वी. डी. सावरकर ने अपनी किताब 'हिंदुत्व:  हू इज हिंदू' (1923) में हिंदुत्व के तीन लक्षण बताए हैं- एक राष्ट्र, एक जाति और एक संस्कृति। उनकी नजर में हिन्दू वही है जो 'हिन्दुस्थान' को पितृभूमि ही नहीं पुण्यभूमि भी मानता हो। हिंदुत्व के विचारक सावरकर ने मुसलमानों, ईसाइयों और कम्युनिस्टों को हिंदुत्व का दुश्मन करार दिया। सावरकर द्विराष्ट्रवाद के पहले सिद्धांतकार भी हैं। सावरकर ने 30 सितम्बर 1937 को हिन्दू महासभा के अध्यक्षीय भाषण में कहा कि 'एक प्रमुख राष्ट्र में दो राष्ट्र हैं : भारत में हिन्दू और मुस्लिम'। इसके एक साल बाद 1938 में उन्होंने कहा कि भारत में हिंदू राष्ट्र है और मुस्लिम एक अल्पसंख्यक समुदाय है। सावरकर का विचार देश विभाजन ना होकर मुसलमानों को हिंदुओं के अधीन रखने का था। दरअसल, इसी विचार ने विभाजन की बुनियाद पैदा की। सावरकर के अनुसार भारत हिंदुओं का देश है। सावरकर ने अपने पितृभूमि और पुण्यभूमि वाले विचार से बौद्ध, जैन और सिक्खों को हिंदुओं के भीतर समेट लिया था। वस्तुतः, सावरकर बौद्ध, जैन और सिख धर्म को हिन्दू धर्म के सम्प्रदाय मानते हैं, स्वतंत्र धर्म नहीं। इसके अलावा मुसलमान सहित सभी धर्म भारत में अल्पसंख्यक बनकर रहेंगे। यानी उन्हें समान अधिकार नहीं मिलेंगे। इसी वजह से मुसलमानों के मन में भय और पहचान का संकट पैदा हुआ। मोहम्मद अली जिन्ना ने सावरकर के द्विराष्ट्रवाद सिद्धांत के आधार पर हिंदुओं और मुसलमानों को दो अलग कौमें मानते हुए एक स्वतंत्र राष्ट्र की मांग की। परिणामस्वरूप, देश का विभाजन हुआ।