भारत का स्वाधीनता संग्राम बहुवादी था और उसका लक्ष्य था धर्मनिरपेक्ष एवं प्रजातान्त्रिक मूल्यों की स्थापना। यह हमारे संविधान की उद्देशिका से भी जाहिर है, जिसमें स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे मूल्यों को स्थान दिया गया है। संविधान के कई अनुच्छेदों का लक्ष्य सामाजिक न्याय की स्थापना है। समानता से आशय है हर नागरिक - चाहे उसकी जाति, लिंग या धर्म कोई भी हो - को समान दर्जा देना। संविधान के अधिकांश प्रावधान धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों पर आधारित हैं।
धर्मनिरपेक्षता: पश्चिमी या आधुनिक विचार?
- विचार
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- 27 Sep, 2024

तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि ने कहा है कि धर्मनिरपेक्षता भारतीय अवधारणा नहीं है, यह यूरोपीय अवधारणा है। तो क्या भारत में कुछ लोग धर्मनिरपेक्षता का विरोध करते हैं, यदि करते हैं तो किस आधार पर?
‘धर्मनिरपेक्षता’ - यह शब्द उद्देशिका में नहीं है मगर धर्मनिरपेक्षता, संविधान की नींव है, उसका निचोड़ है। संविधान का मसविदा डॉ आंबेडकर ने तैयार किया था, मगर उसके निर्माण में अलग-अलग राजनैतिक ताक़तों ने भूमिका निभायी थी। संविधान को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था।