कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने अब फिर देश को बासी कढ़ी परोस दी। माँ ने बेटे को भी मात कर दिया। छत्तीसगढ़ विधानसभा के नए भवन के भूमिपूजन समारोह में बोलते हुए वह कह गईं कि देश में ‘ग़रीब-विरोधी’ और ‘देश-विरोधी’ शक्तियों का बोलबाला बढ़ गया है। ये शक्तियाँ देश में तानाशाही और नफ़रत फैला रही हैं। देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी ख़तरे में है।
ये सब बातें वह और उनका सुपुत्र कई बार दोहरा चुके हैं लेकिन इन पर कोई भी ध्यान नहीं देता। यहाँ तक कि कांग्रेसी लोग भी इनकी मज़ाक़ उड़ाते हैं। वह छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के उत्तम कामों तक अपना भाषण सीमित रखतीं तो बेहतर होता।
जहाँ तक तानाशाही की बात है, वह तो आपातकाल के दौरान इंदिरा गाँधी भी स्थापित नहीं कर पाई थीं। उन्हें और उनके बेटे संजय गाँधी को भारतीय जनता ने 1977 के चुनाव में फूँक मारकर सूखे पत्ते की तरह उड़ा दिया था। उन्हें आज नाम लेने में डर लगता है लेकिन वह कहना यह चाहती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तानाशाह हैं और बीजेपी अब भारतीय तानाशाही पार्टी (भातपा) बन गई है। उनका यह आशय क्या तथ्यात्मक है? इस पर हम ज़रा विचार करें।
आज भी देश में अख़बार और टीवी चैनल पूरी तरह से स्वतंत्र हैं। जो जान-बूझकर खुशामद और चापलूसी करना चाहें, सरकार उनका स्वागत ज़रूर करेगी (सभी सरकारें करती हैं) लेकिन देश में मेरे-जैसे दर्जनों बुद्धिजीवी और पत्रकार हैं, जो ज़रूरत होने पर मोदी और सरकार की दो-टूक आलोचना करने से नहीं चूकते लेकिन किसी की हिम्मत नहीं है कि उन्हें कोई ज़रा टोक भी सके। जहाँ तक तानाशाही का सवाल है, वह देश में नहीं है, पार्टियों में है। एकाध पार्टी को छोड़कर सभी पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र का अंत हो चुका है लेकिन सोनियाजी ज़रा पीछे मुड़कर देखें तो उन्हें पता चलेगा कि उसकी शुरुआत उनकी सासू माँ इंदिराजी ही ने की थी। कांग्रेस का यह ‘वाइरस’ भारत की सभी पार्टियों को निगल चुका है।
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