“जिस देश में अपने अतीत की चेतना न हो, उसका कोई भविष्य नहीं हो सकता। इसी तरह यह भी महत्वपूर्ण है कि राष्ट्र अपने अतीत को प्राप्त करने की न सिर्फ़ क्षमता विकसित करे बल्कि, उसे यह भी जानना चाहिए कि अपने भविष्य को आगे बढ़ाने के लिए अतीत का कैसे उपयोग किया जाए।”
राम मंदिर निर्माण: ‘भय बिनु होय ना प्रीति’; राम भय के नहीं, प्रेम के प्रतीक हैं
- विचार
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- 5 Aug, 2020

अयोध्या में राम मंदिर बने इसमें किसे आपत्ति हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को मुसलिम समुदाय ने भी स्वीकार कर लिया है। लेकिन अगर देश के प्रधानमंत्री मंदिर निर्माण के लिए हो रहे भूमिपूजन के वक्त भी “भय” की बात करेंगे तो फिर सवाल तो उठेगा कि आप “डराना” किसे चाहते हैं? वो कौन हैं जो आपके निशाने पर हैं?
हिंदुत्व के आराध्य नेता सावरकर की ये पंक्तियाँ ऐसे वक्त में अनायास ही याद आ जाती हैं, जब पाँच अगस्त को राम मंदिर के निर्माण की औपचारिक शुरुआत होती है। अतीत क्या है ये एक सवाल है। क्या अतीत को पकड़ कर बैठने से ही देश का कल्याण होगा। क्या अतीत की ग़लतियों को ठीक करने के लिए देश को एक सतत युद्ध में झोंके रखना ही राष्ट्रधर्म है या राष्ट्रधर्म ये भी है कि अतीत से सीख कर आगे बढ़ें और नए भारत के निर्माण में नए संप्रत्ययों की खोज करें।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।