सुप्रीम कोर्ट ने आख़िरकार इस बात को समझा कि लोकसभा चुनाव के दौरान किसी राष्ट्रीय पार्टी के मुखिया और मुख्यमंत्री को चुनाव प्रचार और चुनाव में अपनी भूमिका निभाने से नहीं रोका जा सकता है। अगर लोकतंत्र के इस मूल स्वभाव को नज़रअंदाज़ किया जाता कि चुनाव में भागीदार सभी प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों को समान अवसर दिए जाने चाहिए तो निश्चित रूप से भविष्य के लिए अप्रिय परिस्थितियों की बुनियाद मज़बूत होती। आज भी सिर्फ़ और सिर्फ़ विपक्ष के नेता ही सेलेक्टिव तरीक़े से जाँच एजेंसियों के चंगुल में हैं जबकि भ्रष्टाचार के आरोपी जो सत्ता पक्ष से हैं आज़ाद हैं। जांच एजेंसियों से ऐसे भ्रष्टाचारी बच भी निकलते हैं जब विपक्ष से सत्तापक्ष की ओर निष्ठा का परिवर्तन कर लेते हैं।
क्या केजरीवाल को कबूल होगी अधिकारविहीन आजादी?
- विचार
- |
- |
- 7 May, 2024

सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान ईडी ने कहा कि अरविंद केजरीवाल जमानत पर छूटेंगे तो इसका व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। क्या यह दलील अजीबोगरीब नहीं है कि केजरीवाल को जमानत के दौरान मुख्यमंत्री का अधिकार नहीं हो?
यह नहीं भूलना चाहिए कि अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद की गयी। इतना ही नहीं, केजरीवाल की गिरफ्तारी जिस शराब घोटाले में हुई है उसमें उनका नाम दो साल बाद जोड़ा गया। यह कहने में बिल्कुल संकोच नहीं होना चाहिए कि गैर बराबरी के माहौल में आम आदमी पार्टी को लोकसभा का चुनाव लड़ने लिए मजबूर किया गया है। यह सवाल भी उठेंगे कि गुजरात, जो प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का गृहप्रदेश और बीजेपी का मजबूत गढ़ है, जहां विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने साढ़े बारह प्रतिशत के करीब वोट हासिल किया था, वहां अरविंद केजरीवाल की गैरमौजूदगी से सबसे बड़ा फायदा बीजेपी को हुआ और सबसे बड़ा नुक़सान स्वयं आदमी पार्टी और उसके गठबंधन इंडिया को हुआ। गुजरात में चुनाव संपन्न हो जाने के बाद अरविंद केजरीवाल को जमानत देने पर सुप्रीम कोर्ट विचार करता दिखा। क्या यह महज संयोग है?