सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ और कांग्रेस कार्यकर्ताओं का विरोध। ख़बर बिल्कुल नयी नहीं है। न ही बीजेपी की ओर से कांग्रेस के ‘सत्याग्रह’ को ‘दुराग्रह’ बताया जाना नया है। यह सवाल भी नया नहीं है कि महंगाई जैसे मुद्दों पर कांग्रेस कार्यकर्ता उस तरीक़े से बाहर क्यों नहीं निकलते जिस तरीक़े से अपने नेता के लिए बाहर निकले हैं? इन सबके बीच सोशल मीडिया के ज़रिए इस सवाल को मज़बूती से उछाला जा रहा है कि अगर ग़लत नहीं हैं सोनिया या राहुल गांधी तो जांच से दिक्कत क्यों?
क्या वाक़ई सोनिया गांधी, राहुल गांधी या कांग्रेस को प्रवर्तन निदेशालय की जांच से दिक्कत है? इसमें संदेह नहीं है कि ईडी की कार्रवाई को कांग्रेस बदले की कार्रवाई के तौर पर देख रही है। फिर भी ईडी के समन का सम्मान कांग्रेस और कांग्रेस नेताओं ने किया है और जांच में सहयोग किया है। नेशनल हेराल्ड केस में प्रवर्तन निदेशालय की एंट्री 2014 में होती है मोदी सरकार के आने के बाद। किसी अदालती आदेश के तहत ईडी जांच नहीं कर रही है। बल्कि, स्वत: संज्ञान लेते हुए ईडी ने इस मामले को हाथ में लिया है। ईडी के पास ऐसा करने का अधिकार है।
सवालों में ईडी- पीएमएलए में केस 5,422, सज़ा सिर्फ 25 को?
ईडी अपने अधिकार के तहत ही राहुल या सोनिया से पूछताछ कर रही है। मगर, इस अधिकार का बेजा इस्तेमाल हो रहा है- क्या यह सवाल उठाए नहीं जा सकते? आँकड़ों पर गौर करें तो प्रिवेन्शन ऑफ़ मनी लॉन्ड्री एक्ट के तहत अब तक ईडी ने 5,422 केस दर्ज किए हैं। मगर, सज़ा सिर्फ़ 25 को मिली है। यह आँकड़ा ये बताने के लिए पर्याप्त है कि प्रवर्तन निदेशालय का इस्तेमाल दोषियों को पकड़ने और सज़ा दिलाने में कम और दूसरे मक़सद के लिए अधिक हो रहा है। यहाँ ख़ासतौर से उस सवाल का जवाब मिल जाता है कि- अगर कोई ग़लती नहीं की है तो जांच से डर क्यों? प्रवर्तन निदेशालय की जाँच से डर लगने के कारणों को थोड़ा बारीकी से समझते हैं।
पीएमएलए के तहत ईडी के मातहत अंडर ट्रायल केस की संख्या हजार से भी कम है। यह महज 992 है। ऐसा भी नहीं है कि बाकी मामले निपटा दिए गये हों। जिन लोगों के खिलाफ प्रोविजनल अटैचमेंट ऑर्डर्स जारी हुए हैं उनकी संख्या है 1739 लेकिन इनमें से भी जिन ऑर्डर्स को अमल में लाया गया है उनकी तादाद 1369 ही है। मतलब ये कि 370 मामलों में प्रोविजनल अटैचमेंट ऑर्डर जारी होने के बावजूद कार्रवाई नहीं की गयी है।
फेमा के तहत भी लंबित हैं आधे मामले, भगोड़ों पर भी ईडी नरम!
फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट 1999 (FEMA) के तहत ईडी की ओर से 30716 मामलों की जाँच शुरू की गयी है। मगर, 15,495 मामले ही निपटाए जा सके हैं। यानी आधे मामले आज भी लंबित हैं। 8109 मामलों में कारण बताओ नोटिस जारी हुए हैं। इस पर न्यायिक नज़रिए से अमल (Adjudicated) केवल 6472 मामलों में हुआ है।
फ्यूजिटिव इकॉनोमिक ऑफेंडर्स एक्ट 2018 के तहत ईडी ने केवल 14 लोगों के ख़िलाफ़ अब तक कार्रवाई शुरू की है। इनमें से भी केवल 9 लोगों को ही भगोड़ा घोषित किया है। 433 करोड़ की संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई की गयी है। जबकि, अकेले नीरव मोदी ने 14 हजार करोड़ का घोटाला किया है।
पीएमएलए, फेमा और फ्यूजिटिव इकॉनोमिक ऑफेंडर्स एक्ट 2018 के तहत प्रवर्तन निदेशालय के कामकाज को देखें तो वह कार्रवाई करने में फिसड्डी साबित हुआ है। यह बात स्पष्ट रूप से समझ में आ रही है कि प्रवर्तन निदेशालय के पास केस तो बढ़ रहे हैं लेकिन वे अंतिम रूप से निष्पादित नहीं हो रहे हैं। अंडर ट्रायल तक आने में भी केस को वक़्त लगता है और इस दौरान मनमाने तरीके से लक्षित लोगों को परेशान किया जा रहा है या फिर ऐसे लोगों को कानूनी दावपेंच से बचने के लिए वक्त दिया जा रहा है।
क्या ईडी देखती है नेताओं की राजनीतिक प्रतिबद्धता?
देश में कई नेता ऐसे हैं जिनके खिलाफ ईडी ने कार्रवाई शुरू की, लेकिन राजनीतिक निष्ठा बदलते ही ईडी सुस्त हो गयी। इनमें असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिन्दे, केंद्रीय मंत्री नारायण राणे, महाराष्ट्र के पूर्व डिप्टी सीएम अजित पवार, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुकुल राय, फायर ब्रांड नेता राज ठाकरे शामिल हैं। मुकुल राय ने बीजेपी छोड़ दी और दोबारा टीएमसी से जा मिले, तो उनके खिलाफ नये सिरे से जांच शुरू की जा रही है।
राज ठाकरे ने 2019 में नरेंद्र मोदी के वीडियो दिखा-दिखाकर सभाएं करना शुरू किया। लेकिन, जब ईडी ने उन्हें अपनी जांच के दायरे में लिया, तो उन्होंने न सिर्फ चुनाव लड़ने से मना कर दिया बल्कि नरेंद्र मोदी और बीजेपी के प्रति वे बिल्कुल नरम पड़ गये। अजित पवार ने जब देवेंद्र फडणवीस के साथ डिप्टी सीएम बने उससे पहले तक जाँच के दायरे में थे। मगर, अचानक जांच रोक दी गयी। नारायण राणे जब से केंद्रीय मंत्री बने हैं ईडी ने उनसे पूछताछ छोड़ दी है। यही हाल बीजेपी के प्रति नरम हो चुके बाकी नेताओं का भी है। ईडी भी उन पर नरम है।
महाराष्ट्र, बंगाल, राजस्थान, झारखण्ड में निशाने पर रहे हैं नेता
राष्ट्रीय सियासत में जब बीजेपी को उद्धव सरकार को गिराना होता है तो उद्धव के क़रीबी नेताओं पर ईडी समेत सभी केंद्रीय एजेंसियाँ ड्यूटी पर दिखती हैं। उद्धव सरकार में मंत्री रहे अनिल देशमुख, नवाब मलिक जेल में हैं। विधायक प्रताप सरनाइक के खिलाफ ईडी जांच कर रही है। उद्धव ठाकरे के साले श्रीधर पाटणकर, उद्धव के करीबी अनिल परब और रविंद्र वाईकर के खिलाफ ईडी की जांच जारी है। शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के 71 विधायकों पर ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स या किसी न किसी केंद्रीय एजेंसियों की जांच चल रही है।
राजस्थान में अशोक गहलोत के भाई अग्रसेन गहलोत ईडी की रडार पर हैं। खाद्यमंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास और बाकी नेता भी पूछताछ की जद में हैं। इन पर ईडी तभी कार्रवाई करती है जब राजस्थान की सियासत में बीजेपी कुछ दबाव बनाने की ज़रूरत महसूस कर रही होती है।
झारखण्ड में हेमंत सोरेन के क़रीबियों पर ईडी लगाम कसे हुए है। हेमंत के निजी सचिव या आईएएस पूजा सिंघल के खिलाफ ईडी की कार्रवाईयां हुईं। नकद बरामद किए गये। मगर, जैसे ही अविनाश दास ने पूजा सिंघल और अमित शाह की साझा तस्वीर जारी की, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। अमित शाह के खिलाफ साजिश की बू केंद्र सरकार को आने लगी। झारखण्ड में ईडी की कार्रवाई का असर भी दिखा। राष्ट्रपति चुनाव में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने यूपीए उम्मीदवार को समर्थन देने के फैसले को पलट दिया और एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया।
क्या बनता है सोनिया-राहुल गांधी पर मनी लाउन्ड्रिंग का केस?
प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई को आंकड़ों के आईने में समझें या राजनीतिक वातावरण के हिसाब से उनकी कार्रवाई का मतलब समझें- ईडी का दुरुपयोग स्वयंसिद्ध हो जाता है। यह दूध का दूध और पानी का पानी करने वाली संस्था कतई नहीं रह गयी है। यह एक ऐसी संस्था में बदल चुकी है जो दूध से दही नहीं बनाती, बल्कि पूरे दूध को ही कड़वा बना दे रही है जो न दूध होता है न दही।
सोनिया-राहुल गांधी के खिलाफ मनी लॉउन्ड्रिंग का मामला होना चाहिए या नहीं, यह भी बड़ा सवाल है। जब तक गैर कानूनी तरीके से मनी का हस्तांतरण होता नहीं दिखता है, मनी लाउन्ड्रिंग का केस नहीं बन सकता। नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया गांधी या राहुल गांधी को हवाला के जरिए कोई रकम हासिल करते हुए या फिर बैंक में हस्तांतरित रकम जिसकी टैक्स न भरी गयी हो- अब तक नहीं दिखाया गया है। ऐसे में वे मनी लाउन्ड्रिंग के मामले में फंसे हुए कैसे बताए जा सकते हैं?
मगर, ईडी स्वत: संज्ञान लेने के अधिकार समेत पूछताछ और गिरफ्तारी तक का अधिकार रखती है। इसी अधिकार के तहत सोनिया-राहुल की पूछताछ हो रही है। लेकिन, क्या यह पूछताछ भी अंतिम नतीजे तक पहुंचे बगैर दबाव की कार्रवाई बनकर रह जाएगी, यह बड़ा सवाल है।
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