। सत्य हिन्दी पेश कर रहा है उसका हिन्दी अनुवाद।)
मेरे माता-पिता जब 1971 में मिले, उन्होंने कभी भी 'लव जिहाद' शब्द नहीं सुना था। वे दोनों ही महाराष्ट्र में समाजवादी छात्र संगठन युवक क्रांति दल के सदस्य थे। यह संगठन श्रमिक शोषण, जाति उत्पीड़न, आदिवासी समुदाय के लोगों को हाशिए पर डाले जाने के मुद्दे को उठाता था। जब मेरी माँ इस संगठन से जुड़ी, वह हरी आँखों वाली, मोटी, हमेशा खिलखिलाती रहने वाली 18 साल की लड़की थी। उसके आस-पास के ज़्यादातर लोग उससे बड़े थे, वे अलग-अलग पृष्ठभूमि के थे, वे गाँव के, ग़रीब, दलित और मुसलमान थे। कई उसे देखते ही मोहित हो गए और उससे विवाह करना चाहते थे।