भाजपा के लिए चुनौती बने कांग्रेस के नेता राहुल गांधी कभी-कभी अपने ही पांवों पर कुल्हाड़ी मारने लगते हैं। वे भूल जाते हैं कि वे जिस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी के लत्ते लेने की कोशिश कर रहे हैं, उसी मुद्दे पर उनकी अपनी पार्टी की क्या स्थिति है? ताजा मामला भाजपा में वंशवाद का है। राहुल गांधी ने इस मामले में पूछे गए सवाल का सपाट उत्तर न देते हुए उंगली भाजपा की ओर घुमा दी। उन्होंने प्रश्नकर्ता पत्रकार से ही कह दिया कि अमित शाह का बेटा क्या करता है? राजनाथ सिंह का बेटा क्या करता है?
भारतीय राजनीतिक दलों में वंशवाद का विष कोई नया नहीं है। राहुल गांधी के जन्म के पहले से है और अब तो ये विष बेल इतनी फ़ैल गयी है कि जो इसे काटने की कोशिश करता है खुद इसमें उलझकर रह जाता है। राजनीति में वंशवाद को संरक्षित करने, पालने, पोसने के सबसे ज़्यादा आरोप कांग्रेस पर ही लगते हैं। आज भी लग रहे हैं और शायद कल भी लगेंगे। देश में भाजपा ने राजनीति करना कांग्रेस को देखकर सीखा है, इसलिए जो भी बुराइयां कांग्रेस में थीं, वे सब अब भाजपा का अनिवार्य हिस्सा बन गयी हैं। मामला चाहे वंशवाद का हो या भ्रष्टाचार का, कोई किसी से कम नहीं है।
वंशवाद हर राजनीतिक दल की दुखती रग है। इसके ऊपर जो भी ऊँगली रखता है उसे नेताओं के वैसे ही व्यवहार का सामना करना पड़ता है जैसा कि राहुल गाँधी के व्यवहार का करना पड़ा। राहुल इस सवाल पर स्वाभाविक रूप से भड़के। उन्होंने कहा कहा, “मुझे जितना पता है अमित शाह का बेटा भारतीय क्रिकेट को चलाता है। बीजेपी को पहले अपने नेताओं को देखना चाहिए कि उनके बच्चे क्या करते हैं? अनुराग ठाकुर के अलावा और भी लोग हैं जो वंशवाद की राजनीति का उदाहरण हैं।”
राहुल का कहना सही भी है। आप वंशवाद का एक उदाहरण खोजिये, आपको सौ उदाहरण मिल जायेंगे लेकिन अकेले भाजपा में नहीं, सभी दलों में। कांग्रेस में तो सबसे ज्यादा। बाक़ी के दल तो किस खेत की मूली हैं? ये सवाल अमित शाह से भी किया जाये तो वे भी राहुल की ही तरह प्रतिक्रिया देंगे। मैंने तो पत्रकारिता में जबसे आँख खोली है हर पार्टी में वंशवाद को ही फलता-फूलता देखा है। आज भी ये फल-फूल रहा है। पांच राज्यों के लिए होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जारी कांग्रेस प्रत्याशियों की सूची को उठाकर देख लीजिये!
राहुल गांधी को किसी और दल में वंशवाद पर बोलने से पहले सबसे पहले कांग्रेस में वंशवाद का सफाया करने का अभियान चलाना चाहिए। तभी मुमकिन है कि इस बीमारी से राजनीति को स्थायी मुक्ति मिल सके।
इस समय देश में वंशवाद कोई मुद्दा नहीं है। मुद्दा है जाति आधारित जनगणना, मुद्दा है राजनीति में नयी पीढ़ी की प्राण -प्रतिष्ठा। इन मुद्दों को लेकर सभी दलों के हाथ कांपते हैं। कांग्रेस हो या भाजपा, अपने बूढ़े नेताओं को धकियाने में हिचकती है और कोशिश भी करती है तो उसे बगावत का सामना करना पड़ता है। राजस्थान में भाजपा के साथ यही समस्या है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के साथ यही समस्या है। राजनीति में पचास साल से अपनी धाक जमाये नेता अपनी अगली पीढ़ी के लिए मैदान छोड़ने के लिए राजी ही नहीं हैं। वे आजीवन पार्टी संगठन की और सत्ता की कमान अपने हाथ में रखना चाहते है। मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं क्योंकि कांग्रेसी पहले बन चुके हैं।
राहुल गांधी भविष्य के नेता हैं। उनके पास काम करने के लिए अभी अपने समकालीन तमाम नेताओं की तरह तमाम समय है। वे यदि वंशवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ना चाहते हैं तो ये जान लें कि इस लड़ाई में सबसे पहले उन्हें अपनी बलि देना होगी। वैसे, एक हकीकत ये है कि बबूल के पेड़ पर आम और आम के पेड़ पर बबूल नहीं आने वाले। वंशवाद को किसी भी क्षेत्र में नहीं रोका जा सकता।
(राकेश अचल की फ़ेसबुक वाल से)
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