आँखों के सामने इस समय बस दो ही दृश्य हैं: पहला तो उज्जैन स्थित महाकाल के प्रांगण का है। उस प्रांगण का जो पवित्र क्षिप्रा नदी के तट पर बसा हुआ है और उस शहर में समाया हुआ है जो सम्राट विक्रमादित्य की राजधानी रहा है। जहाँ, भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक विराजित है और जो काल भैरव और कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। जहाँ भगवान कृष्ण और बलराम गुरु सांदिपनी के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने आए थे।
एनकाउंटर में विकास दुबे की मौत से क्या आतंक का युग ख़त्म हो गया?
- विचार
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- 12 Jul, 2020

बिकरू गाँव में मिठाई बाँटने वाले क्या सचमुच सही मान रहे हैं कि एनकाउंटर में विकास दुबे की मौत के साथ ही आतंक के युग की समाप्ति हो गई है? ऐसा है तो फिर हमें अदालतों और भारतीय दंड संहिता और भारतीय लोकतंत्र के प्रति किस तरह की निष्ठा और आदर का भाव रखना चाहिए?
इसी महाकाल के प्रांगण में एक आदमी निश्चिंत होकर बहुत ही इत्मिनान से फ़ोटो खिंचवा रहा है। इधर से उधर आ-जा भी रहा है और फिर भगवान के दर्शन करने के बाद बाहर आकर घोषणा भी करता है कि वह कानपुर वाला विकास दुबे है। इसका वीडियो भी बन जाता है और वायरल भी हो जाता है। यह सब ऐसे चलता है, जैसे किसी फ़िल्म के दृश्य की शूटिंग चल रही हो।