loader

तालिबान पर अमेरिका का पिछलग्गू बना रहा भारत!

दुर्भाग्य है कि तालिबान से सीधा संवाद टालकर भारत सरकार ने एक सुनहरा मौक़ा खो दिया। वह अमेरिका का पिछलग्गू बना रहा। अब भी हमारे विदेश मंत्री वगैरह अमेरिका और रूस के सुरक्षा अफ़सरों से मार्गदर्शन ले रहे हैं। उन्हें समझ नहीं पड़ रहा है कि वे क्या करें।
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान ने अंतरिम सरकार की घोषणा कर दी है। इसके 33 मंत्रियों की सूची को ध्यान से देखने पर लगता है कि इसमें ज़्यादातर मंत्री पख्तिया और कंधार के हैं। इन दो प्रांतों में गिलजई पठानों का वर्चस्व रहा है। अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रगान में 14 तरह के लोगों को गिनाया गया है लेकिन इस मंत्रिमंडल में पठानों के कई प्रमुख कबीलों को भी जगह नहीं मिली है। अन्य लोगों— बलूच, उज़बेक, हजारा, तुर्कमान, ताजिक, अरब, गुर्जर, पामीरी, नूरिस्तानी, बराहवी, किजिलबाश, ऐमक, पशाए, हिंदू और सिखों आदि को कहीं कोई स्थान नहीं मिला है। सिर्फ़ दो ताजिक और एक उज़बेक को इस सरकार में जगह मिली है।

33 में से ये तीन ग़ैर-पठान लोग वे हैं, जो तालिबान के गहरे विश्वासपात्र रहे हैं और जिन्हें इनकी अपनी जातियाँ न तो अपना प्रतिनिधि मानती हैं और न ही अपना हितैषी। 

ताज़ा ख़बरें

अब कोई पाकिस्तानी फौज से पूछे कि आप जो मिली-जुली सरकार की बातें बार-बार दोहरा रहे थे, उसका क्या हुआ? क्या वह कोरा ढोंग था? पाकिस्तान की सक्रिय मदद से तालिबान ने पंजशीर घाटी पर कब्जा किया लेकिन क्या अब वह पाकिस्तान की भी नहीं सुनेंगे? ऐसा लगता है कि तालिबान, संपूर्ण विश्व-जनमत की भी अनदेखी कर रहे हैं। तालिबान के प्रधानमंत्री सहित ऐसे कई मंत्री हैं, जिन्हें संयुक्तराष्ट्र संघ ने आतंकवादी घोषित कर रखा है और उनके सिर पर एक करोड़ और 50-50 लाख डाॅलर के इनाम रख रखे हैं। कुछ मंत्री ऐसे हैं, जो ग्वांनटेनामो की जेल भी काट चुके हैं। 

हक्कानी गिरोह के मुखिया सिराजुद्दीन हक्कानी को गृहमंत्री और उसके अन्य साथी भी मंत्री बनाए गए हैं। यह वही गिरोह है, जिसने हमारे काबुल के राजदूतावास पर 2008 में हमला करके दर्जनों हत्याएँ की थीं। दूसरे शब्दों में काबुल में फ़िलहाल जो सरकार बनी है, उसमें पुराने भारत-विरोधी तत्वों की भरमार है। मुल्ला अब्दुल गनी बरादर को प्रधानमंत्री बनाने की बजाय मुल्ला हसन अखुंद को प्रधानमंत्री बनाया गया है। मुल्ला बरादर और शेरु स्थानकज़ई जैसे उदार और मर्यादित लोग पीछे खिसका दिए गए हैं। 

जाहिर है कि तालिबान की यह सरकार उनकी 25 साल पुरानी सरकार-जैसी ही है। इसका लंबे समय तक टिके रहना मुश्किल है।

यदि यह चीन और पाकिस्तान के टेके पर टिक भी गई तो कोई आश्चर्य नहीं कि कुछ ही दिनों में इन दोनों राष्ट्रों का भी मोहभंग हो जाए। क्या पता कि काबुल की तालिबानी सरकार डूरेंड लाइन का विरोध करने लगे और चीन के उइगर मुसलमानों का समर्थन करने लगे। दुर्भाग्य है कि तालिबान से सीधा संवाद टालकर भारत सरकार ने एक सुनहरा मौक़ा खो दिया। वह अमेरिका का पिछलग्गू बना रहा। 

विचार से ख़ास

अब भी हमारे विदेश मंत्री वगैरह अमेरिका और रूस के सुरक्षा अफ़सरों से मार्गदर्शन ले रहे हैं। उन्हें समझ नहीं पड़ रहा है कि वे क्या करें। अफ़ग़ान जनता के मन में भारत के लिए जो सम्मान है, वह किसी भी देश के लिए नहीं है। अफ़ग़ान जनता के समर्थन के बिना तालिबान का अब काबुल में टिके रहना मुश्किल है। देखते हैं कि सत्तारूढ़ होने के पहले तालिबान प्रवक्ताओं ने जो कर्णप्रिय घोषणाएँ की थीं, उन पर उनकी यह अंतरिम सरकार कहाँ तक अमल करती है?

(लेखक, अफ़गा़ान मामलों के विशेषज्ञ हैं। वे अफ़ग़ान नेताओं के साथ सतत संपर्क में हैं। डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग से साभार।)

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
डॉ. वेद प्रताप वैदिक
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें