सामाजिक न्याय के मसले पर कांग्रेस ख़ासतौर पर राहुल गाँधी की आक्रामकता को बुद्धिजीवियों का एक बड़ा तबका बेहद हैरानी से देख रहा है। जातिवार जनगणना या आरक्षित पदों के खाली रहने का मुद्दा कांग्रेस इतना ज़ोर-शोर से उठाएगी, ऐसा उन्होंने नहीं सोचा था। उनकी नज़र में कांग्रेस ने बीती सदी के आख़िरी दशक में आर्थिक सुधार की नीतियों के ज़रिए अपने ‘समाजवादी अतीत’ से पीछा छुड़ा लिया है और अब पूँजी के मुक्त प्रवाह के ज़रिए होने वाला विकास ही एकमात्र रास्ता है। ये हैरानी एक चिढ़ में बदलती दिखती है जब मशहूर बुद्धिजीवी प्रताप भानु मेहता इंडियन एक्सप्रेस के अपने लेख The mirage of social justice (सामाजिक न्याय की मृग मरीचिका) में हिंदुत्व के जवाब में सामाजिक न्याय के एजेंडे को ‘ज़हर का गहरा प्याला’ बताते हैं।
सामाजिक न्याय को ‘ज़हर का प्याला’ समझते बौद्धिक
- विचार
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- 29 Mar, 2025
कांग्रेस नेता राहुल गांधी जब से सामाजिक न्याय और जाति जनगणनाकी बात कर रहे हैं। तभी से बुद्धिजीवियों का एक तबका राहुल की बात को हजम नहीं कर पा रहा है। वो हैरान हैं कि आखिर कांग्रेस इस मुद्दे को उठा क्यों रही हैं। पंकज श्रीवास्तव का लेख इसी पर है।
