मैंने हाल ही में भारतीय सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ सिटिंग जज से टेलीफोन पर बात की और उनसे कहा कि भारतीय नागरिकों के विशाल बहुमत की धारणा यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के अपने उस कर्तव्य को बड़े पैमाने पर त्याग दिया है जिसके लिए न्यायाधीशों ने शपथ ली थी।
सुप्रीम कोर्ट को लोगों की रक्षा में फिर से खड़ा होना चाहिए
- विचार
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- 26 May, 2020

क्या सुप्रीम कोर्ट नागरिकों की रक्षा के अपने संवैधानिक कर्तव्य को नहीं निभा रहा है और क्या ऐसा लगता है कि उसने व्यापक तौर पर सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। सरकार या मंत्री की आलोचना करने पर पत्रकारों पर राजद्रोह का आरोप लगाया जाता है। अब समय आ गया है कि न्यायालयों को जनता की स्वतंत्रता की रक्षा के अपने कर्तव्य के लिए फिर से खड़ा होना चाहिए।
जिस सिटिंग जज से मैं बात कर रहा था, मैं उनसे बहुत वरिष्ठ था। मैंने उनसे कहा कि सेवानिवृत्त होने के बाद मैं जज नहीं रह गया हूँ, पर जनता का सदस्य हूँ। इसलिए मैं जनता के प्रतिनिधि के रूप में बोल रहा हूँ, न्यायाधीश के रूप में नहीं और जनता की धारणा यह है कि सुप्रीम कोर्ट अब राजनीतिज्ञों और अधिकारियों के मनमानेपन और अवैधता के ख़िलाफ़ नागरिकों की रक्षा के अपने संवैधानिक कर्तव्य को नहीं निभा रहा है और ऐसा लगता है कि उसने व्यापक तौर पर सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है।