दरअसल, समाजवादी राजनीति में पिछड़ों की भूमिका लगातार बढ़ रही थी। अगर पिछड़ी जातियां सामाजिक और राजनीतिक रूप से सशक्त होती तो जाहिर है, द्विज जातियों के सांस्कृतिक वर्चस्व को चुनौती मिलती। इसलिए आरएसएस ने धर्म और आस्था के आधार पर शूद्रों-पिछड़ों को जोड़ने और इनकी ताकत को मुसलमानों के खिलाफ इस्तेमाल करने की योजना बनाई। बजरंग दल जैसे संगठन की नींव इसी विचार पर आधारित थी।
जनसंघ के स्थान पर 1980 में बनी भाजपा ने 'गांधीवादी समाजवाद' को अपना आदर्श बनाया। इस विचार के आधार पर दलित और पिछड़ों को संघ आकर्षित करना चाहता था। इसके बावजूद भाजपा और आरएसएस ने बहुत रणनीतिपूर्वक राम मंदिर आंदोलन को अपना राजनीतिक एजेंडा बनाया। 1 अक्टूबर 1984 को अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद के युवा दल के रूप में बजरंग दल की स्थापना की गई। एक मजबूत किसान पिछड़ी जाति से आने वाले विनय कटियार को इसका अध्यक्ष बनाया गया। गौरतलब है कि आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद और भाजपा का नेतृत्व द्विज जातियों और खासकर ब्राह्मणों के हाथों में रहा है। लेकिन एक युवा दल की कमान पिछड़ी जाति के हाथों में सौंपी गई।
जैसे-जैसे राम मंदिर आंदोलन आगे बढ़ रहा था, बजरंग दल का विस्तार हो रहा था। विश्व हिंदू परिषद की कारसेवा मुहिम में बजरंग दल अग्रिम मोर्चे पर था। अधिकांशतया पिछड़ी जातियों से आने वाले नौजवानों ने अयोध्या कूच किया। बाबरी मस्जिद विध्वंस में जाहिर तौर पर इनकी बड़ी भूमिका थी। कारसेवा के लिए भूख, प्यास और पुलिस की लाठियों के शिकार ज्यादा यही बजरंगी हुए। इसका राजनीतिक फायदा भाजपा को मिला। कई राज्यों सहित केंद्र में भी उसने सत्ता का उपभोग किया। यह भी गौरतलब है कि जैसे-जैसे भाजपा सत्ता में पहुंचती गई, बजरंग दल का नेतृत्व भी द्विज जातियों के हाथों में पहुंचता गया। पिछड़ी जाति से आने वाले नौजवान हुड़दंग मचाने और हिंसा करने में अभी भी इस्तेमाल होते हैं लेकिन सत्ता की मलाई कोई और खाता है।
बजरंग दल का दावा है कि वर्तमान में उसके 22 लाख कार्यकर्ता और 25 लाख से अधिक सदस्य हैं। देशभर में उसके 2500 अखाड़े हैं। गौरतलब है कि इन अखाड़ों के जरिए आरएसएस दलित और पिछड़ों का ब्रेनवाश करता है। अखाड़े आमतौर पर दलित पिछड़ा बहुल क्षेत्रों में होते हैं। अखाड़े में कुश्ती के बाद सामूहिक खिचड़ी भोज होता है। इसमें संघ के 'भैयाजी' कहानियां सुनाते हैं। इन कहानियों में भेड़ बकरी चराने वाला दलित या पिछड़े समाज का नायक होता है। मुस्लिम शासक या सामन्त के चंगुल से क्षत्रिय राजकुमारी की रक्षा करने में वह अपना बलिदान करता है। इन कहानियों के जरिए दलितों, पिछड़ों में मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरी जाती है और हिंदुत्व की रक्षा में हिंसा और बलिदान के लिए उन्हें प्रेरित किया जाता है।
बजरंग दल पर आरोप है कि इसका कानून में कोई भरोसा नहीं है। धर्म और संस्कृति का स्वयंभू रक्षक इस संगठन पर कई बार आपराधिक और हिंसक गतिविधियों में शामिल होने के गंभीर आरोप लगते रहे है। बजरंगी सरेआम हाथों में डंडा और कई बार तलवारें लहराते हुए तथा नागरिकों को पीटते हुए नजर आते हैं। 14 फरवरी यानी वैलेंटाइन डे पर पार्कों और कॉलेज परिसरों में प्रेम करने वाले लड़के लड़कियों को ये सरेआम पीटते हैं और डंके की चोट पर इसका प्रदर्शन करते हैं। जबरन लड़कियों से लड़कों को राखी बंधवाते हैं। दुर्भाग्य तो यह है कि इन के आगे पुलिस भी लाचार नजर आती है। कई बार पुलिस इन का सहयोग करते हुए दिखती है। भाजपा और आरएसएस का मजबूत राजनीतिक नारा 'जय श्रीराम' बजरंगियों ने ही ज्यादा बुलंद किया है।
ग़ौरतलब है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद नरसिम्हा राव सरकार ने 1992 में जिन पांच संगठनों को प्रतिबंधित किया था, उनमें एक बजरंग दल भी था। 2006 में बजरंग दल का नाम आतंकी गतिविधियों में तब सुर्खियों में आया, जब 5 और 6 अप्रैल को नांदेड़, महाराष्ट्र में आरएसएस के एक प्रतिनिधि के घर में बम बनाते समय दो बजरंगी कार्यकर्ता मारे गए थे। गोरक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा में भी बजरंगी शामिल रहे हैं। 11 जुलाई 2016 को गुजरात के सोमनाथ जिले के ऊना में 4 दलित युवकों को सरेआम नंगा करके बेरहमी से पीटने वाले कथित गौ रक्षक बजरंग दल से जुड़े थे। इन दलित नौजवानों का 'कसूर' बस इतना था कि वे मरी हुई गाय की खाल निकाल रहे थे। इसके बाद गुजरात में जिग्नेश मेवानी के नेतृत्व में एक बड़ा दलित आंदोलन खड़ा हुआ। ऊना कांड के पीड़ित दलित परिवार ने 2 साल बाद हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म को अपना लिया है।
3 दिसम्बर 2018 को बुलंदशहर में साम्प्रदायिक दंगा भड़काने के लिए एक भीड़ ने गोरक्षा के नाम पर स्याना कोतवाली को घेर लिया था। इस सांप्रदायिक उन्माद को रोकने की कोशिश करने वाले इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या कर दी गई। इन हत्यारों में बजरंग दल के लोगों के शामिल होने के आरोप थे। आश्चर्य और बेहद शर्म की बात है कि जमानत पर बाहर आये इन हत्यारों का भाजपा नेताओं ने फूल माला पहनाकर स्वागत किया। हत्याओं का जश्न मनाने वाले भाजपा और आरएसएस के नेताओं को बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने के कांग्रेस के वादे से तिलमिलाहट होना स्वाभाविक है।
(रविकान्त - दलित चिंतक हैं)
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