राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के `बंटेंगे तो कटेंगे’ के नारे को अनुमोदित करके यह सिद्ध कर दिया है कि अपनी स्थापना के सौ साल बाद भी वह बिल्कुल नहीं बदला है। उसका डीएनए हिंसा और नफ़रत वाला ही है और वह उसी भाषा में सोचता है। बल्कि अगर कहा जाए कि वह किसी और भाषा में सोच ही नहीं पाता तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। जिस तरह कोई हिंदी भाषी किसी विचार को पहले हिंदी में सोचता है और बाद में अंग्रेजी में अनूदित करता है या अंग्रेजी भाषी पहले उसे अंग्रेजी में सोचता है फिर उसे हिंदी या किसी और भाषा में व्यक्त करता है। उसी तरह आरएसएस और उसके एजेंडा को बढ़चढ़ कर लागू करने वाले सोचते दंगे वाली भाषा में ही हैं। बाद में उसे सभ्यता, मर्यादा, शांति और सद्भाव का जामा पहना दिया जाता है।
कौन कहता है कि बदल गया आरएसएस?
- विचार
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- 28 Oct, 2024

मथुरा में दो दिनों के राष्ट्रीय सम्मेलन में आरएसएस ने कहा- हिंदू समाज एकता में नहीं रहेगी तो आजकल की भाषा में `बंटेंगे तो कटेंगे हो सकता है’। क्या संघ अपनी विचारधारा, भाषा कभी सुधार पाएगा?
योगी आदित्यनाथ ने पहले यह नारा बांग्लादेश के संदर्भ में दिया था। वहां शेख हसीना को सत्ता से अपदस्थ किए जाने के बाद हिंदू धार्मिक स्थलों पर हमले हुए थे और कई हिंदू बस्तियों में तोड़फोड़ हुई थी। हालांकि बांग्लादेश के बहुसंख्यक समाज ने आगे बढ़कर हिंदुओं को सुरक्षा का आश्वासन दिया और उस सिलसिले को तोड़ा और बड़ी घटनाओं को घटने से रोका। बांग्लादेश के सलाहकार प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस स्वयं कई हिंदू मंदिरों में गए और हिंदुओं के साथ भारत को भी उनकी सुरक्षा का आश्वासन दिया। लेकिन जिस देश में तख्तापलट हुआ हो और लंबे समय तक पुलिस थाने बंद पड़े हों, जहां अराजक स्थिति हो और जो संवैधानिक रूप से इस्लामी देश हो वहां अल्पसंख्यकों के विरुद्ध गैर-कानूनी घटनाएं हो सकती हैं। विशेषकर, जो लोग शेख हसीना के समर्थक रहे हों वे किसी न किसी रूप में निशाने पर हैं चाहे हिंदू हों या मुसलमान। लेकिन उस पूरे घटनाक्रम को लोकसभा में पराजय के बाद प्रदेश में उपचुनाव के ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल किया जाना एक मानसिक दिवालियापन ही साबित करता है। बांग्लादेश में हिंदू ही नहीं, बिहारी मुसलमान भी असुरक्षित हैं और उन्हें बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाता। उनके बारे में लगातार लिखा जाता रहा है।
लेखक महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं।